बच्चो, आज से साठ-सत्तर
साल पहले, जब मैं भी तुम्हारी उम्र का था तो मैंने एक मजेदार दन्तकथा सुनी थी या पढ़ी थी, जिसे मैं आज तुम्हें सुनाना चाहता हूँ.
जैसा कि तुमको मालूम है
पिछली शताब्दी से पहले विज्ञान की ऐसी उपलब्द्धियाँ नहीं थी जैसी की आज हमें प्राप्त
हैं. तब न रेडियो, न टेलीविज़न, न सिनेमा और न ही टेलीफोन-मोबाईल थे. मनोरंजन के लिए लोग नाटक,
प्रहसन, संगीत, नृत्य या मसखरों-बहुरूपियों-विदूषकों का सहारा लिया करते थे. तब राजा-रानी
भी हुआ करते थे, जो अपने दरबारी नवरत्नों में बुद्धिमान मंत्रियों, आशु कवियों व विदूषकों
को अवश्य पाला करते थे. ऐसे ही एक नामी राजा का दरबारी विदूषक जब आर्थिक तंगी में था
तो उसको एक उपाय सूझा, उसने अपनी पत्नी को रानी जी के पास भेजा. पत्नी रोनी सूरत बनाकर
रानी जी से बोली, “मेरा पति मर गया है. अंतिम संस्कार के लिए
धन नहीं है.” यह सुन कर रानी जी ने अफसोस जताया और एक
हजार सिक्के उसे दे दिए. जब पत्नी घर आई तो विदूषक खुद राजा के पास जाकर रोते हुए
बोला, “हुजूर, मेरी पत्नी का स्वर्गवास हो गया है. उसके अंतिम संस्कार
के लिए मेरे पास धन नहीं है.” राजा ने उसकी पत्नी की मृत्यु पर शोक जताया
और उसे अंतिम संस्कार के लिए एक हजार सिक्के दे दिए.
शाम को जब राजा व रानी
की मुलाक़ात हुई तो रानी ने दु:ख जताते हुए राजा को बताया कि "आपका
विदूषक मर गया है”. राजा ने तुरंत कहा, “विदूषक
नहीं, उसकी पत्नी मरी है.” इस बाबत दोनों में बहस हो गयी. तय हुआ कि अगले दिन सच्चाई जानने दोनों ही जने विदूषक
के घर जाकर अपनी बात की पुष्टि करेंगे.
विदूषक और उसकी पत्नी
ने राजा व रानी को दूर से ही आते हुए देख लिया तो तुरत-फुरत दोनों सफेद चादरें लपेट
कर मुर्दासन में घर के बाहर लेट गए. राजा-रानी को आया देख कर आसपास के लोग भी जमा हो
गए. राजा व रानी ने देखा मरे तो दोनों ही हैं, पर पहले किसकी मौत हुई, इस बाबत बहस
होने लगी. समस्या का हल निकलता न देखकर राजा ने घोषणा की, “जो
ये बताएगा कि पहले किसकी मौत हुई है, उसे एक हजार सिक्के ईनाम में दिए जायेंगे.”
लोग कुछ समझ पाते उससे
पहले विदूषक चादर हटाकर खड़ा हो गया और बोला, “हुजूर, पहले मैं मरा था." राजा-रानी भी उसकी इस
मसखरी पर मुस्कुराए बिना नहीं रह सके.
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सुन्दर !
जवाब देंहटाएंन्यू पोस्ट अनुभूति : लोरी !