कुछ ना बचा है कहने को
इस बार रंगीली होली में,
सब कुछ तो कह दिया था
पिछली बार की होली में.
दुल्हन जानकार लाये जिसको
नाच-नाच कर डोली में,
किन्नर निकला वह नखरेला
पकड़ा गया है बोली में.
सीमा पार की झूठी यारी
जहर बुझे हैं गोली में,
फिर भी ‘मुबारकबाद’
कहेंगे
‘नाजिम’ अपनी होली में.
है आग लगी महंगाई की
टोटे पड़ गए झोली में,
लफ्फाजी से पेट भरेंगे
निगाहें वोटर की चोली में.
आरक्षण की फिर ज्वाला
होगी
आग लगेगी घर-खोली में,
कुछ तो बोलो, कुछ तो बोलो
मुंह खोलो तुम इस होली में.
कहकहा मार हंस रहे बेशरम
कमा रहे घटतौली में,
जुमले बहुत हैं रंगों
के
फिर उछालेंगे रोली में.
रंगों का त्यौहार हमारा
आओ गले मिलेंगे होली में,
थोड़े में ही बहुत कहा
है
बुरा ना मानो होली में.
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बहुत सुन्दर रचना
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