जर्मनी के तानाशाह
अडोल्फ़ हिटलर का असली सरनेम ‘हिडलर’ था. चूंकि वह अपने
तेजस्वी भाषणों से हिट होता गया इसलिए उसे हिटलर कहा जाने लगा, ऐसा कहा जाता है.
वह एक विकासपुरुष के रूप में भी जाना जाता था. उसने लोगों को खूब सपने दिखाए थे और
तदनुसार बहुत काम भी किये. यहाँ तक कि उसकी मृत्यु के बाद, यानि द्वितीय विश्व
युद्ध में हार के बाद भी जर्मनी का विकास रुका नहीं क्योंकि मित्रराष्ट्रों ने
जर्मनी पर पुरानी कठोर शर्तें नहीं लगाई कि कोई दूसरा हिटलर फिर से पैदा ना
हो.
मैंने जर्मनी का
इतिहास पहले नहीं पढ़ा था. मेरे पौत्र/पौत्री की बुकसेल्फ़ में अनेक महापुरुषों की
जीवनी संबंधी पुस्तकें संग्रहित हैं, इन्हीं में मुझे अडोल्फ़ हिटलर की जीवनी (लेखक IGEN B.) भी मिली. ये पुस्तक सरल अंग्रेजी में लिखी हुई है. इसके
पूर्वार्ध में जर्मनी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का बड़े सुन्दर ढंग से वर्णन किया गया
है. अब तक मैंने हिटलर को महज एक क्रूर तानाशाह व यहूदियों के हत्यारे के रूप में जाना-सुना था, और मैं उसे मानवता का
दुश्मन माना करता रहा हूँ, जिसने दुनिया को द्वितीय विश्वयुद्ध में धकेला था. उसकी
जीवनी पढ़ने के बाद उसके द्वारा मानवता के प्रति किये गए अपराधों को एक
तरफ रख कर देखा जाए तो वहां की तत्कालीन परिस्थितियों के वशीभूत उसके बचपन और
युवावस्था में किये गए संघर्षों की कहानी में ‘होनहार विरवान के होत
चीकने पात’ वाली तमाम विशिष्टताएं हैं, जो हर किसी
में नहीं हो सकती हैं. उसका दादा जूते बनाकर गुजारा करता था, उसका बाप एक मामूली
सरकारी नौकर था, वह स्वयं मात्र एक पेंटर-कलाकार था, जो आर्थिक विपन्नताओं में
पला-बढ़ा था.
यह भी सच है कि उन
दिनों जर्मनी में राजनैतिक समीकरणों व देश के विभाजन के बाद मूल जर्मनों की
दुर्दशा हो रही थी. सारे वैभव तथा सरकारी उच्च पदों पर यहूदियों का कब्जा था. बालक
अडोल्फ़ ने अनुभव किया कि इस दुर्दशा के लिए यहूदी लोग जिम्मेदार हैं इसलिए वह
यहूदियों से घृणा करता था. परिस्थितियों ने जब उसे कम उम्र में ही सीढ़ी दर सीढ़ी
चांसलर के पद तक पहुंचा दिया तो उसने यहूदियों पर अनेक अत्याचार किये, और उनका
नरसंहार कराया और वह धार्मिक उन्माद के
चलते जर्मनों का हृदय सम्राट बना रहा. जो जर्मन लोग ‘ह्यूमिलिएशन’
में जी रहे थे, उनमें जातीय जोश भर कर
राष्ट्रप्रेम की शक्ति का नवसंचार किया. “हम ही सर्वश्रेष्ठ नस्ल हैं" का मंत्र फूंका. सत्ता पर कब्जा होने के साथ ऐसी बिसात बिछाई कि विरोधियों का एक एक
कर खात्मा कर दिया. कम्यूनिस्टों को देश का दुश्मन करार दे दिया, पर उसकी विश्व
विजय की महत्वाकांक्षा उसके लिए भारी पड़ी. पड़ोसी देशों से दुश्मनी और युद्ध के चलते उसके मनसूबे नाकामयाब हो गए. उसे छुपकर अपने
बंकर में ही अपनी पत्नी सहित आत्महत्या करने को मजबूर होना पड़ा. ये उसके तानाशाही
विचारों की अंतिम परिणीति थी.
परिवर्तन प्रकृति का
नियम और समय की मांग होती है. किसी ना किसी रूप में क्रान्ति होती रहती है. उसके
शुभाशुभ परिणाम तो बहुत बाद में निकलते हैं. जर्मनी हार गया उसे दो भागों में
बंटना पड़ा. उसकी जो दुर्दशा हुई उसके घाव बहुत दिनों तक हरे रहे,
हम भारत में रहने
वाले लोग पंचायती हैं. हमारे संविधान में सत्ता हस्तांतरण की प्रजातंत्रीय
प्रक्रिया मतपेटियों के मार्फ़त होती है. अभी ये जरूर है कि चुनावों में धनबल,
बाहुबल, और जाति+धर्म-बल का खुला खेल होता रहा है, अशिक्षा व गरीबी का बड़ा रोल
चुनावों में रहता आया है.
सन २०१४ के लोकसभा चुनावों का परिणाम कतई अप्रत्याशित नहीं था क्योंकि पूर्ववर्ती
मनमोहन सिंह जी की सरकार अपने ढीले रवैये व भ्रष्टाचार+घोटालों के चलते बहुत बदनाम
हो चली थी. गत वर्षों से इसी सम्बन्ध में अन्ना हजारे व रामदेव जी के आन्दोलन लोगों
को उद्वेलित करते आ रहे थे अत: आम लोग सत्ता में परिवर्तन चाहते थे. ऐसे में
नरेंद्र मोदी जी जैसे साधन सम्पन्न, अनुभवी सुवक्ता की अगुवाई में धार्मिक जोश के
तड़के के साथ लहर सी फ़ैलती गयी. जिस तरह जर्मनी में १९३० के दशक में हालात बने थे, ठीक उसी तरह मोदी जी हिन्दू ह्रदयसम्राट का परोक्ष तमगा लगा कर, गरीब चाय बेचने
वाले बालक का चेहरा बता कर सुनियोजित ढंग से सत्ता पर काबिज हो गए. उनके पीछे
कट्टर हिन्दू विचारधारा वाले संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का पूरा हाथ भी था और है. संघ का कि पूरे भारत में ही नहीं बल्कि अप्रवासी भारतीयों में भी सुनियोजित नेटवर्क काम करता है.
कल क्या होगा, ये तो
भविष्य ही बताएगा, लेकिन आज मोदी और बीजेपी हिटलर की नाज़ी पार्टी की याद दिलाते हैं. उन्होंने पार्टी और सरकार में सारे सिपहसालार अपने ढंग
से प्रतिष्ठित कर लिए हैं. इस निरंकुशता को पार्टी के अन्दर के अतृप्त तत्व कितने दिन बर्दाश्त करेंगे, ये भी भविष्य के गर्भ में है. इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने जिस तरह से
चापलूसी और खुट्टेबर्दारी की हदें पार कर रखी हैं, शुभ लक्षण नहीं है क्योंकि कोरे
आश्वासनों से लम्बे समय तक लोगों का असंतोष दबाया नहीं जा सकेगा.
विशेष सावधानी पड़ोसी देश चीन व पाकिस्तान के साथ सम्बन्ध निभाने में रखनी होगी. कहा जाता है कि चौथा
विश्वयुद्ध लाठी-भाटों से लड़ा जाएगा, अब इसका
दोष हमारे सनातन राष्ट्र पर नहीं आना चाहिए. मुझे बार बार पूर्व प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह जी का एक वाक्य हॉन्ट करता है, जिसमें
उन्होंने मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने को डिजास्टरस यानि विनाशकारी कहा था. अब चूंकि मोदी जी लोकप्रिय प्रधानमंत्री बन चुके हैं, वे काग्रेस पार्टी
के लिए जरूर डिजास्टरस साबित हो चुके हैं, पर राष्ट्र तथा यहाँ बसने वाले निर्दोष नागरिकों के लिए किसी प्रकार से भी डिजास्टरस ना हो, ऐसी कामना है.
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उम्दा लेख |
जवाब देंहटाएंBahut sunder aalekh .... !!
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