शनिवार, 30 जुलाई 2011

विकल्प का संकल्प (व्यंग)

                           ( मेरी ये रचना १९९१ मे छ्पी थी, आज भी प्रासगिक है.)
जी हाँ! मैं एक प्रबुद्ध काँग्रेसी नेता हूँ.
गांधी का नेहरू का और इंदिरा का वारिस हूँ.
मैं वारिस हूँ १८५७ की क्रान्ति का,
जलियाँवाला का और १९४२ के आन्दोलन का.
             मैंने देश को आजादी दिलाई
              मैंने सामाजिक क्रान्ति कराई
नंगों को टेरीकाट पहनाया
हरिजन और अल्पसंख्यकों को ऊपर उठाया
किसी को मिनिस्टर किसी को गवर्नर बनाया.
कुछ को राष्ट्रपति तक बनाया.
             ये देश समस्याओं का सागर है
              और मैं गुणों का आगर हूँ
               ये तंत्र चलाने का मंत्र सिफ मेरे पास है.
विपक्ष? वाममार्गी-दक्षिणमार्गी?
ओह! ये अब सब मध्य मार्गी हो गये हैं.
मिलकर बार बार मोर्चा बनायेंगे
दूध और निम्बू एक कढाई में पकाएंगे.
             कभी नहीं कभी नहीं!
              ये मेरा विकल्प नहीं बन सकते हैं.
मेरा विकल्प तो मैं स्वयं हूँ
या मेरे घर में है.
मेरा बेटा, मेरी बीवी या बहूरानी.
                       ***
                         
                        (२)
मैं भारतीय संस्कृति का स्वरूप हूँ
हिन्दू-हिंदुत्व, राष्ट्र राष्ट्रीयता  का -
पहरेदार ही नहीं, ठेकेदार भी हूँ
मेरा संकल्प है की मैं-
भृष्ट काँग्रेसी व्यवस्था से मुक्ति दिलाऊँगा
मैं राम मंदिर बनवाऊँगा 
मैं रामराज लाउँगा
                  एक दिन इस देश का हिन्दू जागेगा
                   धर्म की जयकार करेगा
चूंकि पूरी सांस्कृतिक विरासत मेरे पास है
मैं ही कांग्रेस का स्थाई विकल्प हूँ
ये दीगर बात है कि मेरे घर में -
कांग्रेसी संस्कृति के घुसपैठ जारी है.
                            ***
              
                             (३)
मैं समाजवादी हूँ, मैं इंकलाबी हूँ,
मैं आम जनता समर्थित जनमोर्ची हूँ.
मैं देश के समस्त असंतुष्ट बुद्धिजीवियों का प्रतिनिधि हूँ.
मैं लोहिया की आत्मा हूँ
मैं जयप्रकाश के घोषणा हूँ
                    मैं भूखे नंगे व् बेरोजगार लोगों के-
                     दर्द का एहसास हूँ.
मैं मुसलमानों का हमदर्द हूँ.
उनके आरक्षण का हामी हूँ
मैं विरोध, विरोध के लिए करता हूँ.
चूँकि बहुमत बहुत दूर है
इसलिए मैं सत्ता के लिए -
पूरे कल्प तक कल्पना करता रहूँगा.
                       मुझे डर है कि कहीं -
कांग्रेस से निकले-निकाले हुए लोग -
मेरा झंडा न छीन लें.
पर मैं तो विकल्पी हूँ
विकल्प ही मेरा अंत है.
                              ***

                             (४)
साम्यवाद एक विज्ञान है.
जो भारत के उपजाऊ धरती पर
खूब उगेगा, खूब फलेगा.
मैं बहुत समय से तलाशता आ रहा हूँ -
एक लेनिन को,
एक माओत्से-तुंग को
जो नेतृत्व दे सर्वहारा को
                  मैं विकल्प नहीं बनाना चाहता किसी का-
                   क्योंकि मैं स्वयं ओरिजिनल हूँ.
मेरा संकल्प है - मुझे नव निर्माण करना है
एक बराबरी का समाज गढ़ना है.
लोग मुझे साम्यवादी, माओवादी नक्सलवादी-
कुछ भी कहें,मैं पहले तहस-नहस करूंगा.
फिर एकछत्र राज करूगा.
                      लेकिन मैं स्तब्ध हूँ
                       रूस और चीन ने -
                        सुधारवादी विचार लाकर
                        साम्यवाद के दांत तोड़ डाले हैं
इधर प्रतिक्रियावादी ताकतों ने
बंगाल और केरला में हमारी-
सत्ता लूटी है.
इसलिए अब हमको -
किसी गठ्वंदन में घुसकर
फिर से जगह बनानी होगी.
यही मेरा विकल्प है.

                     (५)

(इस रचना में ये बाद में जोड़ा जा रहा है):
                       
मैं विग्रही हूँ,
मेरे अलावा -
इस देश का हर नेता चोर है
भृष्ट है .
मैं युवाओं के आक्रोश का प्रतिनिधि हूँ.
दिल्ली को बदला है,
अब देश को बदलूँगा.
मैं आम आदमी हूँ
मैं झाडू  लेकर चलता हूँ
पर मेरा झाडू अभी किसी और के हाथ में है.
विकल्प मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है.
                          ***



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