शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

सावधानी रखिये



अभी हाल में अखबार में एक समाचार छापा था कि गुरुग्राम (हरियाणा) में एक परिवार के दो छोटे बच्चे रात को दूध पीकर सोये थे जो सुबह मृत पाए गए. अनजान  कारण की खोज करने पर पाया गया कि फ्रिज में रखे हुए दूध के बर्तन में एक जहरीले सांप का मरा हुआ बच्चा था, ये सांप का बच्चा कहाँ से आया होगा?  इस बारे में तफसील से जांच करने के बाद ये मालूम हुआ कि उसी फ्रिज में हरी पत्तियों वाली सब्जी भी रखी गयी थी, जिसके साथ सांप का बच्चा भी आ गया होगा और रेंगते हुए दूध के बर्तन में जा गिरा होगा. ये असावधानी पीड़ित परिवार के लिए बड़ी त्रासदी बन कर रह गयी.

बरसात के दिनों में ऐसे बहुत से विषैले कीट हरी सब्जियों में छुपे रहते हैं, इसीलिये इन दिनों में हरी पत्ती वाली सब्जियों को खाना बर्जित कहा गया है. थोड़ी सी असावधानी बड़े दुःख का कारण बन सकता है. खाने-पीने की वस्तुओं में बाहरी प्रदूषण तो हानिकारक होए ही हैं पर जहरीले कीट व नालियों में छुपे हुए काक्रोच भी बीमारियों के कारक हुआ करते हैं. रसोई में अकसर घरेलू छिपकली घुस आती है, इन्ही दिनों वह ओने-कोनों में अंडे-बच्चे भी दिया करती है. कहते हैं कि छिपकली द्वारा काटे जाने पर जहर नहीं लगता है लेकिन इसकी त्वचा में जहरीला पदार्थ होता है. इस कारण भी अनेक दुर्धटनाएं हुआ करती हैं. अत: भोज्य पदार्थों को हमेशा ढककर रखना चाहिए.

अगर आप अपने जूते घर के बाहर बरामदे रखा करते हैं तो उनको पहनने से पहले सावधानीपूर्वक चेक कर लें कि उनके अन्दर जहरीली मकडी, बिच्छू, मिलीपैड, सांप या अन्य कोई खतरनाक कीड़ा ना छुपा हो.

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मंगलवार, 10 जुलाई 2018

यादों का झरोखा -२९ स्व. कांतिप्रसाद गौड़. (अध्यापक)



सन १९६१-६२ में लाखेरी एसीसी मिडिल स्कूल में करीब एक दर्जन जूनियर टीचर्स भरती किये गए थे, तब ये स्कूल हेडमास्टर स्व. गणेशबल भारद्वाज जी के नेतृत्व में अपने चरमोत्कर्ष पर था लगभग ३५ अध्यापक व ३२०० विद्यार्थी इससे सम्बद्ध थे. बूंदी जिले का ही नहीं पूरे राजस्थान प्रांत में ये एक उत्कृष्ट प्रतिष्ठान के रूप में जाना जाता था. इन एक दर्जन टीचर्स में शम्भूप्रसाद वर्मा, देवकिशन वर्मा, अत्तरसिंह, उदयसिंह जग्गी, शमशुद्दीन व कांतिप्रसाद गौड़ आदि थे.

स्व. कांतिप्रसाद के जीजा स्व, दयाकिशन शर्मा माइंस में सुपरवाइजर हुआ करते थे, दयाकिशन जी के बड़े भाई स्व. नंदकिशोर भारतीया भी तब क्वारी में क्लर्क के पद पर थे, बाद में विभागीय परिक्षा पास करके फोरमैन बने थे; रिटायरमेंट के समय वे कैमला माइंस में कार्यरत थे. ८० के दसक में दयाकिशन शर्मा रिजाइन करके ऊंचे पद+वेतन पर मिर्जापुर चले गए थे. अपने इन्ही रिश्तेदारों के स्रोत से कान्तिप्रसाद लाखेरी आये थे.

स्व. कांतिप्रसाद से मेरी नजदीकी तब हुयी जब वे सन १९७५ में यूनियन के चुनावों में अध्यापकों के प्रतिनिधि के रूप में चुन कर आये थे और उनको संगठन का ट्रेजरार बनाया गया था और उन्होंने इसे बखूबी निभाया भी. वे बहुत दिलेर व स्पष्टवादी व्यक्ति थे, आपातकाल/ संकटकाल में उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया. बाद में जब कंपनी द्वारा स्कूल का पराभव किया जाने लगा तो उन्होंने भी VRS  ले लिया और अपने गाँव (जिला बुलंद शहर) चले गए. उनके तीन बेटे थे सबसे बड़े संतोष उर्फ़ धीरेन्द्र कौशिक (अब स्वर्गीय) कैमोर इन्जीनियरिंग इंस्टीच्यूट से टेकनीशियन कोर्स करके गागल फैक्ट्री में पोस्टिंग में आ चुका था. सर्विस में रहते हुए ही उसका विवाह भी कर दिया था, बारात सवाईमाधोपुर रेलवे कालोनी में गयी थी, मैं भी उसमें शामिल था.

समय अपनी गति से भागता रहता है और हम लोग गुजर गए लोगों को धीरे धीरे भूलते चले जाते हैं. सं १९९७ में धीरेन्द्र ने खुद प्रयास करके लाखेरी स्थानातरण करवा लिया वह अपनी पत्नी तथा दो बच्चों के साथ सामान सहित सीधे मेरे क्वाटर G-23 में आ धमाका था क्योकि मैनेजमेंट ने इसी शर्त पर उसका स्थानान्तरण स्वीकार किया था कि क्वाटर नहीं दिया जाएगा (नए कारखाने के निर्माण के लिए बाहर से आये बहुत लोग लाखेरी में थे).

मैं तब यूनियन प्रेसिडेंट था, एक तरफ उसके पिता से पुराने रिश्ते थे और दूसरी तरफ धीरेन्द्र की होशियारी कि ‘अंकल के ही घर रहेंगे, वही व्यवस्था करेंगे.’  तब प्लांट हेड श्री पी.के.काकू थे मैंने उनको अपनी व्यथा बताई तो उन्होंने एक अबैनडेंट लेबर क्वाटर की रिपेयर करवाकर उसे अलाट कर दिया था.

सन २०१६ को जब मेरा लाखेरी जाना हुआ तो धीरेन्द्र मिला था वह तब कालोनी में किसी एल टाइप में रह रहा था ऐसा उसने बताया था. परसों जब लाखेरी से सूचना आई कि धीरेन्द्र कौशिक का रेलवे स्टेसन पर एकसीडेंट में निधन हो गया है  तो फेसबुक पर मित्रों को सूचित करने के लिए मुझे शोक में शब्द नहीं मिल रहे थे.

मृत्यु एक शाश्वत सत्य है पर अकाल मृत्यु पर अपार दुःख होता है लाखों के लाखेरियंस ग्रुप के सभी सवेदनशील लोगों ने उसके आकस्मिक निधन पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त की हैं. उसके बच्चे अब सयाने हो गए हैं पर पिता की कमी तो हमेशा रहेगी ही. इस दुःख की घड़ी में उनको हिम्मत रहे ये भगवान् से प्रार्थना करता हूँ.

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गुरुवार, 5 जुलाई 2018

यादों का झरोखा - २८ श्री सुरेन्द्र कुमार शर्मा (सिन्दु मास्साब)



लाखेरी में मेरे शुरुआती दिनों में अर्थात सन १९६० में जिन बुजुर्ग लोगों का हाथ मुझे आशीर्वाद देने के लिए उठाता था उनमें स्व. आर.डी.शर्मा (पावर हाउस में शिफ्ट इंजीनियर) भी एक थे. वे तब जी टाईप क्वाटर नंबर ८ या ९ में रहते थे, पड़ोस में पंडित शिवनारायण तिवारी (कंपाउंडर) थे शायद इसी नाते मेरा भी उनसे परिचय हुआ था. शर्मा जी बहुत ही मीठा बोलते थे पर मुझे बाद में उनके बड़े सुपुत्र स्व. गौरी शंकर शर्मा (मेरा घनिष्ट होने पर) ने मुझे बताया था कि बाबू जी घर में हिटलरी अंदाज में रहा करते थे. वे तब उनके रिटायरमेंट के करीब थे. उनके चार पुत्र गौरी शंकर, सुरेंद्र कुमार, त्रिलोकीनाथ और राजकुमार थे और सभी से मेरा मिलना जुलना था. भाई गौरी से मेरी विशिष्ट मित्रता यो भी हुई कि वे भी शेरो-शायरी व तुकबंदी किया करते थे. उन्होंने  इलेक्ट्रिसिटी पर एक छोटी किताब भी अपने नाम से प्रकाशित की थी जिसकी एक प्रति मुझे भी भेंट की थी जोकि आज भी मेरे बुकसेल्फ़ में मौजूद है.

स्व. गौरी शंकर को उत्तर पूर्वी रेलवे के इलाहाबाद जोन में क्लर्क की नौकरी मिल गयी थी. दुर्भाग्यबस कुछ समय बाद वे स्नायु संबंधी एक रोग से ग्रस्त हो गए थे उसमें पूरा शरीर कम्पन में आता था, वे लिखने के काम में असमर्थ हो चले थे पर रेलवे के उनके सहकर्मियों ने उनको तब तक निभाया, जब तक उनके लडके सयाने नहीं हुए. मेरी जानकारी में है कि उनका एक सुपुत्र अभी भी रेलवे के इलाहाबाद रेंज में सीनियर टी.टी.ई के पद पर कार्यरत है.

श्री सुरेन्द्र मास्साब को लाखेरी हायर सेकेंडरी स्कूल से निकले सभी स्टूडेंट्स ‘सिन्दु मास्साब’ के नाम से जानते हैं लम्बे समय तक फीजिकल ट्रेनिंग/ स्पोर्ट्स/ एन.सी.सी टीचर अथवा लेक्चरार के रूप में वे लाखेरी हायर सेकेंडरी में रहे. मैं सुनता था की वे अध्यापकों व छात्रों की राजनीति में हमेशा सक्रिय रहा करते थे. मेरा उनसे कोई सीधा कार्य-व्यवहार नहीं था पर वे मुझे हमेशा ‘भाई साहब’ के रिश्ते से संबोधित किया करते थे. वे कुछ साल पहले रिटायर हो चुके हैं, लाखेरी रेलवे स्टेसन के सामने कोटा रोड पर उन्होंने बहुत पहले ही अपना आशियाना बना लिया था. अब वे अपने जीवन के तीसरे प्रहार में परिवार के मुखिया की भूमिका में होंगे. पर मुझे बताया गया है कि वे सामाजिक कार्यों में सक्रिय भूमिका अदा किया करते हैं. पिछले बर्षों में एक दुःखदाई घटना जरूर उनके परिवार में हुई कि उनका एक पुत्र असमय स्वर्गवासी हो गया. जीवन मृत्यु ऊपर वाला तय करता है, संसार का नियम है कि एक दिन सब को जाना होता है. हमारी संवेदना है.

अभी पिछले महीने गाजियाबाद से उनके छोटे भाई श्री त्रिलोकीनाथ का मैसेज अप्रत्याशित रूप से फोन पर मुझे मिला, उनकी कुशलक्षेम जानकार खुशी हुयी. त्रिलोकीनाथ यु.पी. में नरोरा परमाणु संस्थान में मुलाजिम थे अब रिटायर होकर अपने बच्चों के साथ सैटिल हो गए हैं, उन्होंने ह्वाट्स अप पर मुझे अपनी ताजी तश्वीर भेजी तो मुझे उनका वह किशोर रूप नजर आया जो कि एसीसी मिडिल स्कूल में पढ़ते समय था. त्रिलोकीनाथ से संपर्क करने में कोटा से उनके सहपाठी? श्री अनिल कुलश्रेष्ठ के सूत्र काम आये हैं.

फेसबुक पर बिछुड़े हुए लाखेरियंस को आपस में जोड़ने का माध्यम मुकुल वर्मा (हाल चांदा में कार्यरत) द्वारा बनाए ग्रुप ‘लाखों के लाखेरियन’ का बड़ा योगदान रहा है.

सिन्दु मास्साब को ‘जीवेत शरत: शतम’ की शुभकामनाओं के साथ इन यादों के झरोखे के इपिसोड बंद कर रहा हूँ; पर सभी मित्रों से अनुरोध करना चाहता हूँ की अपने अनुभव व कमेंट्स लिखने में कंजूसी ना करें. अपने निजी फोटो व सन्देश भी हम सबसे साझा किया करें.

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