हिन्दी, मराठी, व अंग्रेजी के प्रकांड श्री भास्कर आगटे जी का मुझे सानिध्य तब प्राप्त हुआ जब वे ९०
के दशक में लाखेरी सीमेंट कारखाने में डी.जी.एम.(टेक्निकल) के रूप में
स्थानांतरित होकर आये थे. उनके पहुँचने से पहले उनके बारे में समाचार पहुँच गए थे
कि वे सीमेंट टैक्नोलॉजी के पंडित हैं, और ए.सी.सी. के आधा दर्जन कारखानों में अपनी
सेवाएँ दे चुके हैं. सन १९७२ में फिजिकल कैमिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद वे
कैमोर स्थित मूलगांवकर इंस्टीट्यूट में मैकेनिकल + इलैक्ट्रिकल + वेल्डिंग + ऑटोमोबाईल
+ कैमिस्ट्री की विधाओं में विधिवत
ट्रेनिंग पाकर तराशे गए थे. यह सब तब हम लाखेरीवालों की अग्रिम जरूरत भी थी क्योंकि हम
कर्मचारीगण इन वर्षों में कारखाने के पराभव के बारे में सहमे हुए थे; इसलिए
शुभाकाँक्षी थे कि कारखाना चलता रहे और हमारी रोजी-रोटी बनी रहे. ए. सी. सी., जो कि इस इलाके का एकमात्र बड़ा उद्योग था, लाखेरी नगर तथा आसपास के गांवों के लिए पूर्ववत ‘कंपनी माता’
के स्वरुप में ज़िंदा रहे.
"घोड़ा उड़ सकता है" यह तो एक मुहावरा है, पर हमने प्रत्यक्ष देखा है कि बहुत से सीनियर कामगारों के
कष्टपूर्ण बलिदानों (V.R.S.) के परिणामस्वरुप कम लागत पर अधिक उत्पादन
की सोच से घाटे में डूबते कारखाने को नवजीवन देकर ऊपर लाने की प्रक्रिया हर कोशिश
में थी; ऐसे में मैं तब कामगार संघ का अध्यक्ष के रूप में अपने जनरल सेक्रेटरी श्री रविकांत
शर्मा को साथ लेकर आगंतुक टेकनिकल अधिकारी के स्वागत करने उनके कार्यालय में गया
था.
उम्र में मुझसे
लगभग १० वर्ष छोटे श्री आगटे मिष्टभाषी
हैं. मेरे १९९९ में रिटायरमेंट के बाद भी कई वर्षों तक प्लांट हेड श्री
पी.के. काकू और श्री दुर्गाप्रसाद के
नेतृत्व में देखभाल करते रहे.
मैंने जब सन
२०१४-१५ में अपनी लाखेरी की स्मृतियों को सीरीज के रूप में फेसबुक (ग्रुप- लाखों
के लाखेरियन) में प्रकाशन किया तो श्री आगटे (इस लेखन के नियमित पाठक रहे) ने मुझे
सलाह दी कि इस सीरीज को "लाखेरी – पिछले पन्ने" के रूप में पुस्तकाकार छपवाया जाये.
मैंने इसकी भूमिका लिखने के लिए आगटे जी को ही सबसे उपयुक्त व्यक्ति समझा और
उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार भी कर मुझे अनुगृहीत किया. इस पुस्तक में एक लेख
‘सीमेंट’ भी है जिसमें मैंने अपनी अल्प जानकारी के अनुसार जो तथ्य लिखे थे उनको
विस्तार देकर आगटे जी ने एक सम्पूर्ण दस्तावेज बनाकर नवाजा है.
मैंने जब आगटे जी
का पूरा प्रोफाईल देखा तो पाया है कि वे एक असाधारण व्यक्ति हैं उनको अगर ‘सीमेंट मैन’ कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.
उन्होंने सीमेंट विषय पर अनेक दस्तावेज/ रिसर्च पेपर्स कई राष्ट्रीय व
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुत किये हैं. प्रकाशित दस्तावेजों में "Quality control in cement plants & quality control of clinker" बहुचर्चित हैं. सीमेंट के क्षेत्र में
उनकी उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए उन्हें अनेक सम्मान प्राप्त हुए हैं.
उनके रिकार्ड में
मुझे एक ऐसा भी दस्तावेज देखने को मिला, जिसमें उनकी मानवीय संवेदनाओं की झलक मिलती है. एक अधीनस्थ योग्य अधिकारी को किसी बात पर जब बर्खास्त किया जाने वाला था
तो श्री आगटे ने उन परिस्थितियों का अध्ययन कर उसे एक तरह से नवजीवन दिया. आज भी उनके फेसबुक पर मैं देखता
हूँ कि जिन कारखानों में भी उन्होंने कार्य किया था वहाँ के अनेक मित्र, सहकर्मी,
या मातहत कर्मचारी उनसे लगातार जुड़े रहते हैं.
ए.सी.सी. से
रिटायरमेंट के बाद भी उनकी कर्म के प्रति निष्ठाभाव इस बात से जाहिर होता है कि
प्रोफेशनल ट्रेनिंग देने का कार्य वे निरंतर जारी रखे हुए हैं. वे कई संस्थाओं में
गेस्ट विजिटिंग फैकल्टी एंड पीएच.डी. मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट पूना के थीसिस प्रूफ
रीडिंग आदि रचनात्मक कार्य निरंतर कर रहे हैं.
पारिवारिक जीवन में
भी वे एक सुखी व्यक्ति हैं. एक योग्य पुत्र और पुत्री के पिता होने का गौरव उनको
प्राप्त है. दोनों ही देश और विदेश में सेवारत रहते हुए आनन्द पूर्वक जीवन यापन कर
रहे हैं. श्रीमती आगटे एक समर्पित सद्गृहणी हैं. बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्होंने
बड़ी तपस्या की है. वे कारखानों के कैंपस में हुए महिला क्लब द्वारा आयोजित सभी
सामाजिक कार्यों में भागीदार रहती थी. आगटे जी अब सगे सम्बन्धियों के साथ पूना में
रह रहे हैं. ईश्वर उनको सपरिवार स्वस्थ और सुखी रखे, यही हमारी दुआ है.
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