(१)
एक बूढ़े आदमी से पत्रकार ने पूछा, “आपके लम्बे स्वस्थ जीवन का क्या राज है, क्या कभी डाक्टर के पास जाते हो?”
वे बोले, “डाक्टर को भी ज़िंदा रखना है, इसलिए कभी कभी उसके पास जाना ही पड़ता है.”
पत्रकार, “फिर?”
वे बोले, “हाँ, फिर कैमिस्ट के पास जाता हूँ. उसको भी ज़िंदा रखना है.”
पत्रकार, “दवा लेकर आते हो?”
वे बोले, “दवा लाकर कूड़ेदान में फैंक देता हूँ क्योंकि मुझको भी तो ज़िंदा रहना है.”
(२)
एक नेता जी चुनाव में हार गए. हार का सदमा था, फिर भी बाल कटाने नाई के पास चले गए. नाई था बड़ा बातूनी. बार बार नेता जी से उनके हार पर कुछ ना कुछ पूछे जा रहा था, और उनकी दुखती नस को छेड़ रहा था. नेता जी गुस्से में आकर बोले, “तू बाल काट रहा है या मेरे चुनाव का आपरेशन कर रहा है?”
नाई बोला, “सर, मैं जब आपसे हारने की बात करता हूँ तो आपके बाल खड़े हो जाते हैं, जिससे मुझे काटने में आसानी हो रही है.”
(३)
एक जाड़ों की दोपहरी में एक बड़े पेड़ के नीचे अपने बिल में से निकल कर चूहों का पूरा परिवार धूप का आनंद ले रहा था. छोटे-बड़े, चाचा, मामा, दादा-दादी, नाना-नानी सभी वहीं थे. अचानक एक बड़ा हाथी सामने से उसी दिशा में आया तो सारे के सारे तुरन्त पेड़ पर चढ गए.
हाथी उसी पेड़ के नीचे आकर ठहर गया और थोड़ी देर बाद वहीं पसर गया. बेचारे चूहे पेड़ में परेशान हो रहे थे. आपस में बात कर रहे थे कि हाथी को किस प्रकार भगाया जाये? इतने मे एक बच्चा चूहा ऊपर से फिसलकर हाथी के ऊपर जा गिरा. इस नज़ारे पर खुश हो कर सारे चूहे-चुहियाँ एक साथ चिल्ला कर बोले, “दबा साले को, दबा साले को.”
(४)
एक अदालत में जज साहब ने अभियुक्त से उसके बाप का नाम पूछा तो उसने धन्नालाल नाम बताया. जज साहब ने कहा, “पुलिस रिकार्ड में तो तुम्हारे बाप का नाम पन्नालाल लिखा है?”
इस पर अभियुक्त बोला, “साहब, पन्नालाल का तो मैं गेलड हूँ. असल में मेरा बाप का नाम धन्नालाल ही है.”
जज साहब की समझ में उसकी बात नहीं आई. उन्होंने कहा, "गेलड का क्या मतलब होता है?”
अभियुक्त ने स्पष्ट किया, “अगर आपकी माँ आपको साथ लेकर मेरे घर बैठ जायेगी तो आप मेरे गेलड हो जायेंगे.”
जज साहब को बुरा लगना ही था, “बोले, पिता जी, अब आप तीन साल के लिए चक्की पीसने के लिए अन्दर हो जाइए.”
(५)
एक पंडित जी के घर के सामने सड़क पर एक गदहा मरा पड़ा था. उन्होंने म्युनिसिपल आफिस में टेलीफून करके रिपोर्ट दी, तो उधर से मजाकिया मूड में उत्तर मिला, “क्रिया-कर्म तो आपको ही करना है.”
पंडित जी ने तुरन्त जवाब दिया, “पर पहले आप रिस्तेदारों को खबर तो करनी ही पड़ती है.”
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सुन्दर फुलझड़ियाँ ..
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