मंगलवार, 21 नवंबर 2017

अटलांटिक के उस पार - 2

31 अक्टूबर 2017 को जब मैं पत्नी व पुत्र प्रद्युम्न के साथ जब अमेरिका की धरती पर पदार्पित हुआ तो वे सारे अहसास फिर से ज़िंदा हुए जो मुझे 2011 में यहाँ आने पर हुए थे, और मैंने दिनांक 28 जुलाई 2011 को अपने ब्लॉग ‘जाले’ में संस्मरण के रूप में प्रकाशित किये थे.

साफ़-सुथरा, पूर्ण विक्सित, व सुन्दर सजाये गए परिदृश्य, हर बस्ती को चौड़ी-चौड़ी सडकों व बगल में पैदल यात्रियों के लिए पथ, हर मोड़ पर पुष्पित रंग-बिरंगे पौधे सब मनमोहक लगते हैं. पर इस बार बड़े पेड़ ‘फॉल’ (पतझड़) की वजह से सर्वत्र लाल अथवा पत्रविहीन मिले, बाकी सब कुछ वैसा ही लगा जैसा पहले था. इस कालखंड में मैं अलबत्ता कुछ बूढ़ा हो चला हूँ; सर पर बालों की सिर्फ सीमा रेखा बची है, और भोंहों पर भी चांदी चमकने लगी है.

इस बार आने का प्रमुख मकसद जॉर्जिया राज्य के अटलांटा शहर में प्रिय हिना के विवाहोत्सव में सम्मिलित होना था. इस विवाहोत्सव में भारतीय व अमरीकी मित्रों का उत्साह व उल्लास देखकर हम लोग आनंदित होते रहे. मेरे दामाद श्री भुवन जोशी व बेटी गिरिबाला का ये एक बढ़िया ढंग से नियोजित कार्यक्रम था. हिना ने भी इस अवसर को गरिमामय बनाने के लिए स्वयं एक मैरिज प्लानर की मदद ली थी. इसमें उसके मेडीकल स्टाफ, सहपाठी मित्रों ने चार चाँद लगा दिए. सारे आयोजन अनुपम थे. पंडित मजमूदार (गुजराती मूल के - पेशे से सर्जन) ने अपनी विद्वता व वाक् पटुता से दो संस्कृतियों का वैदिक मंत्रोचार के साथ कन्यादान - अग्नि को साक्षी रख कर सात फेरे करवाए. इस प्रकार एक अनुपम विवाह हुआ जिसे सबने देखा और सराहा. उल्लेखनीय बात यह थी की वर, चिरंजीव निकोलस (एक कंपनी में वाईस प्रेसिडेंट), व सभी वरपक्ष के लोग भारतीय परिधानों  में थे. तीन दिनों तक चले विवाहोत्सव को देखकर सभी लोगों ने हिना की पसंद और भाग्य की सराहना की. चूंकि भुवन जी नोकिया सीमेंस के एक वरिष्ठ अधिकारी हैं, और पूर्व में कई वर्षों तक अटलांटा में नियुक्त रहे हैं, नोकिया परिवार के सभी भारतीय मूल के मित्रों ( विशेष रूप से महिला मंडल ) ने सभी आयोजनों को सांस्कृतिक कार्यक्रमों जैसा बना दिया.

मेरी श्रीमती, पुत्र प्रद्युम्न, व पौत्र सिद्धांत ( बोस्टन में अध्यनरत), भुवन जी के बड़े भाई डॉ. नित्यानंद जी, उनकी अर्धांगिनी सुधा, पुत्र नितिन का परिवार, तथा कनाडा से गिरिबाला की मौसेरी बहन कमला शर्मा+ उसके पुत्र एवं पुत्रवधू की उपस्थिति ने इस विवाहोत्सव को चिर अविस्मरणीय बना दिया है. गिरिबाला की एक सहेली न्यू जर्सी  से इस समारोह में शामिल होने आई थीं; वह गिरिबाला की खुद की शादी की साक्षी भी थी. हमारे इस पूरे समारोह पर पुरोहित जी कहना था की उन्होंने यहाँ अनेक शादियाँ करवाई हैं, पर इस शादी को ‘ना भूतो ना भविष्यति’ की संज्ञा दी.

आठ दिनों तक अटलांटा के एक घर में रहकर वर-वधु को विधिवत बिदाई देकर हम लोग भुवन जी व गिरिबाला के साथ उनके घर, डलास (टेक्सस राज्य) में आ गए हैं, जो अटलांटा से लगभग 1350 किलोमीटर दूर है.
क्रमश:
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1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (22-11-2017) को "मत होना मदहोश" (चर्चा अंक-2795) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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