पुरानी कहावत है कि
आप न्याय करते हैं तो वह अन्याय सा नहीं दीखना चाहिए. कहने को तो हम दुनिया के
सबसे बड़े प्रजातंत्र में जी रहे हैं लेकिन हो क्या रहा है कि जिसके हाथ में लाठी आ
जाती है वही भैंस को हांके जा रहा है.
अँधेरे कोनों से
आवाज उठाती रहती है कि सी बी आई और न्यायपालिका को पूर्ण स्वायत्तता मिलनी चाहिए,
ताकि निष्पक्ष कार्यवाही/ न्याय हो सके. एक बार सुप्रीम कोर्ट को ही सी बी आई के
बारे में कहना पडा था कि ‘ये किसका तोता है ?’ प्रबुद्ध लोग जजों के जमीर की बात
करते हैं, जज लोग भी तो हमारे ही समाज की पैदावार हैं जिनकी नियुक्ति, प्रमोशन और
भविष्य की संभावनाएं जिस तंत्र के अधीन होती हैं उसको नाराज करना घाटे का सौदा हो
सकता है. भूतकाल में भी हमने देखा है कि ऐडजस्टमेंट के लाभ बहुत से माननीयों ने
खुले आम स्वीकार किये हैं.
इतिहास जरूर निंदा
करेगा पर वह जब लिखा जाएगा तब तक सारा परिदृश्य बदल चुका होगा. कहा जा रहा है कि
प्यार और राजनीति में सब जायज होता है, चाहे आप bellow the belt मार कर रहे हों. पर ये नहीं भूलना चाहिए
कि इन घटनाओं के निष्कर्ष लम्बे समय तक पीछा करते रहेंगे.
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बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआप अन्य ब्लॉगों पर भी टिप्पणी किया करो।
तभी तो आपके ब्लॉग पर भी लोग कमेंट करने आयेंगे।
धन्यवाद शास्त्री जी, दरअसल अब मेरा लिखना पढना बहुत ही सीमित रह गया है, उम्र का तकाजा है । ये तो कभी-कभी बासी कढी में उबाल आने जैसा है । फिर भी आपकी सलाह शिरोधार्य है ।
जवाब देंहटाएंसम्पर्क टूट गया था। आभार है विभा जी का फ़िर पहुंचा दिया जाले तक।
जवाब देंहटाएंमान्यवर !'कबिरा खड़ा बाज़ार में' पर आपकी टिपण्णी देखी ,अक्सर ये टिप्पणियां लेखन की स्याही बन जाया करती हैं ,हवन सामिग्री भी। आपके संस्मरण बहुत वजनी रहें हैं। और ये उम्र क्या होती है बस आँख से दिखता रहे कान थोड़ा बहुत सुनता रहे ,शरीर तो जाएगा ही जाएगा स्थाई चीज़ है आपका विचार उससे लाभन्वित करते रहें।
जवाब देंहटाएंयहां हर चीज़ का अब भाव है ,आगा पीछा देखने लगा है आदमी सुप्रीम कोर्ट की अति -सक्रियता देख कई कहने लगे हैं एक सुप्रीम कोर्ट कड़गम पार्टी भी बननी। लेखन ज़ारी रखिये। हरे कृष्णा !
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