पंडित रामकिशोर
शर्मा पैकिंग हाऊस में फिटर हुआ करते थे, माथे पर तिलक-रोली-चन्दन व रामनामी
अंगोछा उनकी पहचान होती थी, डिपार्टमेंट में शुभ मुहूर्त की पूजा, दीपावली पर
लक्ष्मी पूजा या विश्वकर्मा की पूजा उनके ही हाथों कराई जाती थी. वे गंभीर प्रकृति के
व्यक्ति थे अपनी ड्यूटी निष्ठा पूर्वक किया करते थे इसलिए उनके अधिकारियों के
प्रिय भी थे.
मेरा उनसे ज्यादा
संवाद नहीं था पर प्रारम्भ में कोआपरेटिव सोसाइटी
व बाद के बर्षों में युनियन के कार्यकलापों में बहुधा सामना हो जाया करता
था. सन १९७० से पहले हम एक त्रैमासिक पत्रिका ‘लाखेरी सन्देश’ निकाला करते थे
उसमें स्थानीय रचनाकारों की कृतियाँ, समाचार व मनोरंजक जानकारियाँ हुआ करती थी.
पंडित रामकिशोर जी ने एक लम्बी तुकबंदी वाली कविता ‘राजा और रानी’ शीर्षक से लिखी,
मुझे दी थी जो किसी अंक में छपी भी थी वह रचना अब मुझे याद तो नहीं रही पर उसकी एक
पंक्ति अक्सर मेरे जुबान पर रहती है:
‘खांसी सब रोगों की
रानी, हांसी सब झगड़ों की रानी.’
ये बात अब इतने
बर्षों के बाद याद यों आई है कि उनकी एक पौत्री सौभाग्यवती सीमा जोशी ने मैसेंजर
पर मुझसे संपर्क किया और पूछा “ मेरे दादा रामकिशोर शर्मा और मेरे नाना उच्छवलाल
शर्मा जी के बारे में भी आपकी स्मृति में कोई यादगार बात है?” लाखेरी की मेज नदी
में तब से अब तक लाखों नहीं करोड़ों टन पानी बह चुका है और मैं भी अपने हंसी-खुशी, झंझावातों
के चलते अब अस्सीवे बर्ष में प्रवेश कर चुका हूँ, ऐसे में उन दोनों मूर्तियों का
अपनी आँखें बंद करके साक्षात्कार करने लगा तो पैकिंग प्लांट में ही कार्यरत स्व.
उच्छ्वलाल शर्मा की मुस्कुराती हुयी चित्रावली सामने आ गयी, उनकी विशिष्ठ पहचान थी
कि उनके होंठों पर ल्यूकोडर्मा के निसान थे, मैंने सीमा को बताया कि बाकी उनके
जीवन चरित्र के बारे में मेरे पास कोई जानकारी नहीं है सिवाय इसके कि वे लाखेरी
ब्रह्मपुरी के निवासी थे. पंडित रामकिशोर शर्मा भी पहले पुरानी बसावट में रहते थे,
बाद में उन्होंने गांधीपुरा में तेजा जी मंदिर के सामने अपना आशियाना बनाया था.
तीन साल पहले सर्दियों में अपने कोटा प्रवास के दौरान में अपने पुत्र डा. पार्थ के
साथ सिर्फ मिलने जुलने के लिए जब दिनादिनी लाखेरी गया था तो फैक्ट्री व बाजार होते
हुए लाखेरी के रास्ते में गांधीपुरा प्रिय देवेन्द्र झा के घर पंहुचा तो सयोग से वहां पूजा पाठ चल रही थी और पुरोहित
थे झा के पहले पड़ोसी पंडित रामकिशोर जी. उन्होंने मुझसे एक दिन रुकने का आग्रह
किया पर मुझे उसी दिन वापस आना था, तब ये मालूम नहीं था कि उनसे वह आख़िरी मुलाक़ात थी.
कुछ महीनो/ बर्ष के अंतराल में उनका देहावसान हो गया था जिसकी सूचना किसी मित्र ने
फेसबुक के माध्यान से मुझे दी और मैंने इसी स्तम्भ में उनको अपनी श्रद्धांजलि
अर्पित की थी.
रामकिशोर जी के एक
पुत्र श्री कृष्णकुमार शर्मा लाखेरी की नगरपालिका में कार्यरत थे जो अब रिटायर हो
चुके हैं, सीमा जोशी इनकी ही सुपुत्री है. दूसरे पुत्र श्री जी.के.शर्मा मेरे
फेसबुक मित्रों की सूची में हैं, वे राजस्थान के मुख्यमंत्री कार्यालय में OSD-help line tech. & communication के पद पर कार्यरत हैं.
श्रीमती (अब
स्वर्गीय) रामकिशोर शर्मा कई बार अस्वस्थता की वजह से हमारे अस्पताल में आती थी,
यों मेरा सभी माता-बहनों से परिचय भी हो जाता था. इस नश्वर संसार की रीत यही है कि
सभी पेड़ों पर एक एक करके सभी पुराने पत्ते गिरते रहते हैं और नए पत्ते आते रहते
हैं. सही कहा गया है कि ‘ये जिन्दगी के मेले कभी ख़तम ना होंगे....’
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