स्व. पंडित गजानंद
‘सखा’ (तिवारी) लाखेरी के इतिहास में एक अमर व्यक्ति हैं. वे ब्रह्मपुरी में निवास
करते थे और एसीसी कालोनी के लगभग सभी हिन्दू घरों में उनकी आवक थी. वे सत्यनारायण
भगवान् की पूजा+कथा एक विशिष्ठ शैली (राधेश्यामी तर्ज) में हारमोनियम+ढोलक+मंजीरों की संगीतमय मनमोहक
अंदाज में किया करते थे.
जैसा कि सत्यनारायण
की कथा के सन्दर्भ में कहा गया है कि एकादशी, पूर्णिमा, अमावास या कोई मनभावन दिन ब्रत
रख कर पूजन किया जा सकता है. विशेष रूप से बेटा-बेटी के व्याह के बाद इनकी पूजा
पारंपरिक अनुष्ठान की तरह की जाती है. कथा वाचक तो और भी थे पर सखा जी की बात अलग
ही थी. उनकी रसीली बुलंद आवाज आज भी श्रोताओं के दिलों में बसी हुयी है.
सखा जी को
स्वर्गवासी हुए दो साल से अधिक समय हो चुका है. मैं सन २०१४ में आख़िरी बार उनसे
मिलने उनके घर पर अपने साथी श्री रामस्वरूप गोचर के साथ गया था तब ये सोचा भी नहीं
था कि मुलाक़ात आख़री होगी. मैं उनकी वाणी में रिकार्डेड सत्यनारायण भगवान् की कथा
का टेप लेने के ख़ास उद्देश्य से गया था जो उनके बताये अनुसार नगरपालिका भवन के
सामने एक दूकान पर मात्र ३५ रूपये कीमत पर मिल भी गया. इस अमूल्य टेप को मैं अपने
घर पर आज भी गाहे-बगाहे सुनकर आनंदित होता हूँ.
सखा जी से मेरी
मित्रता सन १९६० में ही हो गयी थी तब वे बाटम रेलवे फाटक के पास एक पक्के खोमचे
में पान की छोटी सी दूकान चलाया करते थे. यहीं से उनकी पंडिताई भी चलती थी. बाद के
बर्षों में कंपनी ने इसे अपना रिजर्व एरिया बता कर खाली करवा लिया था. अब यहाँ
फल-फ्रूट, सब्जी का बाजार सजता है.
सखा जी एक
साफ़-सुथरी संस्कारी व्यक्ति थे मैंने उनसे ये कभी नहीं पूछा कि राधेश्यामी तर्ज पर
कथा+पूजा करना कब और कहाँ सीखा था? मुझे किसी ने अपुष्ट तौर पर बताया था कि कुछ
अपरिहार्य परिस्थितियों में उनको जेल जाना पडा था, जहां उनको कोई गुरु मिला, जिसने
उनको ये विद्या दी थी. ये कितना सच है मैं कह नहीं सकता हूँ.
राधेश्यामी तर्ज के
बारे में भी मैं अपने पाठकों को बताना चाहता हूँ कि बरेली, उत्तर प्रदेश में एक
महान संगीतकार + नाटककार पंडित राधेश्याम शर्मा (१८९०-१९६३) हुए हैं जिन्होंने
अल्फ्रेड कंपनी से जुड़कर वीर अभिमन्यु, भक्त प्रहलाद, श्रीकृष्णावतार आदि दर्जनों
संगीतमय नाटक/रचनाएँ लिखी और उनके सफल मंचन भी हुए. पर राधेश्याम जी को ज्यादे
प्रसिद्धि मिली उनके द्वारा पद्यबद्ध संगीत वाले ‘रामायण’ से. आज भी समस्त उत्तर
भारत में में जो रामलीलाएं खेली जाती हैं उनमें राधेश्यामी तर्ज पर दोहे व
चौपाइयां गाई जाती हैं.
सखा जी के कोई पुत्र
नहीं था, तीन विवाहित बेटियाँ थी/हैं. बाद के बर्षों में उन्होंने अपना एकाकीपन ईश्वर
को समर्पित करके ब्रह्मपुरी के आगे लाकडेश्वर
महादेव नाम से एक छोटा किन्तु भव्य मंदिर बना कर पूरा किया.
उनके भजन के श्वर :
“लेते जाओ रे हरी का नाम थोड़ा थोड़ा; दौड़ा जाए समय का घोड़ा......” आज भी वातावरण
में गूँज रहे हैं.
हार्दिक
श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ.
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