सोमवार, 1 सितंबर 2014

हमारा पड़ोसी शहर - रुद्रपुर

सन 1994 में नैनीताल जिले को दो जिलों में बांटा गया; मैदानी भाग को महान क्रांतिकारी सरदार उधमसिंह, जिसने इंग्लैण्ड जाकर जलियांवाले काण्ड के हत्यारे जनरल ओ. डायर को मार कर बदला लिया था, के नाम पर उधमसिंह नगर रखा गया और इसका मुख्यालय बना रुद्रपुर शहर.

आज का रुद्रपुर शहर एक तेजी से उभरता हुआ मेगा सीटी है.  यह आजादी से पहले एक उपेक्षित स्थल था. घनघोर जंगलों के बीच दलदली जमीन पर कल्याणी तथा बेगुल नदियों के बीच तराई का वह भू-भाग था जहा इंसानों को रहने-बसने में डर लगता था. इलाका गर्मियों में बेहद गर्म रहने के साथ साथ खूखार जंगली जानवरों का बसेरा था. इसके अलावा बारहों महीने मच्छरों का आवास भी था. मलेरिया तब जानलेवा हो जाया करता था क्योंकि इसका ईलाज नहीं था.

कहा जाता है कि किसी बात पर प्रसन्न होकर मुग़ल बादशाह अकबर ने चौरासी माल की जागीर राजा रुद्रचंद्र को दी थी, उसने ही रुद्रपुर की स्थापना की थी.जागीर का क्षेत्र चौरासी कोस होने के कारण इसे चौरासी माल या लगान नौ लाख होने के कारण नौलखिया माल भी कहा जाता था. ये जागीर पूरब में शारदा नदी से लेकर पश्चिम में पीली नदी तक फ़ैली थी जिसमें वर्तमान नानकमत्ता, सितारगंज, किच्छा, रुद्रपुर, गदरपुर, काशीपुर, बाजपुर व जसपुर समाहित है.

सन 1590 के आसपास राजा रुद्रचन्द्र ने सात एकड़ ऊंचे स्थान पर एक दुर्ग का निर्माण करवाया. इतिहासकार ई. टी. एडकिंसन ने हिमालयन डिस्ट्रिक्ट गजटेयर में  तथा श्री बद्रीदत्त पांडे ने इसका उल्लेख कुमायूं का इतिहास में किया है. 

सन 1802 में लार्ड बेलेजली और अवध के नवाब के मध्य हुए संधि के कारण गोरखपुर, रूहेलखंड (नैनीताल के तराई क्षेत्र सहित) ईस्ट इंडिया कम्पनी के नियंत्रण में चला गया. अब से सौ वर्ष पहले तक ये क्षेत्र चोरों, लुटेरों, डकैतों और अपराधियों का अभयारण्य रहा. ब्रिटिश सरकार ने आम लोगों को यहाँ बसने के लिय बहुत से लालच भी दिए; सिंचाई के लिए बाँध व नहरें बनवाई. यहाँ की वनसंपदा का दोहन किया गया, शिकारियों के लिए शिकारगाह बने और जमीन को साफ़ करके खेतीयोग्य बनाने का काम चलाया गया.

आज जहाँ रुद्रपुर का मुख्य बाजार है, वहाँ शहर बसने से पहले बुक्सा जनजाति के लोगों के कच्चे झोपड़े हुआ करते थे. सन 1948 के आते आते उनकी बस्ती उजड़ गयी. सन 1949-50 में नई बसावट का ब्ल्यू प्रिंट तैयार हुआ. कोलोनाइजेशन के बाद रिहायसी क्वार्टर्स बने. सन 52-53 तक जेनेरेटरों से बिजली आपूर्ति होती थी. बाद में जब लोहिया हेड खटीमा में पनबिजलीघर बना तो वहां से बिजली लाई गयी. सन 1951-52 में काशीपुर बाईपास पर एक पातालफोड़ कुंवा खोदा गया जो पीने के पानी का मुख्य स्रोत था. सन 1952 में ही तराई का व प्रदेश का प्रथम कृषि हाईस्कूल यहाँ खोला गया था. कोलोनाईजेशन अस्पताल तथा शंकर राइसमिल भी तभी बनाए गए. सन 1994 के आसपास रुद्रपुर को बसाने का काम टाऊन एरिया ऑथोरिटी के सुपुर्द किया गया.

1960 में पन्तनगर कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना हुयी, नोटिफाइड कमेटी का गठन हुआ, सड़कें बनी सरकारी गोदाम व कार्यालय लाये गए, बैंक आये, 1974 में डिग्री कालेज खोला गया, 1982 में चलता फिरता श्याम टाकीज आया, 1864 में किच्छा रोड पर श्रीराम हौंडा कारखाना स्थापित हुआ. इस प्रकार सब ऐतिहासिक धटनाक्रम चलता रहा. शुरुआत में विस्थापितों, भूतपूर्व सैनिकों, स्वतन्त्रता सेनानियों तथा कृषि स्नातकों को रुद्रपुर के आसपास बसाया गया. आज रुद्रपुर में पंजाबी, कुमाऊँनी, नेपाली, मुसलमान, जैन, ईसाई तथा बंगाली लोगों का बाहुल्य है.

रुद्रपुर का औद्योगिक नगरी के रूप में विकास 1976-77 में प्रारम्भ हुआ. सिडकुल में 500 से ज्यादा इकाईयां हैं. कुछ कारखानेदार नई इकाइयों को मिलने वाली छूट का लाभ ल्रेकर यहाँ से अन्यत्र पलायन भी कर गए हैं. पर टाटा मोटर्स, डाबर आदि अनेक बड़े कारखाने अपना कारोबार कर रहे हैं, जिनमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा है. ये भूमि जो कि मुख्यरूप से बढ़िया चावल के लिए प्रसिद्ध थी, अब औद्योगिक उत्पादों के अलावा कृषि वैज्ञानिक व इंजीनियरिग के श्रेष्ठ टेक्नोलोजिस्टों का उदगम स्थल भी बन गयी है.

पिछले 10-15 वर्षों में रुद्रपुर का चेहरा बिलकुल बदल गया है. नया मैट्रोपॉलिटन कल्चर विकसित हो रहा है. सभी सुविधाओं से लैश शानदार आवासीय कालोनियां, चौड़ी सुन्दर सड़कें, ऊंची ऊंची वास्तु के नए नमूने व पांच सितारा होटल सैलानियों को विस्मित करते होंगे.

इस शहर को आबादी के हिसाब से गत वर्ष नगर निगम का दर्जा प्राप्त हो गया है. रेल मार्ग, सड़क मार्ग तथा हवाई अड्डा सब कुछ यहाँ है, लेकिन तिपहिया साइकिल रिक्शों व ऑटो रिक्शों से सड़कें-गलियाँ सब तरफ घिरे रहते हैं. इसलिए इसको स्मार्ट सिटी बनाने में अभी काफी समय लगेगा.
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4 टिप्‍पणियां:

  1. रुद्रपुर के इसिहस को बड़े सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया गया ...सुन्दर !
    गणपति वन्दना (चोका )
    हमारे रक्षक हैं पेड़ !

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  2. सुंदर और जानकारी पूर्ण प्रस्तुति।

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