शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

एक सर्वोदयी की डायरी


मेरे हाथों में श्री गोपालदत्त पांडेय जी लिखित पुस्तक अमेरिका में मेरे दो वर्ष है, जिसे मैंने ४ दिनों में आद्योपांत पढ़ डाला है. पिछले नवंबर में ही इस २४८ पृष्ठ की पुस्तक को प्रकाशित/विमोचित किया गया था. उनकी दैनिन्दिनी के रूप में सन १९६०-६१ के अमेरिका प्रवास के दौरान किये गए अपने संघर्षपूर्ण अनुभवों का विवरण एक अद्भुत खजाने के रूप में इसमें चित्रित है. अमेरिकी समाज का वास्तविक चरित्र वर्णित है, तथा समकालीन राजनैतिक इतिहास की झांकी भी है. इसके अलावा गाँधी दर्शन की बहुत बारीक व्याख्या लेखक ने जगह-जगह की है. धर्म के बारे में, आध्यात्म व भौतिकवाद का बड़ा ही सटीक चित्रण इस पुस्तक में किया गया है.

यद्यपि ८३ वर्षीय गोपालदत्त पाण्डेय जी कई कोणों से मेरी रिश्तेदारी में भी आते हैं, पर मैं अभी तक उनको एक सर्वोदयी तथा लघु उद्योगपति के रूप में ही जानता था क्योंकि उनसे मेरा सानिध्य बहुत कम हुआ है. उनकी इस पुस्तक को मैं एक वांगमय साहित्य के रूप में पा रहा हूँ और पढ़ कर अभिभूत हूँ कि इतने उच्च विचार व सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले गांधीवादी, समर्पित लोग आज भी समाज को दिशा दे रहे हैं.

संयुक्त राज्य अमेरिका में मुझे भी दो बार तीन-तीन महीनों के लिए जाने का अवसर मिला और मैंने अपने ढंग से वहाँ की दृश्यावलियों तथा स्थानों को एक साधारण टूरिस्ट की नजर से देखा और वर्णन किया लेकिन अमेरिकी परिवार व समाज की अंदरूनी संस्कारों तथा विसंगतियों का अनुभव करने का कोई अवसर मुझे नहीं मिला क्योंकि मैं वहाँ अपने बेटी-दामाद व नातिनी तथा उनके सहयोगी-साथयों तक ही सीमित रहा, जो लगभग सभी भारतीय ही थे. विदेशी लोगों से जो संपर्क हुआ वह हेलो-हाय तक ही सीमित था. आज जब मैंने गोपालदत्त पाण्डेय जी की पुस्तक पढ़ी तो अब जाकर मुझे अमेरिकी संस्कृति को जानने का अवसर मिला है. इस पुस्तक को पढ़े बगैर मेरे द्वारा की गयी यात्राएँ सचमुच इस दृष्टि से अधूरी होती.

इस पुस्तक में सनातन धर्म में अपनी आस्था का बखान करते हुए क्रिस्चियेनिटी पर तथा क्रिस्चियन लोगों के आस्था-विश्वासों का सजीव चित्रण किया गया है. कोकून’ में रहने वाले लोगों का मायोपिक विजन कितना सीमित होता है, इसके अनेक उदाहरण इस् पुस्तक में हैं. लेकिन उदार चरित्र वाले लोगों का भी जो वर्णन है वह ह्रदय को गदगद करने वाला है.

इस पूरी पुस्तक में शुरू से आखिर तक गोपालदत्त जी ने अपनी अर्धांगिनी श्रीमती रेवती देवी को केन्द्र में रख कर एक सत्चरित्र हिन्दू पति का जो स्वरुप बनाए रखा है वह अनुकरणीय तथा प्रेरणास्पद है. मैं उनके विराट व्यक्तित्व को सादर नमन करना चाहूँगा.

मेरे पाठकगण इस पुस्तक के विषय में अधिक जानकारी चाहें तो प्रकाशक-मनोरा, ग्राम-स्वराज्य आश्रम, रानी बाग, जिला नैनीताल, उत्तराखंड से संपर्क कर सकते हैं.
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