मुसलमानों में वर्ण
व्यवस्था नहीं होती है लेकिन अपने गोत्र अथवा पेशे के अनुसार पहचान बनाए रखने के लिए
नाम के साथ उपनाम का चलन हिन्दू समाज का प्रभाव अथवा कन्वर्सन रहा है. लाला जमादार
भिश्ती थे; भिश्ती को बहिश्ती का अपभ्रंश कहा जाता है. बहिश्त का अर्थ फारसी में
जन्नत होता है पर अब इस समुदाय के लोग अब्बासी कहलाना पसंद करते हैं.
लाखेरी में गरमपुरा
तथा बाटम के सिंगल रूम क्वाटरों में अलग से पानी के नल नहीं हुआ करते थे लोग
सार्वजनिक नलों से पानी भरते थे अथवा भिश्ती चमड़े के मशक भर कर लाते थे और टंकियों
में डाल जाते थे. सर्विस शौचालयों व नालियों को धुलवाने का काम भी भिश्तियों के
जिम्मे होता था. बाटम में सैनिटेसन डिपार्टमेंट के ग्वाले/ गूजर केन भर कर लाते
थे.
सेनीटेसन बिभाग में
इन्स्पेक्टर के अलावा ६० से अधिक कामगार कार्यरत थे, काम की देखरेख के लिए दो
जमादार यानि मेट भी थे, लाला जमादार बड़ा कर्मठ और जिम्मेदार व्यक्ति थे. मैंने
लाला के अब्बू जलेब को गरमपुरा डिस्पेंसरी में काम करते हुए भी देखा था वे दुबले
पतले थे आदिवासियों की तरह रहते थे. तब कामगारों को ड्रेस नहीं मिलती थी. लाला के
अलावा उनका दूसरा बेटा कल्लू व तीसरा असनाद कारखाने में मजदूर थे. लाला जमादार का बड़ा बेटा अब्दुल
खलील इलेक्ट्रीशियन कैमोर ट्रेंड थे जो बाद में एसीसी छोड़कर अन्यत्र खाडी देश चला
गये. छोटे नजर मोहम्मद को उन्होंने एवजी में काम पर लगवा दिया था मझला हमीद सरकारी स्कूल में लाइब्रेरियन के बतौर कार्यरत था/है.
कंपनी ने गैरउत्पादक
विभागों में कर्मचारियों की संख्या धीरे धीरे कम करने की प्रक्रिया प्रथम वेज
बोर्ड लागू करने के साथ ही कर दी थी, नब्बे के दसक जब पूरे कारखाने की कायापलट
हुयी तो सेनीटेसन विभाग पूरी तरह ठेकेदारी माध्यम से चलाया जाने लगा. सेनीटरी इंस्पेक्टर स्व. लखनलाल वर्मा के बाद
श्री बी.एन.शर्मा के असिस्टेंट के बतौर लाला जमादार ने अपनी पूर्णकालिक ड्यूटी
अंजाम दी, जो अब इतिहास बन गया है.
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