गुरुवार, 3 जनवरी 2013

बनस्थली - एक ज्ञानपीठ

पूर्वी राजस्थान के टोंक जिले में, निवाई रेलवेस्टेशन से थोड़ी सी दूरी पर कन्याओं के लिए एक शिक्षास्थली की शुरुआत सं १९३५ में स्वर्गीय पण्डित हीरालाल शास्त्री व उनकी पत्नी रतना जी ने की. उसी दौरान उनकी १२ वर्षीय बेटी शांता की अल्पकालिक बीमारी के कारण देहावसान हो जाने पर, उनके लिए यह जीने का आधार, या यों कहिये जीवन का मिशन, बन गया. पण्डित हीरालाल शास्त्री एकीकृत राजस्थान के प्रथम मुख्यमन्त्री भी रहे.

इस गाँव का आदि नाम ‘बनथली’ था, जो परिष्कृत होकर ‘बनस्थली’ कर दिया गया. प्रारभ में मात्र ४-५ लडकियों को शिक्षित करने से आगे बढ़ाते हुए कालान्तर में स्कूली शिक्षा तथा विश्वविद्यालयी विषयों तक पहुँच गया. कॉलेज से यह ‘डीम्ड युनिवर्सिटी’ बना, और अब पूर्ण विश्वविद्यालय है. जिस प्रकार कविवर रवीन्द्रनाथ टैगौर का सपना ‘शांतिनिकेतन’ के रूप में साकार हुआ उसी तरह पण्डित हीरालाल शास्त्री का यह महान सामाजिक अध्यवसाय लडकियों के लिए आधुनिक भारत के अग्रगण्य शिक्षा केन्द्र के रूप में विकसित है.

रेतीली धरती में खारे पानी वाली जमीन पर ८०० एकड़ क्षेत्र में बसा यह कैम्पस बालिकाओं के लिए अनूठे ज्ञानपीठ के रूप में स्थापित है. जहाँ सुदूर आसाम-मेघालय तथा अंडमान-निकोबार की लडकियाँ भी आकर शिक्षा प्राप्त करती हैं. यहाँ बिलकुल सादगीपूर्ण रहन-सहन + खादी धारण व नैसर्गिक रिहायशी वातावरण लडकियों को मिलता है. यह प्रारम्भ से ही महात्मा गांधी जी की परिकल्पनाओं वाली संस्थान बन गयी थी. उन्होंने खुद इसकी भरपूर तारीफ़ की थी. देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने यहाँ आकर एक बार कहा था, “अगर मैं लडकी होता तो यहीं पढना पसन्द करता.”

आज यह विश्वविद्यालय अपनी चरम पर है. घुडसवारी से लेकर सैनिक शिक्षा व विमान चलाने तक के व्यवहारिक ज्ञान के अलावा समस्त आधुनिक विज्ञानों की टैकनोलोजिकल विषयों में उत्तम ज्ञान की प्रामाणिक शिक्षा पाकर लडकियां, राष्ट्र-निर्माण से लेकर अंतर्राष्ट्रीय विधाओं में अनेकानेक क्षेत्रों में अपना योगदान कर रही हैं.

सं १९९० में इसका एक छोटा कैम्पस राज्य की राजधानी जयपुर के ‘सी-स्कीम’ क्षेत्र में भी बनाया गया. इस विश्वविद्यालय की विषयों-विधाओं और संभावनाओं के बारे में इंटरनेट पर सारी जानकारी उपलब्द्ध है.

इस महान संस्थान से सौभाग्य से मेरा भी सम्बन्ध रहा है कि मेरी बेटी गिरिबाला जोशी ने यहीं से इनोर्गेनिक कैमिस्ट्री में एम.एससी. किया था. आज जब कि देश की ५०% आबादी के उत्त्थान व सुरक्षा पर गहन चिन्तन हो रहा है तो इस संस्थान की सेवाओं तथा उपलब्द्धियों पर गर्व हो रहा है. इस अवसर पर मैं बारम्बार संस्थान से जुड़े हुए छात्राओं, शिक्षिकाओं और प्रशासनिक व्यवस्था में लगे सभी लोगों को हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करना चाहता हूँ.
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