शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

घोड़ा उड़ सकता है

घोड़ा उड़ सकता है.
पिछली शताब्दी के दूसरे दशक में जब मुम्बई-दिल्ली रेल लाइन की सर्वे हो रही थी तो एक अंग्रेज इंजीनियर ने कोटा व सवाई माधोपुर के बीच नीले पत्थरों की खेप पाई. वह कुछ नमूने अपने साथ इंग्लैण्ड ले गया. एनेलिसिस के बाद पाया कि पत्थर हाई ग्रेड लाइम स्टोन है जो सीमेंट बनाने के लिए अति उपयुक्त है. इस प्रकार मुम्बई के कुछ उद्योगपति व बूंदी के हाड़ा  नरेश के साथ मिलकर ‘BBB’ ब्रांड से सीमेंट बनाने की एक छोटी सी इकाई की स्थापना लाखेरी में की गयी. उस समय की वह नवीनतम टैक्नोलाजी आज की तुलना में काफी पुरानी थी.  

सन १९३७ में कई सीमेंट कंपनियों ने एकीकरण करके नई कम्पनी ACC  बनाई, लाखेरी यूनिट भी उसमें समाहित हो गयी. लखेरी मुख्य रेलवे लाइन के पास था. रा-मैटीरियल चूना पत्थर प्रचुर मात्रा में था, मजदूर सस्ते और उपलब्द्ध थे, पानी के लिए मेज नदी थी. कारखाना खूब मुनाफ़ा देता रहा.

मालिकों (शेयर होल्डर्स) उद्योग चलाने के लिए प्रोफेशनल नियुक्त कर रखे थे. आजादी के बाद पारसी उद्योग-पतियों का इसमें बर्चस्व रहा, टाटा भी बड़े शेयर होल्डर थे.

देश में दर्जनों छोटे-बड़े सीमेंट उद्योग आते रहे, जिनके मुकाबले में पुराने वेट-प्रोसेस प्लांट बहुत कम प्रोफिट दे रहे थे. या कहीं कहीं घाटा भी देने लगे थे. सीमेंट बिक्री कीमत पर सरकारी नियंत्रण होने से उद्योग वर्षों तक खुले में साँस नहीं ले पाया. बाद में आंशिक कंट्रोल कर लेवी सिस्टम लागू हुआ पर उद्योग में जान तब आई जब पूरी तरह डीकंट्रोल कर दिया गया. ए.सी.सी. की विशेषता ये थी कि इसने हमेशा क्वालिटी मेंटेन कर के रखी. ये इसका प्लस पॉइंट रहा है.

सत्तर के दशक में एक बार इसका शेयर वैल्यू घट कर मात्र ६७ रुपयों तक गिर गया था. उद्योग के कई प्लांट बीमार नहीं तो, बीमार जैसे ही चल रहे थे. टाप मैनेजमेंट ने घाटा दे रहे यूनिट्स से छुटकारा पाने के लिए बांमोर, शिवालिया, पोरबंदर, द्वारका, कृष्णा, और शाहाबाद को बेच डाला. लाखेरी को भी इसी लिस्ट में प्राथमिकता से रखा गया था पर कर्मचारियों की तरफ से १९८८ में मेरी यूनियन ने टाप मैनेजमेंट से वार्ता करके कारखाने को घाटे से उबारने में पूरा सहयोग देकर, ए.सी.सी. में बनाए रखने की जोरदार पैरवी की.

जो कारखाने फुटकर उद्योगपतियों ने खरीदे थे उनके कर्मचारी अभावों में आ गए थे क्योकि ए.सी.सी. तो अपने कर्मचारियों को अपने एसेट के रूप में देखती थी अन्य मारवाड़ी या कबाड़ी कारखानेदार उसी तरह व्यवहार करेगा ऐसा नहीं लगता था. उस वक्त कम्पनी के बोर्ड के चेयरमैन स्वर्गीय नानी पालखीवाला थे. मैंने कर्मचारी युनियन के अध्यक्ष के बतौर एक पैथेटिक पत्र लिखा. हमारा कहना था कि पुराने कारखाने के पेट से ही नए कारखानों ने जन्म लिया है, प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए हम हर संभव सहयोग के लिए तैयार हैं, यहाँ तक कि क़ानून व वेतन आयोगों की शिफारिशों को ताक में रख कर आधी पगार में काम करने को तैयार हैं.

हमारे भय व आशंकाओं का एक बड़ा कारण ये भी था कि हमारे पड़ोस सवाई माधोपुर में साहू जैन का, एक समय जो एशिया का सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक कारखाना था, मिसमैनेजमेंट के कारण बंद हो गया था और कर्मचारी अनाथ से हो गये थे. वहाँ राज्य स्तर पर बहुत राजनीति हुई पर कर्मचारी बर्बाद हो गए थे.

चेयरमैन पालखीवाला एक सुलझे हुए उद्योगपति, संविधानविद व बैरिस्टर थे, उनके पास हमारा प्रतिवेदन काम कर गया. उन्होंने तीन होलटाइम डाइरेक्टर सर्वश्री T.V.Balan,  M.M.Rajoria, और फाइनेंस डाइरेक्टर A.L.Kapoor को जायजा लेने तथा उचित कार्यवाही करने के लिए लाखेरी भेजा. मन्थन के बाद कारखाने को लाभ की स्थिति में लाने के लिए उन्होंने दो सुझाव रखे (१) वर्तमान वर्कफोर्स आधा करके कारखाना चलाया जाये (२) कारखाने में नई टेक्नोलाजी (ड्राई प्रोसेस) लाई जाये. दूसरे सुझाव में तो कर्मचारियों का कोई रोल नहीं था पर पहले के बारे में बड़ी असमंजस हमारे सामने थी. आधे कर्मचारियों को वाल्यूंटरी रिटायरमेंट स्कीम के तहत कम करना आसान नहीं था. बहरहाल मरता क्या नहीं करता? हमने लाखेरी के उन तमाम पक्षों की मीटीग्स बुलाकर यथास्थिति से अवगत कराया, जो इससे प्रभावित हो सकते थे; सभी की ये एकमत राय थी कि कारखाने को हर कीमत में बिकने से बचाया जाये.

डाइरेक्टर्स के साथ मीटिंग में मैंने जब पूछा कि इतना सब करने के बाद कम्पनी कारखाने को चलाने के लिए कितने वर्षों की गारंटी देगी? कहीं गुनाह बेलज्जत ना हो जाये. फाइनेंस डाइरेक्टर कपूर ने कहा १५ वर्ष इसके बाद मेमोरेंडम आफ अनडरस्टेंडिंग साइन हुआ. पूरे समझोते के लिए मैं अपनी पूरी कैविनेट (९ पदाधिकारी) सहित कारपोरेट आफिस मुम्बई गया. बोर्ड रूम में जो ड्राफ्ट हमें दिया गया था उसमे महज ५ साल की गारंटी दी गयी थी. मैंने कपूर साहब से पूछा कि ये क्या गलती है? उन्होंने बड़ी मायूसी से कहा पाण्डेय जी आज हमारी अपनी कोई गारंटी नहीं रही है, इसलिए मैं कुछ नहीं कह सकता हूँ. (कुछ दिनों बाद सचमुच मि. कपूर कम्पनी से बाहर हो गए थे.) इस पर मैं बैठक से उठ गया क्योंकि ये स्पष्ट रूप से धोखाधड़ी जैसा लग रहा था. मेरे साथी और कम्पनी के डाइरेक्टर्स इस डेवलपमेंट से भोंचक्के रह गए.

मान-मनोव्वल शुरू हुआ, मेरी कार्यकारिणी के अधिकाँश सदस्य मुझ पर ५ वर्ष की गारंटी पर ही राजी होने का दबाव बनाने लगे, लेकिन जब स्थिति काबू से बाहर होने लगी तो डाइरेक्टर श्री बालन ने एक मजेदार सन्दर्भ सुना कर बात बिगड़ने से बचा लिया. वह सन्दर्भ यों था:

एक बार किसी बात पर नाराज होकर अकबर ने बीरबल को फाँसी की सजा सुना दी. जब बीरबल से उसकी अन्तिम इच्छा पूछी गयी तो उसने कहा, मैं घोड़े को उड़ाने की विद्या जानता हूँ. बादशाह के घोड़े को उड़ना सिखाना चाहता हूँ. सन्देश अकबर के पास पहुँचा तो उसने पूछा कि कितना समय लगेगा? बीरबल ने बताया पूरा एक साल. बादशाह ने सहर्ष स्वीकृति दे दी. जेलर ने बीरबल से उत्कंठाबस पूछा, क्या सचमुच घोड़ा उड़ सकता है? तब बीरबल ने उत्तर दिया एक वर्ष का समय बहुत होता है. इस बीच बादशाह भी मर सकते हैं, मैं भी मर सकता हूँ, या फिर घोड़ा भी मर सकता है, कुछ भी हो सकता है. घोड़ा काबिल हुआ तो जरूर उड़ सकता है.

ये दृष्टान्त आज भी मेरे जेहन में बड़ी खूबसूरती से घूम रहा है क्योंकि जिस कारखाने को महज ५ वर्ष की गारंटी सन १९८९ में मिली थी उसमे कम्पनी ने सौ करोड से ज्यादा खर्चा करके लाफार्ज (फ्रेंच) टेक्नोलाजी का नया ड्राई प्रोसेस प्लांट लगाया है. वह घड़ी टल गयी. अब यह औरों के लिए एक आदर्श मिसाल भी बन गया है. मैं दूर बैठ कर देख रहा हूँ कि घोड़ा उड़ रहा है. ये दीगर बात है कि सन २००५ में स्विस कम्पनी होलसिम ने / बद मे लाफार्ज  ने / और अब नवधनाद्य गौतम अदानी ने ए.सी.सी. को खरीद लिया है और हमारे घोड़े पर अब वही सवार है. ऐसा चलता रहेगा; Horse will go on flying.

जिन अधिकारियों ने इस नवजीवन में योगदान किया है, उनको मैं अनेक शुभ कामनाये देंना चाहता हूँ.
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3 टिप्‍पणियां:

  1. नीति निर्धारण - 'दूरदर्शिता' में, 'बीरबल का घोडा' मील का पत्थर साबित हुआ, आज हांक चाहे कोई भी रहा हो, घोड़ा तो उड़ने लगा -- अनुभव का यह ' एपिसोड ' प्रेरणा दायक है. ---धन्यवाद.

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  2. These are unforgettable memories of ACC Lakheri plant and very nicely putforth before the readers as a feast.

    Those who are closly associated with Lakheri will certainly appreciate the contents as well as the writing skill of an author!

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