धनबाद जिले का ये
क्षेत्र प्राकृतिक संपदाओं से समृद्ध है इसलिए चूना-पत्थर,कोयला, लौह अयस्क व अन्य
खनिजों के उत्पादों के लिए अनेक बड़े उद्योगों की स्थापना देश की आजादी के बाद यहाँ
हुई है, तदनुसार ही प्रशिक्षित तकनीकी विशेषज्ञों की आवश्यकता हुई तो बिरसा मुंडा
प्राद्योगिक संस्थान व अन्य इंजीनियरिंग कालेजों की स्थापना हुई. यह बात विशेष है
कि इन्ही उद्योगों की वजह से सिन्दरी एक मैट्रोपोलीटीयन सिटी बन गयी. जिसमें कला,
साहित्य और संगीत का भी स्वाभाविक विकास हुआ है; पर यहाँ आज भी आदिवासी ‘मुंदरी’
भाषा के मनमोहक गीत व भजन सुने जा सकते हैं.
FCIL खाद का कारखाना – यों तो एक ब्रिटिस
कैमिकल कम्पनी ने १९४४ में ही यहाँ अमोनियम सल्फेट + जिप्सम से उर्वरक बनाना शुरू
कर दिया था पर उर्वरक को रफतार तब मिली जब देश आजाद हुआ १९५१ में तत्कालीन
प्रधानमंत्री स्व. जवाहरलाल नेहरू ने खाद कारखाने का उदघाटन करते हुए कहा था कि “ आधुनिक
भारत के मंदिर का उदघाटन कर रहा हूँ.” बाद में १९५९ व १९६१ में देश के अन्य उर्वरक
उद्योगों का विलय करके इसे एक निगम बना दिया गया जिसे FCIL नाम दिया गया. अमोनियम सल्फेट ,
यूरिया व अमोनियम नाइट्रेट यहाँ के मुख्य उत्पाद थे. २० हजार से अधिक लोगों को
रोजगार उपलब्द्ध था पर धीरे धीरे उत्पाद की लागत बढ़ने, नवीनीकरण न होने से तथा मिस
मैनेजमेंट के चलते (सरकारी उद्यमों की बीमारी रही है) ये कारखाना लगातार घाटे में
चलने लगा था और घिसटते हुए सन २००२ में बंद हो गया ; थी उसी तरह जैसे लाखेरी के
पड़ोस में सवाईमाधोपुर का डालमिया सीमेंट उद्योग बंद हुआ था. इस पर भी बहुत राजनीति
हुई पर उद्योग से जुड़े लोगों ने बड़ी त्रासदी झेली है.
इन कारखाने को
पुनर्जीवित करने सं २००७ से ही सार्थक प्रयास हुए पर अब छोटे स्तर पर जीवित करने
को २०१९ जनवरी में बेसिक कार्य शुरू हुआ है. इस नए प्रोजेक्ट में इनपुट के लिए
हल्दिया से गैस पाईप लाइन डालकर गैस का इस्तेमाल किया जाना है.
इस बीच पुराने
कारखाने के बदहाल खंडहरों व मशीनों को तथा आवासीय कालोनी से अवैध कब्जों को हटाने
की प्रक्रिया चल रही है. लोग १६ साल बाद फिर से खुशियों के इन्तजार में है.
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