शनिवार, 2 जून 2018

न्यूनता का अहसास (एक बोध कथा)


अश्वमेध यज्ञ करने के पशचात भी राजा धमाल को लगता था कि उसके चक्रवर्ती होने में अभी भी कुछ कमी रह गयी. उसके राज्य की सीमा में एक दुरूह शिखर था, जिस पर अपने नाम का शिलापट्ट सुशोभित करने का विचार मन में आया तो अपने दरबारी नवरत्नों को लेकर पैदल ही शिखर पर चढने लगा. बहुत संकीर्ण पथरीले मार्ग से कष्टपूर्वक जब वह चोटी पर पहुचा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि वहा उपलब्ध समस्त शिलाखंडों पर पहले से ही अनेक विभूतियों के नाम खुदे पड़े थे. जिस मुकाम पर वह आज पहुचा था वहाँ हजारों हजारों साल पहले से ही उन महामानवों के कीर्ति में शिलाखंड विराजमान थे.

उसका अभिमानी मन तड़प उठा, उसने कारिंदों को आदेश दिया कि “सबसे बड़े शिलापट्ट को मिटाकर तथा नए ढंग से तराश कर अपना नाम लिख दिया जाय.”

नवरत्नों में से एक भविष्यदर्शी – बुद्धिमान मंत्री ने रोकते हुए कहा “आप जो करने जा रहे हैं वह एक घातक परम्परा होगी क्योंकि भविष्य में भी कोई चक्रवर्ती राजा अवश्य पैदा होगा जो आपके नाम के शिलापट्ट को तराश कर अपना नाम लिखवाकर खुश होगा. इसलिए आप अनुचित परम्परा मत डालिए.”

राजा धमाल को तुरंत अपनी न्यूनता का अहसास हो गया.

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