रविवार, 12 अगस्त 2018

हेल्थ टिप - (७)



दवाईयाँ – हमारी ये दुनिया अनेक विविधताओं से बनी है, देश, काल व परिस्थितियों के अनुसार अलग अलग जगहों पर मानव संस्कृतियों का विकास हुआ तदनुसार ही चिकित्सा पद्धतियों का जन्म भी होता रहा है. १९ वीं २० वीं सदी तक आते आते विज्ञान के प्रादुर्भाव का असर भी सभी पद्धतियों पर पडा है.

हमारे देश भारत में आयुर्वेद प्राकृतिक चिकित्सा के रूप में विकसित हुआ जिसमें हर्बल यानि वानस्पतिक जडी-बूटियों व धातुओं की भस्मों को दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है; इसी प्रकार यूनानी चिकित्सा पद्धति  की अपनी पुरानी पहचान है, चीन – जापान की इसी तरह की अपनी दवाएं होती हैं. कुछ सदी पहले जर्मनी में होम्योपैथिक पद्धति ने जन्म लिया जिस पर दुनिया के अनेक लोग विश्वास किया करते हैं. पर दुनिया भर में आज सबसे विश्वसनीय एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति मानी जाती है क्योंकि इसका विकास शुद्ध वैज्ञानिक शोधों पर आधारित है इसमें कैमिकल औषधियों द्वारा प्रतिरोधात्मक शक्तियों को इलाज के लिए प्रेरित किया जाता है तथा सर्जरी द्वारा इसमें क्रान्ति लाई गयी. एक्स रे व लेजर टेकनीक से अब असीमित संभावनाएं इस पद्धति में विकसित हो गयी हैं. ये शोध निरंतर जारी हैं.

यद्यपि मरे हुए को ज़िंदा करना यानि अमरता की परिकल्पना अभी वैज्ञानिक उपलब्धि से बहुत दूर है पर अब लोगों की समझ में आ गया है की टोनों- टोटकों या झाड फूक का ज़माना अब नहीं रहा है. हाँ अभी भी बहुत से अंधरे कोने बचे हैं जहां अभी तक प्रकाश की किरणें नहीं पहुच पाई हैं.

वैसे प्रकृति ने हमारे शरीरों में रोग प्रतिरोधात्मक शक्तियां स्वयं प्रदान की हुयी हैं, एक विचारक ने लिखा है कि ९५% बीमारियाँ हवा पानी औए इम्युनिटी से ठीक हो जाती हैं, शेष ५% को इलाज की जरूरत होती है उनमें भी केवल ३% ठीक हो पाते हैं बाकी असाध्य ही रहते हैं या यमराज की भेट चढ़ जाया करते हैं.

कैमिकल औषधियां तुरत-दान असर तो करती हैं पर इनके साईड इफेक्टस बहुत रहते हैं, इसलिए इनके उपयोग के लिए अनेक क़ानून बनाए गए हैं विशेषकर जो शेड्यूल्ड ड्रग्स हैं उनका उपयोग बहुत सावधानी से करना चाहिए, योग्य चिकित्साधिकारी की सलाह पर ही लेनी चाहिए. एक जरूरी बात सभी पाठकों को कहना चाहूंगा कि अपने शरीर को कम से कम मेडीकेट किया जाए तो ही अच्छा है. मजबूरी में ही दवा खानी चाहिए.

एक समय था जब मेडीकल प्रोफेसन को सेवा का प्रोफेसन कहा जाता था, आज इसका बाजारीकरण हो गया है, पैसा बड़ा फैक्टर हो गया है चाहे मरीज की जान चली जाए. एक सर्वे के अनुसार ये भी बताया गया है कि लोग बीमारियों से कम, दवाओं के गलत प्रयोग से ज्यादा मर रहे हैं. इस सन्दर्भ में एक बुजुर्ग का बयान मजेदार है : पत्रकार ने उनसे उनके स्वस्थ लम्बे जीवन का राज पूछा “क्या आप डाक्टर के पास जाते हैं?” उन्होंने कहा “हाँ भाई, डाक्टर की तो हमेशा जरूरत रहती है इसलिए उसके पास जाना ही पड़ता है.” पत्रकार “फिर क्या करते हैं?” उत्तर “ फिर फार्मासिस्ट के पास जाता हूँ, उसको भी तो ज़िंदा रखना है.” पत्रकार फिर “बहुत सारी टैबलेट व कैप्स्यूल देता है जिनको लेकर घर आ जाता हूँ.” पत्रकार “आप सारी दवाएं खा लेते हो?” उत्तर “ नहीं भाई, मैं उन सभी गोली कैप्स्यूल्स को डस्टबिन में डाल देता हूँ क्योंकि मुझे भी तो ज़िंदा रहना है.”

                  ***

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें