बच्चों, भोजन के बिना
प्राणी ज़िंदा नहीं रह सकते. हम इंसानों का मुख्य भोजन है, अन्न. अन्न पैदा करने
वाले किसानों को अपने खेतों में कितनी मेहनत-मशक्कत करनी पड़ती है, इसका अंदाजा सहज में
नहीं लगाया जा सकता है. आपकी भोजन की जो थाली सजती है, उसको तैयार होने में अनेक हाथों
की ताकत लगी होती है. कभी तुम खेत-खलिहानों में जाकर खुद अनुभव करोगे तो तुम्हें
मेरी बात की सच्चाई पर असल ज्ञान होगा. बहुत से काश्तकार खुद भूखे, नंगे व बीमार रहते
हुए भी हमारे लिये अन्न पैदा करने में सारा
जीवन लगा देते हैं.
प्राय: देखा जाता है कि
जब शहरी लोग खाना खाते हैं तो बहुत सा भोजन थाली में छोड़ कर बर्बाद कर देते हैं. इसे
हम अन्न का अपमान भी कह सकते हैं. इसी सन्दर्भ में मुझे हमारे देश के प्रसिद्ध उद्योगपति
श्री नवल टाटा का एक विचारणीय संस्मरण पढ़ने को मिला. मैं उसे संक्षिप्त में आपको
भी बताना चाहता हूँ. वे लिखते हैं कि एक बार भारतीय उद्योगपतियों का एक दल बिजनेस ट्रिप
पर जर्मनी गया, जहां वे भोजनार्थ एक नामी बड़े रेस्टोरेंट में गए. हिन्दुस्तानी
आदतों के अनुसार सबने अपने लिए बहुविध व्यंजनों के ऑर्डर दिए. भोजन करने के बाद कई
लोगों ने आदत के अनुसार ढेर सारा खाना अपनी प्लेटों में बाकी छोड़ दिया. महानुभावों
को अनुभव नहीं था कि ‘जर्मनी के कानून के अनुसार भोजन बर्बाद करना अपराध होता
है.’ वहाँ के मैनेजर ने तुरंत
पुलिस बुला ली, जिसने उद्योगपतियों को खूब शर्मिन्दा किया, जुर्माना किया, और भविष्य
में ऐसी गलती ना करने की हिदायत देने के बाद छोड़ा.
हमारे शास्त्रों में भी
अन्न को परमात्मा का अंश कहा गया है इसलिए अन्न की बर्बादी रोकने का हर संभव प्रयास
करना चाहिये.
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