गुरुवार, 2 सितंबर 2021

किसी को भला लगे या बुरा

 मोदी जी के सत्ता में आने के बाद कुछ ऐतिहासिक कार्य अवश्य हुए है जैसे सार्वजनिक सफाई अभियान, जम्मू कश्मीर से धारा ३७० हटाकर लद्दाख को अलग राज्य का दर्जा , बरसों से विवादित राम मंदिर का अहम् मुद्दा, देश की अंतर्राष्टीय छबि  काफी हद तक में सुधार आदि। 

प्रचंड बहुमत के रहते सरकार ने अनेक मनमाने आदेश/क़ानून बनाये, बरसों की मेहनत से बने श्रम कानूनों में उद्योगपतियों के हित निरस्त  किया, किसान आंदोलन का मुद्दा अभी भी मुंह बाए खड़ा है ये अनदेखी भविष्य में क्या गुल कहलाएगी कहा नहीं जा सकता है, रेलवे तथा अन्य कमाई उद्योगों का निजीकरण साफ़ तौर पर दिखाता है की इसके पीछे कुछ गण्यमान्य मित्रों को नवाजा जा रहा है.

मीडिया पर लगाम / लालच की बंदिश साफ़ महसूस की जा रही है,न्यायपालिका कहने को स्वतंत्र है लेकिन हमने अनुभव किया है कि सब गिरफ्त में चल रहे हैं  धार्मिक असहिष्णुता हर तरफ घोल दी गयी है, प्रचार माध्यमों पर करोड़ों अरबों न्यौछावर किये जा रहे हैं, ऐसा लगाने लगा है की सरकार का लक्ष सिर्फ चुनाव जीत रह गया है. नामनिहाल बुद्धिजीवी, विपक्षी नेता सब जैसे अंडरग्राउंड हो चले है क्योंकि सोचते हैं कि  इनसे कौन पंगा ले,जो पंगा लेने की स्थिति  में हैं भी सरकारी छापोपों व यातनाओं के दर के मारे चुप हैं.

अब आप कहते हो की आप मनमानी भी करो और कोई आवाज भी ना उठाये, पेट्रोलियम पदार्थ और रसोई गैस की बेतहाशा बृद्धि क्या मोदी जी को नहीं दिख रही  होगी? कहने इस लूट का पैसा सरकारी कल्याणकारी योजनाओं में खर्च हो रहा है, पर  कितने लोगों को ये सुलभ है? सच ये भी है कि देश वर्ड बैंक के कर्ज में डूबा हुआ है, ऐसा समय भी आ सकता है की आप व्याज की पूरी क़िस्त भी ना दे पाएं।

आज सोसल मीडिया पर केवल हिन्दू_मुस्लिम के विद्वेष भरे सन्देश प्रसारित किये जा रहे हैं, कट्टरता किसी भी व्यक्ति या राजनैतिक दल द्वारा अपनाई जा रही हो. घोर निंदनीय है. 

ये भी सत्य है कि सीधे तौर पर मोदी जी का को विकल्प नहीं दीख रहा है, पर मित्रो आपको आवाज तो उठानी पड़ेगी।

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1 टिप्पणी:

  1. बात में दम है। केवल किसान के मुद्दे पर मेरी असहमति है। किसान के लिए लाया गया कानून बहुत उपयोगी है । बाकी बोलने वालों का दमन तो सब जगह जाहिर है

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