बुधवार, 3 अप्रैल 2013

इदरीस मर गया.

वह अपने आप को सीमान्त गाँधी यानि खान अब्दुल गफ्फार खान का वंशज बताता था, पर यह सच नहीं था. उनसे उसका दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं था. सच तो यह है कि इदरीस, पिण्डारी था और उसके बुजुर्ग राजस्थान के टोंक जिले से वर्षों पहले भरतपुर आ बसे थे.

पिंडारियों का इतिहास में जिक्र ठग व दुर्दांत लुटेरों के रूप में दर्ज है. अंग्रेज सरकार इन क्रूर लोगों से बहुत परेशान रही क्योंकि ये मासूम यात्रियों को क़त्ल करके लूट ले जाते थे. कहा तो यह भी जाता है कि अपनी रियासत में वारदात न करने के एवज में ग्वालियर के सिंधिया राजा, बुन्देला राजा, तथा कुछ अन्य रियासतों के शासक इनको संरक्षण दे रखा था. कहने को तो यह  भी कहा जाता था कि ये बहुत बहादुर योद्धा/ सैनिक होते थे, लेकिन इनका चारों तरफ आतंक था इसलिए ब्रिटिश  सत्ता ने पहले तो इनका दमन करने का पूरा प्रयास किया, पर मजबूर होकर इनसे संधि करके इनको राजपुताना के अनेक रियासतों में कई टुकड़ों में जागीरें दी गयी ताकि ये अपराध का रास्ता त्याग दें. उस समय जब भारत आजादी की दहलीज पर था तो इंग्लेंड के तत्कालीन प्रधानमन्त्री विंस्टन चर्चिल ने पिंडारियों के चरित्र को ध्यान में रख कर कहा था, “इस देश को लुटेरों को नहीं सौंपा जा सकता है.”

यह समय की विडम्बना ही है कि आज विशिष्ट किस्म के लुटेरे इस देश में अपना धर्म निभा रहे हैं. उसी कड़ी में शामिल था इदरीस ‘गाँधी’ उसको ‘गाँधी’ उपनाम हिंडोन के एक सोना-चांदी व्यापारी नेमीचंद जैन ने दिया था. नाम के अलावा एक मोटर साइकिल, चार जोड़े खादी कुर्ते-पायजामे भी सिला कर भी दिये ताकि वह उसकी आड़ में सोने-चांदी की तस्करी कर सके. हुआ भी ऐसा ही. नेमीचंद जैन अपने धन्धे में मालामाल हो गया, और सहयोगी इदरीस भी समृद्ध हो गया.

पिण्डारी लोगों के चहरे की बहुत कुछ बनावट मैकाका बंदरों की सी पाई जाती थी. चहरे लाल गुलाबी अफगानियों जैसे दीखते थे, लेकिन इदरीस काला था क्योंकि उसका बाप शकूर पठान भी काला ही था. शकूर एक पिण्डारी खानदान की औरत को टोंक से अपने साथ ले आया था. शायद कायदे से उससे उसका निकाह भी नहीं हुआ था. शकूर पठान पुलिस का सिपाही था शक्ल से भी डरावना था इसलिए कोई भी उससे नहीं पूछ सका कि किसकी बीवी भगा कर लाया था.

शकूर पठान ने बेटे इदरीस को बी.ए. तक पढ़ाया और बेटा चतुर निकला. वह स्थानीय बड़े नेताओं की शागिर्दी करके उनका खास कायकर्ता बन गया तथा धीरे धीरे नेताओं की दलाली करने लगा. जिसको गरज होती थी, मनचाहा रुपया देकर अपना काम कराता था. इसमें सिर्फ इदरीस गाँधी का दोष नहीं था, पूरा सिस्टम ही जब भ्रष्ट चल रहा हो तो अकेले इदरीश को भ्रष्ट कहने से कोई फ़ायदा नहीं था. वह अब एक नामी सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सम्माननीय व्यक्तियों की कतार में आ गया था. और सिर्फ ‘गाँधी जी’ के संबोधन से पुकारा जाने लगा.

जब अनाप-शनाप पैसा आता है तो अपने साथ अनेक दूसरी बुराइयां भी लेकर आता है. इदरीस नशा-पत्ता तो बिलकुल नहीं करता था, लेकिन शहर के कई बदनाम घरों में उसकी आवाजाही हो गयी. बस्ती में एक खूबसूरत औरत से जब उसकी सहेली ने एक बार कहा, “तुम्हारे घर गाँधी आता जाता है. लोग बदनाम कर रहे हैं.” इस पर वह महिला गर्व से बोली, “बदनाम होंगे, तभी तो नाम होगा.” सहेली खिसिया कर रह गयी, लेकिन हमारे समाज में आज भी धर्म पर आस्था है. लोग पाप और पुण्य का ध्यान रखते हैं. सभी लोग अनैतिक नहीं है, इसका प्रमाण यह भी था कि शरीफों के घरों में इदरीस गाँधी की दस्तक नहीं होती थी. इदरीस गाँधी की विशेषता यह भी थी कि वह जिन घरों पर मेहरबान होता था, उनको फल-फूल, मिठाईयों से लेकर साडियां, फर्नीचर आदि तोहफों से नवाजा करता था. वे लोग खुश होते थे कि शहर का नामी आदमी अपनी जीप में उनके घर आता है, और वहीं नित्यकर्म, नहाना-धोना कर जाता है. बड़े लोगों को अपना कहने में गुमान होता है.

अफसोस, उभरता हुआ ३८ वर्ष का यह राजनेता, जिसकी जयपुर सिविल लाइन्स के बंगलों के चूल्हों तक पहुँच हो गयी थी, एक रात अचानक हृदयघात से चल बसा. ईलाज का मौक़ा ही नहीं मिला.

इदरीस गाँधी मर गया. उसकी शोक सभा में अनेक गणमान्य लोगों ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की. समाज में तथा राजनीति में एक शून्य छोड़ गया जिसकी भरपाई होना मुश्किल है. वह सचमुच आज की राजनीति का चेहरा था.
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2 टिप्‍पणियां:

  1. बड़े ही छदम तरीके से चल रही है दुनिया। बेहद घटिया आदमी समाज का कर्ताधर्ता बन कर अपने खोखले सिद्धांतों का बाजा बजवा रहा है।

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  2. सच में कठिन है, भरपाई करना, अब दुनिया अच्छी चलेगी..

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