गुरुवार, 26 सितंबर 2013

मुक्ति

श्रीमती पूनम त्यागी, उम्र अब ५४ वर्ष, कई महीनों तक आई.सी.यू. में और उसके बाद काफी समय सी.सी.यू. वार्ड में रही. फिर पूरे एक साल तक उन्हें जनरल वार्ड में रखा गया, उसके बाद घर ले जाना पड़ा. अभी भी जब उसकी हालत बिगड़ती है तो घर वाले अस्पताल में भर्ती कर देते हैं. पूनम शत् प्रतिशत विकलांग है. वह लगभग पिछले ९ वर्षों से बिस्तर पर एक ज़िंदा लाश की तरह पड़ी है. शारीरिक स्थिति इतनी खराब है कि ये सोचने को मजबूर होना पड़ता है कि वह अब तक क्यों ज़िंदा रही है, भगवान उसे उठा क्यों नहीं लेते हैं?

पूनम एक कार दुर्घटना में घायल हो गयी थी. कार उसके पति सुरेन्द्र त्यागी खुद चला रहे थे. सुरेन्द्र त्यागी तब मथुरा में इन्डियन ऑइल की पेट्रोलियम रिफाइनरी में सीनियर इंजीनियर थे. पत्नी को अपने घर गुडगाँव से ले जा कर मथुरा में अपने एक सहकर्मी की शादी के समारोह में शामिल हुए थे. वापसी में ये हादसा हो गया. उनकी कार रात एक बजे एक तेज आते हुए टैंकर से भिड़ गयी. पूनम तब कार की पिछली सीट पर सो रही थी.

दुर्घटना कभी भी बता कर नहीं आती है. पलक झपकते ही सब हो गया. सुरेन्द्र त्यागी की कार का बैलून टक्कर लगते ही निकल आया था इसलिए उनका सर व सीना बच गया, पर उनका पेट फट गया और एक जाँघ टूट गयी थी. पूनम तो केवलमात्र माँस का लोथड़ा बन गयी थी. आधे चेहरे को कांच के टुकड़ों ने फाड़ दिया था, एक आँख बाहर निकल गयी, हाथ-पैर अकल्पनीय ढंग से कट-फट गए थे. पर डाक्टरों ने उसे मरने नहीं दिया. इतनी बड़ी त्रासदी के बाद पूनन होश में आने के बाद कई बार दुहराती रही है कि वह तभी मर जाती तो मुक्ति मिल जाती. वह विक्षिप्त सी होकर प्रलाप करने लगती. लेकिन कई बार जब वह शांत रहती है, तब उसकी वाणी से लगता है कि मानसिक रूप से वह स्वस्थ और सजग है.

परसों रात वह एक फ़िल्मी गीत बड़े सुर में गा रही थी, "जिसे बनाना उसे मिटाना काम तेरा, मिटने वाले फिर क्यों लेंगे नाम तेरा." इस प्रकार वह अपने प्रति किये गए अन्याय के लिए परमेश्वर को नकार रही थी.

पूरी तरह उठने बैठने में लाचार होने के कारण, हर समय एक सेवक उसके लिए चाहिए था, इसलिए एक साँवली सी, छोटे कद की, बंगाली लड़की काजोल को आया के रूप में रख लिया. वह पिछले आठ सालों से पूनम के साथ साया की तरह रही है. काजोल अपनी इस ‘आंटी’ को अच्छी तरह पहचानती है. उसकी तमाम हरकतों पर नजर रखती है. नहलाती, धुलाती, बतियाती, टी.वी. के सामने बैठ कर फ़िल्मी बातों पर भी चर्चा करती थी. इनकी इस रक-टक को देख कर सुरेन्द्र त्यागी मन ही मन कहते थे, "मेड फॉर ईच  अदर" और काजोल के अपनेपन से भरोसेमंद रहते है.

जब पूनम अस्पताल में भर्ती रहती है तो समय निकाल कर सुरेन्द्र त्यागी अपने ड्राईवर सहित आकर घंटों उसके पास बैठे रहते हैं. उनकी उपस्थिति में पूनम ज्यादा ही भावुक होकर प्रलाप करने लगती है. त्यागी दम्पति का बेटा सुनील दुर्घटना के समय गुडगांव घर पर ही था. अगर उसकी स्कूल की परीक्षाएं नहीं चल रही होती तो शायद वह भी दुर्घटना की चपेट में आया होता. अब सुनील २५ साल का हो गया है. वह अपने विकलांग माता-पिता से अतीव प्यार करता है. आखिर उसने उनको तड़प कर जीते हुए देखा है.

काजोल को अपनी ड्यूटी से मुश्किल से छुट्टी मिल पाती है. वह जब कभी अपने परिवार से मिलने जाती है, तो इधर सुनील की बुआ को देखभाल के लिए बुलाना पड़ता है. इस बीच काजोल के भैया-भाभी आकर सुरेन्द्र त्यागी को बता गए हैं कि चंद महीनों में काजोल की शादी करने जा रहे हैं. त्यागी जी ने युद्धस्तर पर नई आया की तलाश शुरू कर दी है, लेकिन ऐसी समर्पित घरेलू लड़की मिलना बहुत मुश्किल है.

कल शाम जब त्यागी जी ने काजोल के चले जाने की बात पूनम को ठीक से समझाई तो वह एकाएक ऊँचे स्वर में रोते हुए अजीब ढंग से प्रलाप करने लगी. सुनकर आसपास वार्ड के बहुत से मरीज तथा उनके सम्बन्धी इकट्ठा हो गए. नर्स आई, डॉक्टर आये, उसे शांत करने के लिए एक कम्पोज का इंजेक्शन दिया गया. उसके बाद वह खर्राटे लेते हुए सो गयी, पर सुबह मालूम हुआ कि हमेशा के लिए सो कर सब को मुक्त कर गयी.
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7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  2. काश वह लड़की शादी के बाद भी श्रीमती पूनम के साथ रहती। अत्‍यन्‍त मार्मिक कहानी, संस्‍मरण।

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  3. मन को छूती गहन भाव लिए कहानी |
    आशा

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  4. इतना मार्मिक प्रसंग टिपण्णी करते बनता नहीं है। सब कर्मों का लेखा है -

    कर्म प्रधान सब जग रची राखा ,.....

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