सन १९६१-६२ में
लाखेरी एसीसी मिडिल स्कूल में करीब एक दर्जन जूनियर टीचर्स भरती किये गए थे, तब ये
स्कूल हेडमास्टर स्व. गणेशबल भारद्वाज जी के नेतृत्व में अपने चरमोत्कर्ष पर था
लगभग ३५ अध्यापक व ३२०० विद्यार्थी इससे सम्बद्ध थे. बूंदी जिले का ही नहीं पूरे
राजस्थान प्रांत में ये एक उत्कृष्ट प्रतिष्ठान के रूप में जाना जाता था. इन एक
दर्जन टीचर्स में शम्भूप्रसाद वर्मा, देवकिशन वर्मा, अत्तरसिंह, उदयसिंह जग्गी,
शमशुद्दीन व कांतिप्रसाद गौड़ आदि थे.
स्व. कांतिप्रसाद
के जीजा स्व, दयाकिशन शर्मा माइंस में सुपरवाइजर हुआ करते थे, दयाकिशन जी के बड़े
भाई स्व. नंदकिशोर भारतीया भी तब क्वारी में क्लर्क के पद पर थे, बाद में विभागीय
परिक्षा पास करके फोरमैन बने थे; रिटायरमेंट के समय वे कैमला माइंस में कार्यरत
थे. ८० के दसक में दयाकिशन शर्मा रिजाइन करके ऊंचे पद+वेतन पर मिर्जापुर चले गए थे.
अपने इन्ही रिश्तेदारों के स्रोत से कान्तिप्रसाद लाखेरी आये थे.
स्व. कांतिप्रसाद
से मेरी नजदीकी तब हुयी जब वे सन १९७५ में यूनियन के चुनावों में अध्यापकों के
प्रतिनिधि के रूप में चुन कर आये थे और उनको संगठन का ट्रेजरार बनाया गया था और
उन्होंने इसे बखूबी निभाया भी. वे बहुत दिलेर व स्पष्टवादी व्यक्ति थे, आपातकाल/
संकटकाल में उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया. बाद में जब कंपनी द्वारा स्कूल का
पराभव किया जाने लगा तो उन्होंने भी VRS
ले लिया और अपने गाँव (जिला बुलंद शहर) चले गए.
उनके तीन बेटे थे सबसे बड़े संतोष उर्फ़ धीरेन्द्र कौशिक (अब स्वर्गीय) कैमोर
इन्जीनियरिंग इंस्टीच्यूट से टेकनीशियन कोर्स करके गागल फैक्ट्री में पोस्टिंग में
आ चुका था. सर्विस में रहते हुए ही उसका विवाह भी कर दिया था, बारात सवाईमाधोपुर
रेलवे कालोनी में गयी थी, मैं भी उसमें शामिल था.
समय अपनी गति से
भागता रहता है और हम लोग गुजर गए लोगों को धीरे धीरे भूलते चले जाते हैं. सं १९९७
में धीरेन्द्र ने खुद प्रयास करके लाखेरी स्थानातरण करवा लिया वह अपनी पत्नी तथा दो बच्चों के साथ सामान सहित सीधे मेरे क्वाटर G-23 में आ धमाका था क्योकि मैनेजमेंट ने इसी शर्त पर उसका स्थानान्तरण स्वीकार
किया था कि क्वाटर नहीं दिया जाएगा (नए कारखाने के निर्माण के लिए बाहर से आये
बहुत लोग लाखेरी में थे).
मैं तब यूनियन प्रेसिडेंट
था, एक तरफ उसके पिता से पुराने रिश्ते थे और दूसरी तरफ धीरेन्द्र की होशियारी कि ‘अंकल
के ही घर रहेंगे, वही व्यवस्था करेंगे.’ तब प्लांट हेड श्री पी.के.काकू थे मैंने उनको
अपनी व्यथा बताई तो उन्होंने एक अबैनडेंट लेबर क्वाटर की रिपेयर करवाकर उसे अलाट
कर दिया था.
सन २०१६ को जब मेरा
लाखेरी जाना हुआ तो धीरेन्द्र मिला था वह तब कालोनी में किसी एल टाइप में रह रहा
था ऐसा उसने बताया था. परसों जब लाखेरी से सूचना आई कि धीरेन्द्र कौशिक का रेलवे
स्टेसन पर एकसीडेंट में निधन हो गया है तो
फेसबुक पर मित्रों को सूचित करने के लिए मुझे शोक में शब्द नहीं मिल रहे थे.
मृत्यु एक शाश्वत
सत्य है पर अकाल मृत्यु पर अपार दुःख होता है लाखों के लाखेरियंस ग्रुप के सभी
सवेदनशील लोगों ने उसके आकस्मिक निधन पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त की हैं. उसके बच्चे
अब सयाने हो गए हैं पर पिता की कमी तो हमेशा रहेगी ही. इस दुःख की घड़ी में उनको
हिम्मत रहे ये भगवान् से प्रार्थना करता हूँ.
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