शुक्रवार, 10 मई 2013

महाकवि भूषण

अब से लगभग ३५० वर्ष पूर्व का समय हिन्दी साहित्य की कविताओं का ‘रीति काल’ कहा जाता है. इससे पूर्व का समय ‘भक्ति काल’ के नाम से जाना जाता है. जिसमें सूरदास, तुलसीदास, कबीरदास, रैदास आदि अनेक कवि हुए थे.

रीति काल के कवियों की विशेषता यह थी कि वे श्रृंगारिक रचनाएँ लिखा करते थे. उस काल में लिखी गयी अनेक पुस्तकें अनुपम श्रृंगारिक हैं. उस काल के प्रमुख तीन कवियों में बिहारी, केशवदास और भूषण का नाम आता है. लेकिन भूषण कवि इन सबसे अलग रचनाकार थे. इन्होंने समकालीन श्रृंगारिक काव्य धारा से अलग देशभक्तिपूर्ण और वीर रस से ओतप्रोत रचनाएँ भी लिखी. जिनमें रौद्र और वीभत्स रस भी है. उन्होंने वीर शिवाजी को अपना आदर्श बना कर ‘शिवराज भूषण,’ तथा  ‘शिवा बावनी,’ और पन्ना  नरेश की शान में  ‘छत्रसाल दशक’ जैसे अद्वितीय ग्रंथों की रचना की. सर्व प्रथम बृजभाषा में रचित उनकी कविताओं में उर्दू, अरबी व फारसी के शब्दों की भी भरमार है. उनकी कवित्त तथा सवैय्यों में सभी अलंकारों का बड़ा खूबसूरत प्रयोग मिलता है.

भूषण कवि वीर शिवाजी के पौत्र साहू जी के दरबारी कवि थे. साथ ही पन्ना नरेश छत्रसाल के कृपापात्र भी थे. राजा छत्रसाल उनके बड़े प्रशंसक थे. उनका बचपन का नाम घनश्याम था  ‘भूषण’ उपाधि उनको चित्रकूट के राजपुत्र रूद्र ने प्रदान की थी और वे इसी नाम से प्रसिद्धि पा गए. भूषण में काव्य प्रतिभा बचपन से ही थी.'हिन्दी साहित्य का इतिहास' लिखने वाले  आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का कहना है कि मतिराम और चिंतामणि दोनों कवि, भूषण के सगे भाई थे. 

भूषण के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना का जिक्र अकसर आता है कि वे अपने आप को कविताओं में डुबोये रखते थे. कामधाम कुछ करते नहीं थे. एक बार भोजन में नमक कम होने पर उन्होंने रसोई में कार्यरत अपनी भाभी से नमक माँगा तो उसने उनके निठल्लेपन पर उलाहना देते हुए कुछ कह दिया. इस पर भूषण कवि भोजन छोड़ कर चल दिये. जब उनकी काव्य प्रतिभा पर खुश होकर राजा ने उन्हें एक लाख रूपये बतौर इनाम के दिये तो उन्होंने उस पूरी रकम का नमक खरीद कर बैल गाड़ियों की कतार में अपने गाँव तिकवापुर (कानपुर के निकट) भिजवाना शुरू कर दिया.

भूषण की कविताओं को हिन्दी की माध्यमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों पढ़ाया जाता है. उनकी कालजयी रचनाएँ आजीवन याद रहती है.

"इंद्र जिमी जम्भ पर, बाडव सु अम्भ पर..., तीन बेर खाती थी सो तीन बेर खाती हैं..., बिजन डुलाती थी वे, बिजन डुलाती है...," आदि मनमोहक रचनायें गुदगुदाती हैं. आज इतने वर्षों के बाद भी हम उस  महान रचनाकार को श्रद्धा से याद करते हैं.
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