हमारे देश में कई
कस्बों व शहरों का नाम शाहाबाद है. मैं जिस शाहाबाद के बारे में लिखने जा रहा हूँ
वह कर्नाटक राज्य के उत्तरी जिले गुलबर्गा में स्थित है. ये पत्थरों का शहर है, जिसमें अंदरुनी सड़कों का पटांन पत्थरों का है. पुराने सभी मकान पत्थरों से बने हैं. पहले इन सभी की छतें भी पतले पत्थरों की स्लेटों से ही ढकी रहती थी. अब नए भवन जरूर
सीमेंट-आर.सी.सी. के बने नजर आते हैं. मैं पूरे ४१ साल बाद यहाँ आया हूँ. हमारा एसीसी
सीमेंट प्लांट २५ साल पहले किसी अन्य पार्टी को बेच दिया गया था फिर इसके कई मालिक
बदलते रहे हैं. वर्तमान में इस पर जे.पी. सीमेंट का बोर्ड लगा हुआ है.
मेरे साथ मेरी पत्नी
भी थी. उसकी तीव्र इच्छा थी कि कॉलोनी के उस घर को देखा जाए जिसमें सन १९७० से १९७४
तक चार साल हमने अपने सुनहरे दिन बिताये थे. लेकिन यहाँ की हालत देखकर बड़ा सदमा सा
लगा. ये सुन्दर कॉलोनी देखरेख के अभाव में पूरी तरह उजड़ गयी है. बहुत से क्वार्टर्स ध्वस्त हो गए हैं. सर्वत्र कटीली झाड़ियाँ उग आई हैं. हमारे उस क्वार्टर के पास जो
कैथोलिक चर्च की बिल्डिंग है, वह उदास खड़ी है. उसका बड़ा सा घंटा जरूर आज भी बजने का
इन्तजार कर रहा है. अब जब क्रिसमस के मात्र दस दिन शेष हैं, यहाँ कोई चहल पहल नहीं
है. कॉलोनी के बिजली पानी के कनेक्शन बरसों पहले कट चुके हैं. सर्वत्र उदासी है.
नए मालिकों ने अपनी
आवश्यकता के अनुसार फैक्ट्री की नई चहारदीवारी बना ली है. उसके बाहर कुछ पुराने
पीपल, नीम या जामुन के पेड़ जरूर हमें पहचान रहे होंगे, पर नि:शब्द थे. बीच में राम
मंदिर है. अब शायद ही वहां आरती होती होगी. मडडी की तरफ जो मस्जिद है, उसमें जरूर
ताजा रंग-रोगन दीख रहा था. जो इक्के दुक्के लोग मिले, वे सभी अपरिचित थे. मैंने अपने
उस क्वार्टर के सामने फोटो ली. चर्च का फोटो यादगार के लिए खींची ताकि हमारे बच्चे भी
अपने बचपन के दिनों को इस बहाने याद कर सकें. यद्यपि इस नज़ारे को देख कर मन भर आया
क्योंकि एक जीवंत बस्ती का पराभव हो चुका है.
एक दिन पहले, मैं घूमते
हुए वाडी सीमेंट फैक्ट्री की कॉलोनी के गेट पर स्थित कर्मचारी यूनियन (एटक) के
कार्यालय में गया, जहाँ स्व. श्रीनिवास गुडी जी की आदमकद फोटो लगी थी. मुझे लगा कि
वे एकटक मुझे देख रहे हैं और कुछ कहना चाहते हैं. वे एक समर्पित किसान नेता तथा
मजदूर हितैषी गांधीवादी कम्युनिस्ट नेता थे. मैं दो साल तक शाहाबाद में उनका जनरल
सेक्रेटरी रहा था. वे मेरे लाखेरी लौटने के बाद एक बार लाखेरी भी पधारे थे. वे एक
महान आत्मा थे. कार्यालय में बैठे एक बुजुर्ग ने बताया कि पूर्व नेता आईजय्या भी
स्वर्ग सिधार चुके हैं, जिनकी मूर्ति वाडी के लोगों ने कालोनी के बाहर स्थापित कर
रखी है.
शाहाबाद में मेरे साथ
यूनियन में जोईंट सेक्रेटरी रहे श्री गुरुनाथ बाद में विधायक और स्टेट लेबर
मिनिस्टर रहे, उनका फोन नंबर पाकर मैंने उनसे संपर्क साधा, वे आजकल विधान परिषद्
के चुनाव में गुलबर्गा/बीदर में व्यस्त हैं इसलिए अभी तक मुलाक़ात नहीं हो पाई है.
इस पूरे क्षेत्र में कई
महीनों से वर्षा नहीं हुई है. सर्वत्र सूखा है. खेतों में कपास व ज्वार की फसल खराब
हो रही है. लोग कहते हैं कि अकाल की स्थिति बनती जा रही है. यहाँ कगीना नदी (भीमा नदी
की ट्रिब्युटरी) अब सूखने लगी है. जगह जगह पानी रोक कर खींचा जा रहा है. वाडी फैक्ट्री
का प्रबंधन पानी की कमी से चिंतित है, ऐसा मैंने सुना है.
हैदराबाद से वाडी तक नेशनल
हाईवे बहुत शानदार है, पर वाडी और शाहाबाद के बीच हाईवे बहुत खराब स्थिति में है,
बदहाल है, हर गाड़ी के पीछे कच्ची सड़क का सा धूल का बवंडर दिखाई देता है. सड़क के दोनों
तरफ पट्टी-पत्थर निकालने की अनेक खदानें हैं, जिनमें आज भी मैनुअली कार्य होता है. इस
पूरे इलाके में थोड़ी थोड़ी दूरी पर अनेक सीमेंट के बड़े कारखाने उद्योगपतियों ने लगा
लिए हैं, पर इस क्षेत्र का सबसे पुराना शाहाबाद का कारखाना अपनी बर्बादी को रोता हुआ
नजर आता है.
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