शनिवार, 8 अप्रैल 2017

सरकारी बेशर्मी

जस्टिस काटजू अपनी बेबाक व तल्ख़ टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं, फलस्वरूप वे सरकार और स्वयं न्यायपालिका को खटकते हैं.

शराब की दूकानें नेशनल हाईवेज से 500 मीटर दूर करने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश इसलिए सामने आया कि आसानी से सडकों पर शराब मिलने पर गाड़ीवान/ड्राईवर//गैरजिम्मेदार लोग सड़क चलते नागरिकों की नशे में जान ले लेते हैं या उनको चोट पहुंचाया करते हैं. कोर्ट का उद्देश्य बहुत साफ तथा लोकहितकारी था. जस्टिस काटजू ने जो कहा वह भी 200% सही है कि “क़ानून बनाने का काम विधायिका का है ना कि न्यायपालिका का.” लेकिन सता पर काबिज सरकारें / उनके नेता/ माफिया/ दलाल सब शराब की अंधाधुंध कमाई से पोषित रहे हैं, इसलिए इस गंभीर समस्या पर उत्तराखंड की नव निर्वाचित सरकार ने जो चोर रास्ता निकाला है वह सुप्रीम कोर्ट पर थूकने जैसा है.

एक तरफ पूरे उत्तराखंड में शराब बंदी की मांग को लेकर आम जन विशेषकर महिलायें संधर्षरत हैं, दूसरी तरफ सरकार द्वारा रातोंरात लगभग सभी हाईवेज का नया नक्शा बनाकर अपनी ‘शराबी नीति’ को उजागर कर दिया है, ताकि ये शराब की दूकानें पूर्ववत सडकों पर बनी रहे. ये बेशर्मी की पराकाष्ठा है.

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