शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

पद्म भूषण मोहनसिंह ओबेरॉय

अविभाजित भारत के पश्चिमी क्षेत्र के एक छोटे से गाँव, भौंन (पेशावर), में पैदा होने वाले स्व.मोहनसिंह ओबेरॉय का जीवन अध्यवसायिक चमत्कारों से भरा रहा. उनका जन्म सन १८९८ में और देहांत सन २००२ में हुआ. इस प्रकार यह महान व्यक्ति तीन सदियों में जिया और बहुत बड़ी विरासत छोड़कर गया. उनके पिता एक छोटे ठेकेदार थे, जो उनके होश सँभालने से पहले ही चल बसे थे. प्रारंभिक शिक्षा गाँव के नजदीक पाकर, वे ग्रेजुएशन के लिए रावलपिंडी होते हुए लाहौर आ गए थे, जहाँ उन्होंने नौकरी के निमित्त टाइप राइटिंग व शॉर्टहैंड सीखी. उस इलाके में प्लेग की दहशत होने पर वे वहाँ से पलायन करके शिमला आ गए.

कहा जाता है कि नौजवान मोहनसिंह जब Hotel Clarke के अंग्रेज मालिक मिस्टर क्लार्क के दफ्तर में रोजगार की तलाश में दाखिल हुआ तो उसने उसे बिना इजाजत अन्दर आने पर नाराजी के साथ बाहर जाने के लिए कहा. बाहर जाने से पहले मोहनसिंह ने जब फर्श पर एक आलपिन पड़ी देखी तो उठा कर मि. क्लार्क की टेबल पर रख दी. मोहनसिंह की इस आदर्शपूर्ण किफायती भावना से प्रभावित होकर मि. क्लार्क ने उसे सादर अपने होटल में बतौर लिपिक नौकरी पर रख लिया तथा धीरे धीरे जिम्मेदारियां बढ़ा दी. बाद में जब अंग्रेज लोग भारत छोड़ कर जाने लगे तो मि.क्लार्क ने होटल मोहनसिंह को बेच गया. इसके लिए धन जुटाने में मोहनसिंह को अपनी पत्नी के जेवर तक बेचने पड़े.

मोहनसिंह ओबेरॉय बहुत मेहनती थे साथ ही दूरदर्शी भी थे. वे कभी खाली नहीं बैठते थे. धीरे धीरे उन्होंने अन्य शहरों में भी होटल खरीदने या बनाने का काम शुरू कर दिया, जिसमें उस समय का कोलकता का Grand Hotel प्रमुख है. उन्होंने अपने होटल्स और रिसोर्ट्स को पाँच सितारा सुविधाओं के साथ विस्तार दिया तथा देश में इसे उद्योग के रूप में पहचान दी. ओबेरॉय ग्रुप के आज विश्व के सात देशों में ३७ होटल हैं, जिनका अपना अपना अलग अलग इतिहास है. भारत, नेपाल, इजिप्ट, आस्ट्रेलिया, हंग्री, व मारीशस में ओबेरॉय ग्रुप का बड़ा नाम है. इन होटलों में हजारों कार्यकुशल स्टाफ तैनात है. भारत में होटल उद्योग में सर्वप्रथम महिलाओं को भी कर्मचारियों के रूप में नियुक्ति देने का श्रेय ओबेरॉय जी को जाता है.

मोहनसिंह ओबेरॉय ने सन १९३६ में अपने संस्थाओं को ‘ग्रुप आफ ओबेरॉय’ नाम दिया, जिसके वे संस्थापक चेयरमैन रहे और लम्बे समय तक पद पर रहते हुए कारोबार को बढ़ाते रहे. अब उनके पुत्र ८२ वर्षीय पृथ्वीराजसिंह ओबेरॉय इसके चेयरमैन हैं.

श्री मोहनसिंह ओबेरॉय स्वतंत्र भारत की राजनीति में भी सक्रिय रहे. वे दो बार राज्य सभा के तथा एक बार लोकसभा के भी सदस्य चुने गए. ब्रिटिश राज में उनको राय बहादुर की उपाधि से नवाजा गया था और जीवन के अन्तिम प्रहर सन २००१ में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया.

स्व. एम.एस. ओबेरॉय अनूठे व्यक्तित्व वाले कर्मठ व्यक्ति थे जिनका जीवन अध्यवसायी लोगों के लिए एक दीपस्तंभ की तरह है.
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4 टिप्‍पणियां:

  1. निश्चय ही कर्मठता और लगन यश देते हैं।

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  2. आपने लिखा....हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {रविवार} 13/10/2013 को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल – अंकः 024 पर लिंक की गयी है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें। सादर ....ललित चाहार

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  3. किस्मत से ज्यादा कर्म पर विश्वास करने वाले जीत जाया करते है।

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  4. कहा जाता है कि नौजवान मोहनसिंह जब Hotel Clarke के अंग्रेज मालिक मिस्टर क्लार्क के दफ्तर में रोजगार की तलाश में दाखिल हुआ तो उसने उसे बिना इजाजत अन्दर आने पर नाराजी के साथ बाहर जाने के लिए कहा. बाहर जाने से पहले मोहनसिंह ने जब फर्श पर एक आलपिन पड़ी देखी तो उठा कर मि. क्लार्क की टेबल पर रख दी. मोहनसिंह की इस आदर्शपूर्ण किफायती भावना से प्रभावित होकर मि. क्लार्क ने उसे सादर अपने होटल में बतौर लिपिक नौकरी पर रख लिया तथा धीरे धीरे जिम्मेदारियां बढ़ा दी.

    इतने बारीक "जाले "सिर्फ यहीं बुने जाते हैं। व्यक्तित्व और कृतित्व जिजीविषा के धनी ओबेरॉय साहब से परिचय पुरुषोत्तम पाण्डेय कराएं और नायाब न रहे यह कैसे हो सकत है।

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