गुरुवार, 24 नवंबर 2011

गजल-२


सपनों में जी रहा हूँ इस ख़याल के सहारे
भूले से तुम ये कह दो कि हम हो गए तुम्हारे.

मुद्दत से जागता हूँ, सारी रात यों ही काटूँ
करवट बदल बदल कर तेरी याद को तराशूं
कई रात ये कलम भी मेरे साथ यों ही जागी
इसको भी है ये उलझन कि हम हो गए तुम्हारे.
                    भूले से ये कह दो ...

तेरे इश्क में तड़प कर हर खिजाँ मैंने न्योंता
हर बार आ खिजाँ ने मेरे दर्दों को है झेला
देकर यही दिलासा कि हम हो गए तुम्हारे
बनी रहे ये गफलत कि हम हो गए तुम्हारे.
                     भूले से ये कह दो...

मकामे मिलन बने हैं मेरी हर गजल के बंदिश
नगमा बना दिया है हर आरजू को तुमने
ऐसे में तुम ये कह दो कि हम हो गए तुम्हारे.
सपनों में जी रहा हूँ इस ख़याल के सहारे.
                      भूले से तुम ये कह दो...

               ***

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