रविवार, 8 जून 2014

बैठे ठाले - 12

वर्तमान समय में हमारे देश, समाज अथवा प्रशासन/सरकार में केवल वही लोग ईमानदार रह गए हैं जिनको बेईमानी का मौक़ा नहीं मिला है. जब पैसा ही ईमान हो जाये तो कहाँ धर्म? कहाँ रिश्ते नाते? कहाँ देश-प्रेम? सब पोथी के बैगन होकर रह गए हैं. पर हमारी याददाश्त में अब से पचास-साठ साल पहले तक ऐसी अंधेरगर्दी नहीं थी. लोगों की आँखों में शरम-लिहाज हुआ करता था, जो अनैतिक लेनदेन /रिश्वत पर उजागर होता था, पाप समझा जाता था. हराम से लोग डरते थे.

आजादी के कई वर्षों के बाद तक भी ईमानदारी की गरिमा बड़े लोगों के व्यवहार में झलकती थी. यद्यपि सरकारी कर्मचारियों को बहुत कम वेतन मिलता था, पर उसी में संतुष्टि होती थी. अगर कोई व्यक्ति गजेटेड ऑफिसर हो गया होता था तो उसके मायने होता था कि वह ईमानदार, न्यायप्रिय और आदर्श व्यक्ति है. ये चारित्रिक अवमूल्यन तो धीरे धीरे शुरू हुआ. समाज के कर्णधारों ने जब खुलेआम दो नम्बर की कमाई करनी शुरू की तो पूरे तन्त्र को ही ज्यों दीमक खाने लगी हो. स्थिति इतनी गंभीर है कि एक बार देश की शीर्ष अदालत को दुखी होकर कहना पड़ा कि सुविधा शुल्क यानि रिश्वत को कानूनी मान्यता दे देनी चाहिए."

अब भ्रष्टाचार की जड़ें कैन्सर की तरह मजबूत हो गयी हैं और हर तरफ लोग इसमें लिप्त हैं और इससे त्रस्त भी हैं. हमारे नए प्रधानमंत्री जी ने चुनाव पूर्व लोगों की इसी दुखती रग पर अंगुली रखकर जन भावना का पूर्ण दोहन किया. व्यवस्था परिवर्तन अवश्यम्भावी हो गया था और परिणामों में परिलक्षित भी हुआ. लेकिन क्या इस भयंकर बीमारी से आसानी से निजात पाई जा सकती है? ये एक बड़ा 'यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर शायद नकार में ही मिलेगा. हाँ, अपवाद अवश्य मिलेंगे.

मेरे एक मित्र श्री त्रिलोचन त्रिवेदी बताते हैं कि सन १९६० के दशक में एक बहुचर्चित और आदरणीय डॉक्टर, दामोदर भट्ट, DMO के पद पर हुआ करते थे. उनको उनके पवित्र चरित्र और गुणों के कारण संपर्क मे आने वाले मरीज व अन्य लोग भगवान तुल्य माना करते थे. देश में जनसंख्या नियंत्रण के बारे में उन दिनों नसबंदी की मुहिम चली हुई थी. नसबंदी कराने वाले को २५ रूपये प्रोत्साहन राशि भी दी जाती थी, पर आम लोगों में इसके बारे में अनेक भ्रांतियां फैलाई गयी थी. इसे धर्म के साथ जोड़ कर प्रकृति के साथ खिलवाड़ कहा जाता था. लोगों में एक अनावश्यक डर बैठा हुआ था. ऐसे में दीवानगिरी नाम का एक गरीब छोटा काश्तकार स्वेच्छा से आकर अपनी नसबंदी करवाने आ गया. दीवानगिरी जनसंख्या नियंत्रण के सरकारी कार्यक्रम से बहुत प्रभावित था. डॉ. भट्ट को दीवानगिरी के इस प्रकार अगुआ बनने पर बहुत खुशी हुई उन्होंने दीवानगिरी से कहा, मैं तुमसे बहुत खुश हूँ तुम आज जो भी वरदान माँगना चाहो माँग लो, मैं सुलभ करवा दूंगा.

दीवानगिरी ने हाथ जोड़ कर कहा, मेरे एक बेटे को आप नौकरी पर लगवा दीजिए. बस.

डॉक्टर भट्ट समर्थ थे. दीवानगिरी के बेटे को अगले ही दिन से अस्पताल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में रख लिया गया. एक सप्ताह बाद अहसानमंद दीवानगिरी अपने घर का बना हुआ दो किलो शुद्ध घी और एक पोटली में लगभग पाँच किलो चावल  भेंट स्वरुप लेकर डॉ. भट्ट के निवास पर पहुँच गया. डॉक्टर साहब को उसकी ये हरकत बहुत बुरी लगी, बोले, तुम मुझे रिश्वत दे कर पाप का भागीदार बनाना चाहते हो. मैं तुम्हारे बेटे को अभी नौकरी से हटाने का आदेश करता हूँ.

दीवान गिरी रोने लगा और अपना अपराध स्वीकार करके माफी मांगने लगा. डॉक्टर साहब पसीज गए. उसके सामान की बाजार भाव से कीमत निकाल कर उसे पकड़ा दी और बोले, तुम अपने कान पकड़ कर तीन बार उठक-बैठक करो तथा कसम खाओ कि भविष्य में कभी किसी को रिश्वत नहीं दोगे.

ये सच्चे किस्से आज पौराणिक गल्प से लगने लगे हैं क्योंकि कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकाँश डॉक्टर मरीज की जेब पर नजर रखते हैं. रेवन्यू विभाग या अन्य पब्लिक डीलिंग्स वाले विभागों में अपना सादा काम निकलवाने की एवज में भी सुविधा शुल्क देना ही पड़ता है.

उपसंहार: ये जो हमें नजर आते हैं, भ्रष्टाचार-अनाचार के बिन्दु भर हैं. महासागर शोधन के संकल्प का क्या हश्र होगा? भविष्य बताएगा. 
*** 

5 टिप्‍पणियां:

  1. वर्तमान समय में हमारे देश, समाज अथवा प्रशासन/सरकार में केवल वही लोग ईमानदार रह गए हैं जिनको बेईमानी का मौक़ा नहीं पाया है.ye bilkul sahi kaha hai aapne .aaj lalbahadur shastri ji jaise log milne asambhav hain .nice post .

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  2. बेईमानी अब रग रग में व्याप्त है। कोई कर्मचारी या अधिकारी उपर की कुछ कमाई प्रतिदिन घर लेकर नहीं आता तो बीबी भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखती।

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  3. उम्मीद करते हैं कि मोदी सरकार को यश मिले।

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  4. भ्रष्‍टाचार की परिभाषा काफी उलझी हुई है। बेईमानी करनेवाला अपनी व्‍यक्तिगत रूचि से बेईमानी नहीं करता। यह तो विलासिता आधुनिकता का दंश है, जिससे चाहकर भी मुक्ति नहीं मिल सकती।

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  5. जो पहले कभी हराम होता था वह आज ईमान हो गया है,शायद अब कुछ बदलाव आ जाये,संभावना तो काम ही है , इस को इतनी आसानी से समाप्त करना , सामयिक मुद्दे पर अच्छे लेखन के लिए धन्यवाद

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