मंगलवार, 17 जनवरी 2017

अच्छाई के तार दूर तक जुड़े रहते हैं (संस्मरण )

मेरे एक नजदीकी रिश्तेदार श्री महेश चंदोला सन 1981 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके नौकरी की तलाश में मेरे पास लाखेरी आये तो स्वाभाविक रूप से सब तरफ नौकरी की संभावनाओं की तलाश की गयी. मेरे एक पूर्व परिचित श्री पुष्पेन्द्र सिंह जी तब सवाईमाधोपुर स्थित जयपुर उद्योग (साहू जैन का सीमेंट कारखाना) की फलौदी माईन्स में मैनेजर थे. उन दिनों मोबाईल/ टेलीफोन की कोई सुविधा नहीं हुआ करती थी अत: मैंने एक पत्र साधारण डाक से इस सम्बन्ध में लिख भेजा. उन्होंने तुरंत प्रत्युत्तर में महेश जी को इंटरव्यू के लिए बुलावा भेज दिया.

श्री पुष्पेन्द्र सिंह जी सन 1964-65 में लाखेरी की हमारी माइन्स में एक जूनियर ऑफिसर (असिस्टेंट क्वारी मैनेजर) हुआ करते थे. मेरी उनसे कोई घनिष्टता नहीं थी. उन दिनों मैं लाखेरी बहुधंधी सहकारी समिति का अवैतनिक महामंत्री था और वे मात्र 10 रुपयों के एक शेयर के खाताधारक थे. परेशानियां बोल कर नहीं आती हैं. एक रात में अचानक श्रीमती सिंह को ब्रेन हैमरेज हो गया. डॉक्टर मुखर्जी और एक दो अन्य ऑफिसर्स के साथ उन्होंने मेरा दरवाजा खटखटाया. अपनी आपदा बताते हुए तुरंत 1000 रुपयों की व्यवस्था करने की बात कही. एक हजार रूपये उन दिनों बड़े मायने रखते थे. जूनियर ऑफिसर्स को मात्र 250 रूपये वेतन मिला करता था. गंभीर परिस्थिति देख कर मैंने रात को ही समिति की तिजोरी खुलवाई, और अपने नाम से 1000 रुपयों का संड्री एडवांस लेकर उनको दिया. वे श्रीमती सिंह को ईलाज के लिए जयपुर लेकर गए. भगवत कृपा से उनको जल्दी स्वास्थ्य लाभ हो गया. कुछ दिनों के बाद लाखेरी लौटकर उन्होंने ये रकम लौटा दी. "A friend in need is a friend indeed" वाली बात उनके जेहन में अवश्य रही होगी इसलिए उन्होंने तुरंत कारवाही की. मैं स्वयं श्री महेश के साथ फलौदी माईन्स पहुंचा। उन्होंने हमें अपने आवास में ले जाकर श्रीमती सिंह के हाथों से बनाया भोजन कराया. उनका ये सत्कार अविस्मरणीय था. बाद में अपनी जीप में बैठा कर सवाईमाधोपुर प्रशासनिक कार्यालय में ले गये और इंटरव्यू के बाद श्री महेश चंदोला को ड्यूटी जॉइन करने को कह दिया.

पुष्पेन्द्र जी खानदानी व्यक्ति हैं. मैंने उनसे परिचय का लाभ अपनी सहकारी समिति के विधान संशोधन के दौरान उनके ससुर श्री राजा निरंजन सिंह जी से लिया था. वे राजस्थान कोऑपरेटिव सोसाइटीज के रजिस्ट्रार हुआ करते थे.

पुष्पेन्द्र सिंह जी बाद के वर्षों में मंगलम सीमेंट में  उच्चाधिकारी हो गए थे.

महेश चंदोला जी ने फैकट्री में घूमकर बिजली की वायरिंग्स और कनेक्शन की दुर्दशा देखी तो वहां जॉइन ना करने का निश्चय किया. सचमुच सब तरह से मिसमैनेजमेंट के चलते जयपुर उद्योग का भट्टा जल्दी बैठ गया. महेश जी को उसी बीच गुजरात सरकार के जॉइंट वेंचर वाले सीमेंट उद्योग नर्मदा सीमेंट में नौकरी मिल गयी थी, और अब बिरला सीमेंट उद्योग की एक यूनिट में चीफ इलैक्ट्रिकल इंजीनियर के बतौर कार्यरत हैं. उनके संघर्ष के दिनों में पुष्पेन्द्रसिंह जी द्वारा दिखाई सह्रदयता को वे भी नहीं भूले हैं.
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