बुधवार, 30 नवंबर 2011

कविता का अन्तिम सोपान


अगर आप उमर खय्याम रचित रुबाईयां पढेंगे तो आपको लगेगा कि हरिवंश राय बच्चन जी ने अपनी मधुशाला का पूरा प्रारूप वहीं से लिया है क्योंकि बहुत समानार्थक भाव मधुशाला में उकेरे गए हैं. बच्चन जी महान विद्वान लेखक व कवि रहे हैं. उनकी वाणी और लेखनी की तुलना नहीं की जा सकती है. मैंने आज से पैंतालीस वर्ष पूर्व अपनी जवानी के दिनों में अनेक तुक्तक लिखे थे. एक आठ सोपान वाली काव्य रचना, जिसकी नायिका कविता को संबोधित करके ये पद्य लिखे हैं. यहाँ मैं उसके अन्तिम सोपान को उद्धरित कर रहा हूँ. इस रचना में मैंने सीधे सीधे चोरी तो नहीं की है पर प्रेरणा पूर्ववर्ती आदरणीय कवियों से ही ली है:

इस चोली को बदल-बदल कर
       लिखता जाऊंगा मैं कविता
कल्पान्तर तक बहती जाये
       श्रद्धा-प्रेम अनुराग की सरिता.

देह मरे जब शोक न करना
        जग भटकेगा देख के सरिता
इस तन के अन्दर बैठा ईश्वर
       कभी न मरता जैसे कविता.

दाह करन को लाश उठाओ
       मत ले जाना संगम सरिता
राम नाम सा शब्द न होवे
        बोले जावें बस कविता-कविता.

सुन्दर सा हो दृश्य जहाँ पर
       तृन-पल्लव सब गावें कविता  
दुष्ट-काष्ट की चिता हो केवल
        महोप्देश सी धूम्र की सरिता.

भष्म कणों को अस्थि-कलश में
       उठवा ही यदि लाओ कविता
ऊंचे से कोई स्तूप पे रखना
       सुनते जावें जो नित कविता.

सुबक-सुबक कर कभी न रोना
        जब भर आये यादों की सरिता
तीब्र अकेलेपन में प्रेयसी
       मन बहलाना पढ़ कर कविता.

मेरा स्मारक तुम खुद ही हो
        मन ना माने तो सुन कविता
चौराहों पर भित्ति बना कर
        खुदवा देना एक-एक कविता.

प्रिय, देहान्तर पर श्राद्ध न करना
        कभी न भटकेगी ये सरिता
कविता-प्रेमी कुछ बुलवा कर
        पढ़वा देना एक-एक कविता.

नर नारी या वाल-वृन्द जो
        सुने प्रेम से मेरी कविता
इस रस में ही ओत-प्रोत हो
        धर्म बतावें खुद भी कविता

वे न फसेंगे व्यथा जाल में
        बिन अवरोध बहे ज्यों सरिता
जिसके श्रवण से सुख व्यापे
       धन्य-धन्य हो प्यारी कविता.
                  ***

7 टिप्‍पणियां:






  1. आदरणीय पुरुषोत्तम पाण्डेय जी
    सादर प्रणाम !

    नर नारी या वाल-वृन्द जो
    सुने प्रेम से मेरी कविता
    इस रस में ही ओत-प्रोत हो
    धर्म बतावें खुद भी कविता

    वे न फसेंगे व्यथा जाल में
    बिन अवरोध बहे ज्यों सरिता
    जिसके श्रवण से सुख व्यापे
    धन्य-धन्य हो प्यारी कविता.


    बहुत सुंदर !
    कविता के माध्यम से कविता का सुंदर गुणगान किया है …
    आपकी रचनाशीलता को नमन !


    मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  2. वे न फसेंगे व्यथा जाल में
    बिन अवरोध बहे ज्यों सरिता
    जिसके श्रवण से सुख व्यापे
    धन्य-धन्य हो प्यारी कविता.

    बहुत बढ़िया ...गहन अभिव्यक्ति

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  3. गूढ़ ,अनेकार्थी सुन्दर कविता

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  4. गूढ़ व अनेकार्थी सुन्दर कविता.

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  5. अनेकार्थी , गूढ़ ,सुन्दर कविता

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  6. कितनी अच्छी तरह से गूँथ दिए हैं आपने सुन्दर भाव...
    सादर....

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  7. बहुत ही सुन्दर भावो की बेहतरीन रचना......

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