रविवार, 13 मई 2018

यादों का झरोखा - २२ स्व. एन.एम्.जोबनपुत्रा



रोजगार की तलाश में आदमी कहाँ से कहाँ पहुच जाते हैं, स्व. नीतिचंद्र मणिलाल जोबनपुत्रा गुजरात के रहने वाले ग्वालियर की जे.बी.मंघाराम बिस्कुट फैक्ट्री में मुलाजिम थे और किसी नजदीकी सूत्र के माध्यम से १९५४ में अपनी पत्नी व बालक दिलीप को साथ लेकर लाखेरी एसीसी में बतौर क्लर्क नियुक्त हो गए थे. लगभग २२ बर्ष तक काम करने के बाद सिंदरी कारखाने के लिए उनको प्रमोशन देकर असिस्टेंट स्टोर कीपर का आफर दिया गया; मैं तब यानि १९७६ में कामगार संघ का जनरल सेक्रेटरी था वे बहुत पशोपेश में थे अंत में सिन्दरी जाने का निश्चय उन्होंने कर ही लिया.

उन दिनों क्लेरिकल स्टाफ के लिए जो नामिक्लेचार लागू था उनमें चौथे ग्रेड के बाद कोई ओपनिंग उनके लिए नहीं थी आगे चलकर सन १९७९ में नए अर्बिट्रेसन अवार्ड तैयार करते समय  नामेंक्लेचर में भी बदलाव के लिए श्री जी.एल.गोविल और फेडरेसन के जनरल सेक्रेटरी स्व. मोईनुद्दीन (डालमियाँपुरम के लीडर) की कमेटी बनी थी संयोग से फाईनल के दिन मैं और भाई इब्राहीम हनीफी वहां पहुच गए थे और हमने अपने हाथों से तैयारसुदा कागजों में सुधार करवाया था जिसके अनुसार क्लेरिकल स्टाफ के लिए सातवीं ग्रेड तक ओपनिग दी गयी.

लाखेरी अकाउन्ट्स आफिस में पुराने धुरंधर लोगों की जमात थी जिनमें केशवदत्त अनंत, हरिभाई देसाई, सुवालाल व्यास, लखनलाल वर्मा, पाठक बंधु नंदकिशोर और मदनगोपाल, लाला भगवतीप्रसाद कुलश्रेष्ठ, शरदकुमार तिवारी व जोबनपुत्रा थे. स्व.जे.पी गुप्ता अकाउंटेंट थे. स्व.   
शिवप्रशाद शर्मा तब CTK थे, वी.एन शर्मा और अमीन पठान टाईमकीपर हुआ करते थे. बहुतों के नाम में अब शायद भूल भी रहा हूँ. जोबनपुत्रा ‘cost cabin ’ में बैठते थे उसे गोपनीय टेबुल माना जाता था.   

इकहरे बदन के जोबनपुत्रा हमेशा खुशमिजाज नजर आते थे यारबाज भी थे स्व.पी.बी.दीक्षित (तब कैमिस्ट), जोबनपुत्रा, अमृतराय. रक्षपाल शर्मा, मथुराप्रशाद बर्नर, शरदकुमार तिवारी आदि की एक हमप्याला मित्र मंडली भी चर्चित थी. जी टाईप के सामने श्रीपत चौक पर जो बड़ा पीपल का पेड़ है उसके सामने वाले एल टाईप क्वाटर में उनका आशियाना हुआ करता था.

लाखेरी से सिंदरी जाते समय उनके दो बेटे व तीन बेटियों का परिवार विस्तार हो चुका था.बड़ा बेटा दिलीप व अतुल दोनों ने कैमोर इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट से ट्रेनिग करके क्रमश: द्वारका व पोरबंदर कारखानों में नियुक्ति पाई ये उन कारखानों के बिकने/ बंद होने तक वहाँ रोजगार में भी रहे, बेटियाँ तीनों विवाहित हैं, सबसे छोटी ममता जिसने एलन गोंसाल्विस (पुत्र स्व. फ्रांसिस गोंसाल्विस फोरमैन MVD  लाखेरी ) से प्रेम विवाह किया और वे दोनों ही फेस बुक पर हमारी मित्रों की लिस्ट में हैं. एलन भी कैमोर ट्रेंड है, एसीसी के कई कारखानों में काम करते हुए गुजरात से खाडी देश में कहीं काम करके वापस अहमदाबाद में सैटिल हैं, इनके बच्चे शिक्षा पाकर अच्छे जॉब में लगे हुए हैं. ऐसा ममता से संवाद करने पर मालूम हुआ है.

नीतिचंद्र जोबनपुत्रा लाखेरी से जाने के तीन साल बाद ही स्वर्ग सिधार गए थे लाखेरी में तब ये दुखद समाचार आया था कि शराब ही उनकी आकस्मिक मौत का कारण बनी थी. सुन्दर देहयष्टि वाली श्रीमती जोबनपुत्रा ने बच्चों को पति की अनुपस्थिति में बड़ी मेहनत से पाला पोसा है. अब तो दिलीप भी सेवानिवृत्त हो चुके हैं. सन २०१२ में श्रीमती जोबनपुत्रा का भी स्वर्गवास हो गया, इन लोगों को लाखेरी छोड़े हुए ४२ वर्ष हो गए हैं पर लगता है कि कल की सी बात है. समय जरूर अपने निसान पीछे छोड़ जाता है.

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