रविवार, 8 अप्रैल 2018

यादों का झरोखा - १४ लाखेरी रामायण

कुछ भूली बिसरी यादें जब कभी जीवंत हो जाती हैं तो गुदगुदा जाती हैं. उन दिनों जो छोटे बालक हुआ करते थे, वे अब बहुत सयाने हो गए हैं, और जब से फेसबुक-मैसेंजर का चलन आम हुआ है, मुझसे मित्रता करके पुराने दिनों की मस्ती पर कलम चलाने को कहते हैं.

कल एक मित्र सच्चिदानंद शर्मा ने जब मैसेंजर पर मुझे कॉल किया तो मुझे इस विशिष्ठ नामवाले को याद करने में देर नहीं लगी कि ये स्व. राम प्रसाद शर्मा जी (अध्यापक ए.सी.सी. स्कूल) के सुपुत्र हैं. इनको मैंने इनके शैशव दिनों में अपने पिता की साईकिल की बेबी सीट पर भी देखा था. बाद में ९० के दशक में कारखाने में क्लर्क बनते भी देखा था. ये भी याद है कि इन्होने कंपनी की नौकरी छोड़ कर अन्यत्र अध्यापन का कार्य करना शुरू कर दिया था. हाँ तो, सच्चिदानंद शर्मा जी ने बताया कि वे आजकल 'लाखेरी हायर सेकेंडरी स्कूल' के प्रिंसिपल हैं. उन्होंने मेरे पुत्र डॉ. पार्थ के बारे में भी जानकारी चाही ,और कहा कि वे उनके साथ इसी स्कूल में पढ़े थे. उनकी वार्ता सुन कर अतीव खुशी हुई. मैंने दिल से बधाई दी. मुझे उनके पिता का मोटा चश्मा व ब्रह्मपुरी स्थित घर, सब कुछ कल्पना में सामने दिखा, और एक विशिष्ठ घटना भी सिनेमा रील की तरह घूम गई, जो इस प्रकार है. 

सन १९७६ का होलिकोत्सव – हास्य सम्मलेन था. १९७० से ७४ के बीच जब मैं शाहाबाद (कर्नाटक) में रहा तो मेरी अनुपस्थिति में आदरणीय फेरुसिंह रूहेला (बाद में हेडमास्टर बने) ने होली समिति के सेक्रेटरी के रूप में कार्यक्रमों को संचालित किया और मेरे द्वारा निर्धारित पिछली लीक पर इसे मनोरंजक बनाए रखा.  

हास्य सम्मलेन में प्रहसन, गीत-संगीत, नृत्य, चुटकुले, उपाधि वितरण सब स्थानीय हास्य से ओतप्रोत होते थे. नौजवान कलाकार अनिल तिवारी, अब्दुल मालिक, चन्द्र शेखर तिवारी (टीटू), भगवान दलेर, सुखदेव शर्मा, श्री बल्लभ तिवारी, किशन महेश्वरी, अजित जोशी, अब्दुल रशीद पठान, आदि अनेक लोगों का योगदान रहता था और मैं कार्यक्रम सूत्रधार रहता था.

सन १९७६ के हास्य सम्मलेन के लिए मैंने एक ‘लाखेरी रामायण’ लिखी, जिसका श्रोताओं ने भरपूर आनंद लिया. इस रचना में ‘राम’ शब्द वाले तमाम नामों को हास्य रूपक में गूंथा गया था. वह रचना अब मेरे पास नहीं है, पर उसके कुछ मजेदार अंश मेरी स्मृति में हैं. मैं अपने पाठकों के मनोरंजन के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ:

मैं लिखने जा रहा हूँ एक ‘लाखेरी रामायण,’जिसके लिए मुझे तलाश है एक अदद राम की!
मैंने यूनियन प्रेसीडेंट रामाजी से जब पूछा
तो वे बोले “मूँ तो अनपढ़ छूं, चौपाईयां कस्यां बोलूंगो.”इतने में मिल गए बड़ी बड़ी मूछों वाले मौलाराम
उनको प्रस्ताव यों नहीं भाया कि वे अपनी पत्नी का – अपहरण नहीं करवा सकते थे.
टेकडी पर मास्टर राम प्रसाद मिले तो बोले
मैं बन जाऊंगा राम,
पर हेडमास्टर भारद्वाज अडंगा डालेंगे--आपस में खटपट के चलते,जब हेडमास्टर जी से किया जिक्र तो
भिड़ते ही बोले, “अरे मत बनाना इसको राम,
जिन छोरों को इसने पढ़ाया है –हुए हैं वे सब फेल,
तुम्हारी रामायण भी हो जायेगी डीरेल”....

यों तत्कालीन राम नाम वाले सभी राम किसन, राम नारायण, राम जीवन आदि नामों को रचना में घसीटा गया था. बहुत दिनों तक इस रामायण के दोहे चर्चा में रहे थे.

आज जब प्रिय सच्चिदानंद का फोन आया तो मैंने  स्वनामधन्य स्व. राम प्रसाद शर्मा जी के ‘जाए’+ 'पढ़ाये’ प्रधानाचार्य को मैंने हार्दिक बधाई दी. ऐसा लगा कि मेरी लाखेरी रामायण फेल नहीं, बहुत अच्छे अंकों से पास हुई है.
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1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-04-2017) को "छूना है मुझे चाँद को" (चर्चा अंक-2936) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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