रविवार, 10 अगस्त 2014

एक पिकनिक ऐसी भी

दुर्घटनाऐं कभी सूचित करके नहीं आती हैं. टेलीवीजन पर पिछले महीने मध्यप्रदेश के बेतूल में एक दुस्साहसी बाइक-सवार अपनी बाइक सहित उफनती बरसाती नदी में देखते ही देखते बह गया. अभी एक अन्य समाचार में राजस्थान के टोंक जिले में बनास नदी से रेत निकालते समय पंद्रह मजदूर ट्रक सहित बहने वाले थे, परन्तु आसपास गाँव वालों द्वारा रस्सी के सहारे खींच कर बचा लिए गए. इससे पूर्व पिछले महीने में ही आंध्र प्रदेश से टूरिस्ट बन कर आये इन्जीनियरिंग के 24 छात्र हिमांचल में नदी की गोद में समा गए थे. ऐसी अनेक दुर्धटनाएं रोज हुआ करती हैं. इन दुर्घटनाओं में कहीं ना कहीं दुस्साहस या लापरवाही अवश्य रहती है.

आज से ठीक 25 साल पहले, सन 1989 में, मैं अपनी यूनियन (कर्मचारी संगठन) के 35 डेलीगेटों के साथ इसी प्रकार की एक भीषण दुर्घटना से बच निकला था.

लाखेरी (जिला बूंदी, राजस्थान) की ए.सी सी. सीमेंट फैक्ट्री के कर्मचारी संघठन की का मैं लम्बे समय तक प्रेसीडेंट रहा. कर्मचारी लोग अपने अपने समूहों में हर वर्ष बरसात के दिनों में कैम्पस से दूर, किसी रमणीय पिकनिक स्थल पर जाकर एक दिन आनंद पूर्वक छुट्टी मनाते थे. रोजमर्रा की अपाधापी को भुलाते हुए मस्ती में रह कर ताजे हो जाते थे. यूनियन के डेलीगेट एक वर्ष वर्षा की फुहारों व अरावली पर्वत माला की नयनाभिराम दृश्यों के बीच मैनाल नामक ऐतिहासिक स्थान को चल पड़े. मैनाल बूंदी शहर और चित्तोरगढ़ के बीच में स्थित है. ये एक छोटा सा ऐतिहासिक स्थल राजमार्ग के बगल में ही है. यहाँ लाल पत्थरों से बने महाबालेश्वर मंदिर पर खुदी हुई श्रंगारिक मानव आकृतियाँ व अन्य सुन्दर दर्शनीय कलाकृतियाँ 10-11वीं शताब्दी में चौहान वंश के राजाओं के समय बनी हुई हैं. इन इमारतों की बगल में एक बरसाती नाला बहुत दूर पठारों से पानी समेटते हुए कलकल करते हुए लगभग २५-३० फुट का झरना बन कर नीचे कुंड में गिरता रहता है. झरने के उस पार एक देवी का एक छोटा सा प्राचीन मंदिर है. स्थानीय लोगों की मान्यता है की ये देवी चमत्कारी है. देवी पूजन सामग्री के साथ एक ज़िंदा मुर्गा भी अर्पित किया जाता है. अत: मंदिर के अन्दर बाहर मुर्गों की जमात खाते-खेलते रहती है. यहाँ मुर्गों को पकड़ना या मारना पाप माना जाता है.

सैलानियों की सुविधा के लिए कई रसोइयाँ बनी हुयी हैं, जहाँ घी में तर राजस्थानी व्यंजन दाल-बाटी, कत्थ, चूरमा, गट्टे की सब्जी बनती हैं. पिकनिक के लिए आए लोग अपनी खाद्य सामग्री, उपले व बर्तन सब कुछ अपने साथ लेकर आते हैं. हमारे स्वयंसेवक पहुँचते ही अपने कार्य में जुट गए. बाकी लोग उधम-चौकड़ी मनोरंजन, झरना-स्नान करके आनंद लेते रहे. चूंकि 78 किलोमीटर वापस भी जाना था इसलिए 3 बजे भोजन परोस दिया गया. चिंता का विषय ये रहा की काले बादलों की आवाजाही बढ़ गयी थी. इधर हमारी टीम के दो ख़ास सदस्य सीन से गायब थे. पूछताछ करने पर मालूम हुआ की वे शराब के चक्कर में निकटवर्ती गाँव में गए हुए थे. मेरे अभिन्न साथी जनरल सेक्रेटरी  भाई इब्राहिम हनीफी व सेक्रेटरी रविकांत जी बहुत चिंतित व परेशान हो गए. मैं बहुत गुस्से में था, पर वक्त की नजाकत थी उन शराबियों को छोड़ कर भी नहीं आ सकते थे. इधर-उधर तलाशने पर वे मिल भी गए, पर तब तक नाले में पानी की मात्रा बढ़ गयी थी. बस ड्राइवर ने दुस्साहस किया नाले को पार करने के लिए सभी लोगों को बस में बिठा लिया. सभी की जान सूख रही थी, पर कोई विकल्प नहीं था. अन्धेरा छाने लगा था. कुछ भी अनहोनी हो सकती थी. नाले का पानी 20 फीट पाट तक फ़ैल चुका था. अगर बीच में बस पलट गयी होती तो सीधे झरने में गए होते. हम सबका भाग्य अच्छा था. होशियार ड्राइवर ने धीरे धीरे नाला पार कर लिया. भगवान को अनेक धन्यवाद दिये.

उसके बाद आने वाले 9 सालों में जब तक में प्रेसीडेंट रहा, बहुत सावधानी पूर्वक पर्यटन स्थलों का चयन किया गया तथा डेलीगेटों के लिए आचार संहिता तय की गयी की पिकनिक के दौरान कोई शराब का सेवन नहीं करेगा.

उस पिकनिक में हुए अनुभव को मैं आज भी भुलाए नहीं भूल पाता हूँ.
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6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (11-08-2014) को "प्यार का बन्धन: रक्षाबन्धन" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1702 पर भी होगी।
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    भाई-बहन के पवित्र प्रेम के प्रतीक
    पावन रक्षाबन्धन पर्व की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सच है दुस्साहस की कीमत कभी कभार अपनी जान से चुकानी पड़ती है। सुन्दर तथ्यपरक यात्रा वृत्तांत लिखने में आप माहिर हैं। बधाई।

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    1. शर्मा जी को नमस्कार, टिप्पणी के लिए धन्यवाद. पिछले आठ महीनों से लिखने-पढ़ने से अरुचि सी हो रही है. थका थका महसूस करता हूँ. कहीं तो विराम लगना है. .

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  3. सही कहा ऐसे क्षण बहुत कुछ सोचने को विवश कर देते हैं।

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  4. सिर पर खड़ी मृत्यु का अनुभव ऐसा ही होता है !

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  5. परसों हम भी हो आए मैनाल! अब वह स्थान बहुत खूबसूरत है। दुबारा जा कर आइए।

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