गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

सत्य कभी नष्ट नहीं होता

किसी प्राणी के उत्तक से हूबहू दूसरा प्राणी पैदा करने की तकनीक तो कुछ वर्षों पहले वैज्ञानिकों ने खोज निकाली है. जानवरों पर इस विधि का प्रयोग करके क्लोन बनाये गए हैं, पर प्रकृति के नियमों में अनादि काल से एक सी सूरत व गुण वाले कीट-पतंगों से लेकर जानवरों/प्राणियों में यह क्रम चलता आ रहा है. हाँ, बिना बीज के ही केवल उत्तक से ‘नया’ पैदा करना आश्चर्यजनक लगता है. यह भी हॉर्मोन्स का कमाल कहा जाता है कि बिना मुर्गे के संसर्ग के मुर्गियाँ अण्डे दिये जाती हैं. वैसे प्रकृति की बहुत सी अजूबी चीजें अभी तक हमारी समझ से परे हैं.श्रृष्टि के विकास के क्रम को जब हम देखते हैं तो बताया जाता है कि प्राणियों का उद्भव अमीबा से हुआ और अमीबा ऐसा प्राणी है जो विभाजित होकर कई गुणकों में बढ़ता रहता है.

कई लोग मनुष्य का क्लोन बनाने के विरुद्ध हैं. इसके लिए अनेक नैतिक व धार्मिक कारण दिए जाते हैं. लेकिन विज्ञान को इससे क्या मतलब? वह तो निरंतर सत्य की खोज करता रहता है, जो किसी न किसी रूप में फलदाई होती है. अब देखिये जीन्स व डी.एन.ए. के बारे में पहले लोग सोच भी नहीं सकते थे, पर अब पहचान के लिए व्यक्ति विशेष के डी.एन.ए. असाधारण रूप से काम में आ रहे हैं. जैववैज्ञानिक समाचारों में यह भी प्रकाशित हो रहा है कि जीन्स में छेड़छाड़ करके वंशानुगत बीमारियों को दूर किया जा सकता है.

दुनिया की प्राचीन-पौराणिक कथाओं की परिकल्पनाएं भी बहुत मजेदार होती हैं. हमारे धर्म की रामकथा में जब अहिरावण द्वारा राम और लक्ष्मण का अपहरण करके पाताललोक में छुपाया गया, तब ब्रह्मचारी हनुमान जी उनको लेने वहाँ पहुंचे. उनको अपने ही पुत्र से युद्ध करना पड़ा, जो कि वहाँ पर द्वारपाल नियुक्त था. वह हनुमान जी का डुप्लीकेट था. उसकी उत्पत्ति के बारे मे गल्प है कि जब हनुमान जी सीता की खोज में लंका जा रहे थे तो समुद्र लांघते समय उनके शरीर से जो पसीने की बूँद गिरी वह किसी प्राणी द्वारा अपने शरीर में संरक्षित की गयी. इस प्रकार के गल्पों को हम सीधे सीधे नकारना चाहें तो भी इनका उल्लेख कहीं न कहीं मिल जाता है.
अब जीव विज्ञान भी जिस तरह से रोज नए चमत्कार बता रहा है, आगे आने वाले पाँच सौ/हजार वर्षों में क्या गुल खिलाएगा, उसकी कल्पना आज हम नहीं कर सकते हैं.

कुछ लोग यह अंदेशा जाहिर करते हैं कि जिस तरह से दुनिया में आणविक हथियारों के नए नए संस्करण पैदा किये जा रहे हैं, मानव सभ्यता एक दिन अवश्य नष्ट हो जायेगी.

प्रसिद्द वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टाइन से जब यह पूछा गया कि तीसरा विश्वयुद्ध कैसे लड़ा जायेगा तो उन्होंने कहा,"तीसरे का तो पता नहीं, पर चौथा विश्वयुद्ध लकडियों और पत्थरों से लड़ा जाएगा." यानि सब कुछ खत्म हो जाएगा और मनुष्य जाति फिर नए सिरे से मनु-शतरूपा की तरह नई रचना में व्यस्त हो जायेगी.

मैं तो यह मानता हूँ कि यह विषय का नकारात्मक पहलू है. अच्छी बात यह होगी कि हमारी भावी पीढियाँ कई गुना ज्यादा जिम्मेदार व समझदार होंगी. आज से ज्यादा सुविधाओं का उपभोग करेंगी. दूसरे ग्रह-मंडलों में आना जाना सरल होगा. सारा विश्व एक परिवार की तरह रहेगा. आज के इतिहास को पढ़/सुन कर अगली पीढियाँ आनंदित होंगी. खुदानाखास्ता यदि यह सभ्यता नष्ट भी हो गयी तो जगह जगह टाइम-कैप्स्यूल में संरक्षित ‘दृश्य एवँ श्रव्य’ को ढूंढ निकालेंगे. हमारे विषय में अध्ययन करेंगे क्योंकि सत्य कभी नष्ट नहीं होता है.
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2 टिप्‍पणियां:

  1. विज्ञान कभी फलदायी और स्‍थायी नहीं होता। सारे वैज्ञानिक उपक्रम जीव-जगत को पूर्ण रुप से नष्‍ट करने के लिए हो रहे हैं।

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  2. शक्ति और साधन, दोनों ही दुरुपयोग से बचाये जाने चाहिये।

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