पाठक बंधु (स्व.
नंदकिशोर एवं स्व.मदनगोपाल)
जिस तरह एक भागती
हुयी रेलगाड़ी से पीछे के दृश्य छूटते चले जाते हैं वैसे ही लाखेरी में बिताये
दिनों के अनेक सुहृद व्यक्तियों की छवि कई बार मेरे सामने आती है.
अकाउंट्स आफिस में
कार्यरत दो पाठक बंधु जो शर्मा उपनाम लिखा करते थे स्व. नंदकिशोर व उनके अनुज स्व.
मदनगोपाल; दोनों ही मधुरभाषी और अपने काम में माहिर थे. उन दिनों (१९६० में) कंप्यूटर
नहीं होते थे. सारा लेखाजोखा मैनुअल हुआ करता था. अकाउंट्स आफिस एक व्यस्त विभाग
होता था. सारे लेजर व वेजेज सीट तैयार करने से लेकर विभागों में जाकर कर्मचारियों
को वेतन वितरण करना बाबुओं की ड्यूटी हुआ करती थी. अकाउंटेंट्स सर्वश्री जे.पी. गुप्ता,
केशवदत्त अनंत, शरत बाबू (तिवारी), भगवती प्रसाद कुलश्रेष्ठ, प्रभुलाल महेश्वरी,
जोबनपुत्रा, मो. इब्राहीम हनीफी आदि अनेक यादगार चेहरों के बीच ये दोनों भाई
कम्पनी के अच्छे वर्कर्स में गिने जाते थे.
मूल रूप से झालावाड़ के ताराज गाँव के रहने वाले ये बन्धुद्वय सरकारी स्कूलों का अध्यापन छोड़कर आये थे.
उन दिनों ए.सी.सी. का अच्छा वेतन+बोनस व अन्य सुविधाएं सभी को ललचाती थी, और फिर यहीं
का होकर रह गए.
सभी पारिवारिक सुख
प्राप्त इनके परिवार कालोनी में रहते हुए सभी सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल रहते
थे.
नंदकिशोर जी का
सुपुत्र प्रदीप पाठक (मैकनिकल इंजीनियर) ए.सी.सी. में ही नियोजित रहे. अब रिटायर
होकर कोटा में बस गए हैं. चार पुत्रियाँ अपने अपने घरों में सुखी संपन्न हैं. मैं अपने
रिटायरमेंट के बाद एक साल (२००० में) कोटा में अपने पुत्र डॉ. पार्थ के साथ रहा. एक
बार नन्दकिशोर जी से मिलने उनके छावनी की घनी बस्ती में बने घर गया तो वे लपक कर
गले लग गये, इतना प्यार व अपनापन था.
स्व. मदनगोपाल जी
का सुपुत्र अरविन्द, वर्तमान में श्री सीमेंट (ब्यावर) में जनरल मैनेजर, तथा छोटा
प्रवीण कोटा के न्यायालय में रीडर के रूप में कार्यरत है. पुत्री अपने सुखी संपन्न
ससुराल में है. ये सभी बच्चे मेरे बचपन के दोस्त व मेरे बच्चों के सहपाठी रहे हैं.
स्व. वेदप्रकाश भारद्वाज
के अनुज नलिन भारद्वाज (एयर फ़ोर्स) की सुपुत्री अरविन्द की अर्धांगिनी है. इस प्रकार
ए.सी.सी. से जुड़े इस परिवार की जड़ें खूब गहरी हैं और वंशबेल बहुत लम्बी व पुष्पित
है. मैं अपने इस ग्रुप लाखों के लाखेरियन की तरफ से इनको अनेक शुभ कामनाएं देता
हूँ.
***