रविवार, 28 अगस्त 2011

दीपू की माई

लोग उसे सिस्टर मथाई के नाम से जानते थे, पर कॉलोनी की महिलायें उसे ‘दीपू की माई’ कहना पसंद करती थी. वह रेलवे हास्पिटल कोटा में स्टाफ नर्स थी. अपने काम व व्यवहार में सबसे अच्छी. जब वह मुम्बई से नियुक्ति लेकर यहाँ आई थी, तो साथ में डेढ़ साल का एक प्यारा सा बेटा भी था. महिलायें उसके बाप के विषय जानने के लिए बहुत उत्सुक रहती थी लेकिन उसने इस बारे में कभी कोई कैफियत नहीं दी. पर बातें छिपती नहीं हैं, उसके साथ की अन्य नर्सों के मार्फ़त बात छन कर बाहर आ ही गयी कि डाक्टर सबेस्टियन मथाई को वह अपना हजबैंड बताती थी.


उसका असल नाम शालिनी पाटिल था. उसने मुम्बई के भायकुला स्थित नायर मेडिकल कॉलेज से नर्सिंग का कोर्स किया. इसी कोर्स के दौरान डा० मथाई से उसकी आशनाई हो गयी. शादी नहीं हुई, बच्चा हो गया. बच्चा पैदा होने से पहले ही डा० मथाई शालिनी और अपनी नौकरी को छोड़ कर कहीं मलेशिया चला गया. शालिनी व सबेस्टियन में न जाने क्या झगडा था, ये बात बाहर नहीं आई, लेकिन बच्चा होने पर शालिनी ने अपना सरनेम पाटिल से बदल कर मथाई कर लिया. माँ-बाप थे नहीं, भाई-भाभी ने इस रिश्ते को स्वीकार नहीं किया; अत: उनसे भी सम्बन्ध टूट गए. इस बीच पश्चिम रेलवे में नर्सों की वांट अखबारों में आई तो शालिनी ने अप्लाई कर दिया, और नियुक्ति लेकर वह कोटा आ गयी. करीब पन्द्रह वर्षों तक वह यहाँ रही. उसका बेटा दीपक धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था, मिशन स्कूल में पढ़ रहा था. अच्छे ढंग से उसकी परवरिश हो रही थी. उसके हाईस्कूल करते ही एक दिन अचानक खबर फ़ैली कि ‘दीपू की माई यहाँ से नौकरी छोड़ कर इंग्लैड जा रही है.’ दरसल सिस्टर मथाई की दिली इच्छा थी कि उसका बेटा इंग्लैड में पढ़े. इसलिए उसने एक एजेंसी के माध्यम से इंग्लैड के पूर्वी भाग में स्थित Broomfield Hospital, Chemsford में जॉब पाने की कार्यवाही की और वह सफल भी हो गयी. इस प्रकार सबका दिल जीतने वाली वह दीपू की माई अपने बेटे सहित इंग्लैड चली गयी. उसकी बड़ी कमी लोगों ने महसूस की, लेकिन समय सारे घाव भर देता है.


दस साल के बाद एक दिन वह अंग्रेजी लिवास में अपने बेटे दीपक व उसकी अंग्रेज पत्नी अलीसा के साथ परिचितों से मिलने कोटा आई. सभी ने खुशी मनाई और बहू आ जाने की बधाई दी. गोरी चमड़ी, सुनहरे बाल, नीली आखें व छरहरे बदन की अलीसा सभी के आकर्षण का केंद्र रही. उनको देखने के लिए मेला सा लग गया. हालांकि सिस्टर मथाई की ढलती उम्र उसके चेहरे से साफ़ झलक रही थी फिर भी उसे खूब मेकप किया हुआ था. परिधानों से परफ्यूम की महक रजनीगन्धा की तरह दूर तक फ़ैल रही थी. वह चहक-चहक कर इंग्लैण्ड की बातें लोगों को बता रही थी. अंत में बोली “जो बात अपने देश में है वह कहीं नहीं है.”


इस बार वह कभी नहीं आने के लिए लौट गयी, क्योंकि कुछ महीनों के बाद ही हृदय-घात से उसकी मौत हो गयी थी. कोटा में परिचितों को तब मालूम पड़ा जब तीन वर्ष के बाद दीपक मथाई पादरी बन कर कोटा लौटा और अपनी पत्नी के साथ एक मिशन स्कूल चलाने लगा.स्कूल के मुख्य द्वार से अन्दर जाते ही सिस्टर मथाई का एक आदमकद फोटो लगा हुआ है, जिसके नीचे लिखा है, ‘I LOVE INDIA.'


                                                      ***

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें