आज मौली का 35वां हैप्पी बर्थडे है. वह कई दिनों से इसे कुछ नए ढंग से मनाने की सोच रही थी, पर घर गृहस्थी के काम उसे उलझाए रहे. उसने परम्परागत ढंग से ही सुबह
नहा-धोकर घर के ही मंदिर में दीप प्रज्ज्वलित कर पूजा-अर्चना की फिर पतिदेव को
प्रणाम कर प्यार पाया, उल्लासित होकर रसोई में चली गयी. उसे माँ की बहुत याद आ रही
थी. उसने माँ की पसंद की काजू, किशमिश, पिस्ते-बादाम वाली गाढ़ी खीर बनाई. पूड़ियाँ बनाई, बड़े बनाए और केले के मालपुए बनाए. दस वर्षीय बेटे अक्षत और पति रजनीकांत
को पेटभर खिलाया. शनिवार था इसलिए अक्षत को आज स्कूल नहीं जाना था. रजनीकांत अपने
निर्धारित समय पर ऑफिस को चला गया.
पकवान खुद खाने से
पहले उसने एक टिफिन डिब्बे में अलग अलग खानों में सारी चीजें माँ के लिए पैक कर रख
दी. माँ के पास जाने के लिए जल्दी जल्दी तैयार हो रही थी कि इतने में उसकी
स्कूलमेट भावना का फोन आ गया कि ‘वह एक घंटे बाद उसके घर विज्ञान नगर
पहुँच रही है’. मौली एकदम सकते में आ गयी. वह भावना को बता नहीं सकी कि उसे डडवाडा (कोटा
रेलवे स्टेशन के पास) माँ के पास जाना है. नई परिस्थिति पर सोचते हुए उसने अक्षत
को पास बुलाकर पूछा, “बेटा, तू अकेला नानी के पास जा सकता है?”
अक्षत ने बिना सोचे समझे आत्मविश्वास से कहा, “मैंने नानी के घर का
रास्ता देखा है, टेम्पू से जाऊंगा, बजरिया में मंदिर पर उतर कर सीधे नानी के घर
चला जाऊंगा.”
मौली की माँ वेदवती
देवी अपने पुश्तैनी घर में अकेली रहती हैं. वह अध्यापिका थी और अब रिटायर हुए पांच
साल हो चुके हैं. मौली उनकी इकलौती संतान है. वह मौली की शादी के बाद चाहती थी कि
रजनीकांत घर जंवाई बन कर उनके पास ही रहें, पर रजनीकांत को ये मंजूर नहीं था. उसका
कहना था, “आप आकर हमारे साथ रहो”. रजनीकांत का विज्ञान नगर में अपना बड़ा दुमंजिला मकान है, जिसमें सभी आधुनिक
सुविधाएं हैं. उसका अपना कार्यस्थल इन्द्रप्रस्थ औद्योगिक क्षेत्र भी दूसरी दिशा
में है, तथा अक्षत का स्कूल भी तलमंडी में नजदीक है. माँ का मन है, वो बेटी से कहने लगी, “मेरे बाद ये सब तुम्हारा ही है, जब तक हाथ-पाँव चल रहे हैं, मैं
डडवाडा में ही रहूँगी. इसमें तुम्हारे पिता की यादें भी बसी हुयी हैं. जब अशक्त हो
जाऊंगी तो तुम्हारे पास ही आना पड़ेगा.” माँ-बेटी में बहुत प्यार व समझदारी है, स्वाभाविक रूप से एक दूसरे की बहुत चिंता किया करती हैं. मौली ने बचपन
में बाप की जगह भी माँ को ही पाया था, और ये भी सच है कि बेटी ही माँ को सबसे अच्छी
तरह समझ सकती है. उसे याद है उसके जन्मदिन पर माँ उसे सजा-संवार कर पूजा किया करती
थी, उसकी सहेलियों को घर बुलाकर ढेर सारे पकवान बना कर खिलाती थी. अब मौली हर
वार-त्यौहार या शुभ दिन, माँ का आशीर्वाद लेना नहीं भूलती है.
आज ऐन वक्त पर भावना
का फोन आ गया तो सोचा माँ से शाम को जाकर मिल लूंगी. माँ के पास लैंड-लाइन टेलीफोन
है, पर माँ के कान जवाब दे गए हैं, बहुत कम सुनाई पड़ता है. समस्या के निराकरण के
लिए ई.एन.टी. डॉक्टर से कान की जांच करवाकर सुनने की मशीन लगवा दी है, पर माँ कहती
है कि ‘ये बहुत असुविधाजनक है’ इसलिए निकाल कर रख देती है, और जब जरूरत
महसूस करती है तो फिट कर लेती है. मौली की शुक्रवार को माँ से बात हुयी थी. मौली ने
कह दिया था कि “खाना मत बनाना, मैं लेकर आऊँगी”. अब इस असमंजस में जब अक्षत नानी के घर जाने को तैयार हो गया तो उसे राहत मिल गयी.
एक थैले में टिफिन डब्बा रख कर, अच्छी तरह ले जाने को समझाकर, टेम्पो के लिए खुले रुपये
देकर, अन्दर की जेब में १०० रुपयों का एक नोट भी रख दिया. अक्षर तुरंत दबे पाँव
निकल गया. मौली जब तक उसे देख पाती, वह एकदम गायब हो गया. मौली पीछे पीछे झालावाड़ रोड तक भी गयी, पर अक्षत ने कमाल कर दिया इतनी जल्दी निकल गया. मौली ने कभी भी बेटे
को इस तरह अकेले सड़क पर नहीं छोड़ा था. जिस तरह मुर्गी अपने चूजे को अपने पंखों के
अन्दर छुपाये रखती है, उसी तरह मौली ने बेटे को कोई एक्सपोजर नहीं होने दिया था. अब
सोच रही थी कि ‘सीधे सीधे टेम्पो जाते है, हजारों लोग आते-जाते रहते
हैं’, लेकिन मन में बैठा चोर डरा भी रहा था कि कोई अक्षत का अपहरण न
कर ले क्योंकि आजकल कोटा में ऐसी अपराधिक धटनाएं बहुत होने लगी थी. ये भी सोच रही
थी कि एक दिन तो बच्चे को इस दुनिया में अकेले विचरण करना है. उसने कई बार माँ को
फोन लगाया पर वह उठा नहीं रही थी. माँ जरूर मशीन हटाकर काम में लग रही होगी
या सो गयी होगी.
भावना आई, खूब गले
मिले, गिले शिकवे हुए. वह बर्थडे गिफ्ट लेकर आई थी. दरअसल भावना मौली का जन्मदिन हमेशा याद रखती है. दो घटों तक दोनों सहेलिया खूब बतियाती रही फिर वह चली
गयी. इस बीच भी मौली के मन में बार बार अक्षत का ख़याल आ रहा था. एक बार फिर से फोन
लगाया तो माँ ने उठा लिया, पर ये क्या? उसने बताया कि अक्षत वहाँ नहीं पंहुचा था. दिन
के दो बजने को आये थे. बच्चे का वहां नहीं पहुंचना चिंता का विषय हो गया. उसने तुरंत
पति को फोन किया और घबराहट में यथास्थिति बयान कर दी. रजनीकांत पहले तो अक्षत को इस
तरह अकेले भेजने पर नाराज हुआ फिर तुरंत घर की तरफ रवाना हो गया. मौली बदहवास सी होकर
पड़ोस के लोगों व बच्चों को अपनी बात बताने निकल पड़ी. सब लोग सुनकर हैरत में थे कि अक्षत
खो गया.
उधर माँ भूखी थी, इस बात की भी
चिंता हो रही थी. तीन बजे रजनीकांत घर पहुँच गया. पति-पत्नी दोनों ने तय किया कि एकदम
पुलिस स्टेशन जाने के बजाय रेलवे स्टेशन की तरफ जाकर डडवाडा में उसे खोजना चाहिए. पड़ोस
में हल्ला होने से कुछ लड़के पहले ही निकल पड़े थे. रजनीकान्त ज्यों ही मोटर-बाईक उठाने
के लिए सीढ़ियों से नीचे उतरा तो उसको वहाँ
कुछ खटपट की आवाज सी सुनाई पड़ी, जब झुककर देखा तो अक्षत को सिमटकर छुपा बैठा पाया.
रजनीकांत ने मौली को आवाज
दी और बताया, “अक्षत तो यहाँ दुबका बैठा है!” उसे पाकर दोनों को बड़ी राहत मिली. इस अजीब स्थिति पर अक्षत ने रोना शुरू कर दिया. उसे
प्यार से समझाकर अन्दर ले गए. रजनीकांत मौली
से बोले, “इसे डरपोक बनाने का श्रेय तुमको जाता है.”
फिर अक्षत की नानी को फोन से सूचना देकर वे तीनों टिफिन डिब्बा लेकर नानी के पास गए. वह भी बेहद डरी हुई थी.
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