सोमवार, 17 नवंबर 2014

ईवेन्ट मैनेजर (सामयिकी)

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता, भूतपूर्व उपप्रधान मंत्री श्री लालकृष्ण अडवानी ने वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के बारे में सटीक बात कही है कि “वे एक अच्छे ईवेंट मैनेजर (event manager) है. इसमें कोई संदेह नहीं कि मोदी जी ने भारतीय मतदाताओं की नब्ज को बहुत बढ़िया ढंग से पकड़ा है. गुड़ नहीं तो गुड़ जैसी बात ही करो
का फार्मूला फिट किया हुआ है. उधर कांग्रेस पार्टी औंधे मुंह गिर कर परिवर्तन की मार सह रही है. सच बात तो यह है कि मोदी जी के मुकाबले उनके पास कोई धुरंधर नेता नहीं है. राहुल गांधी को धक्का दे दे कर आगे किया जाता रहा है, पर वह एक अविकसित, डरी हुए आत्मा है, जिसने अपने सामने अपनी दादी इंदिरा जी व पिता राजीव गांधी की प्रत्यक्ष मौत देखी है, जो कि बदले की भावना से की गयी थी. जिस बच्चे का शैशव, नाम बदल कर, डर के साये में बीता हो, उसके मानसिक स्थिति के बारे में सही आकलन करना आसान नहीं हो सकता है. बहरहाल वह मोदी जी जैसे सर्वगुणसंपन्न राजनैतिक खिलाड़ी की तुलना के ग्राफ में बहुत नीचे है. यहाँ उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी व राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता कोई मुद्दा नहीं है, ना इस बारे में उन पर कोई शक किया जा सकता है. वह एक सहज, सरल व परावलम्बी व्यक्तित्व है, जो आज की धूर्ततापूर्ण राजनीति में सफल कलाकार साबित नहीं हो सकता है.

वोल्टेयर ने कहा था कि “Give me the press, I will not care who rules the country.” उस जमाने में जब आज की तरह इलैक्ट्रोनिक मीडिया नहीं था, अखबार ही जनमत को प्रभावित करते थे. आज तो हमारे बेडरूम के अन्दर तक मीडिया का दखल हो चुका है, टीवी चैनल्स के मालिकों व संपादकों के वेस्टेड इंटरेस्ट हो सकते हैं, जिनका प्रत्यक्ष/परोक्ष प्रभाव हम लोग पिछले दिनों से देखते आ रहे हैं. मीडिया वालों के कई बिजनेस टार्गेट हो सकते हैं, पर सत्ता को दण्डवत करने का नया इतिहास इस बार उजागर हो रहा है.

मैंने इंटरमीडिएट करने के बाद करीब आठ महीनों तक एक प्राइवेट जूनियर हाई स्कूल में अध्यापन कार्य भी किया था, रवाईखाल, बागेश्वर के उस नए स्कूल के हेडमास्टर स्वर्गीय रूपसिंह परिहार थे. वे एक काफी वृद्ध रिटायर्ड हेडमास्टर थे, जिन्होंने अपनी जवानी के दिनों में मेरे पिताश्री को भी काण्डा मिडिल स्कूल में पढ़ाया था और मुझे भी सन 1949-50 में बागेश्वर मिडिल स्कूल में पढ़ाया था. वे जबरदस्त ईवेंट मैनेजर माने जाते थे. उनका कहना था कि लिफ़ाफ़े के भीतर क्या है ये तो लोगों को बाद में मालूम होता है, प्रथम दृष्टया लिफ़ाफ़े का बाहरी लुक आकर्षक होना चाहिए. रवाईखाल का वह ग्रामीण स्कूल अब हायर सेकेंडरी बन चुका है, पर उसकी बुनियाद भविष्यदृष्टा रूपसिंह जी ने तभी डाल दी थी.

दूसरा उदाहरण ए.सी.सी. लाखेरी सीमेंट कारखाने का है, जिसमें 1980-90 के दशक के बीच कई वर्षों तक स्वनामधन्य श्री प्रेमनारायण माथुर का जनरल मैनेजर के रूप में वर्चस्व रहा. मुझे उनके साथ काम करने का लम्बा अवसर मिला.  प्राईवेट कंपनियों में प्लांट हैड अपनी फैक्ट्री व कैम्पस का राजा होता था. ये कारखाना सात बर्षों से ज्यादा समय तक लगातार घाटे में चलता आ रहा था, और सिक यूनिट घोषित हो चुका था. चूंकि माथुर साहब अच्छे ईवेंट मैनेजर थे, उन्होंने बुरे दिनों में भी कॉर्पोरेट ऑफिस, सरकारी तंत्र और कर्मचारियों के साथ सामंजस्य बनाते हुए सीमेंट उत्पादन की तिथियों को इस प्रकार से समायोजित किया कि उत्पादकता का राष्ट्रीय अवार्ड हासिल किया. ये उनका कमाल था कि कुछ ना होते हुए भी सब कुछ होने का अहसास कराते रहे थे. ये दीगर बात है कि उनके जाने के बाद कारखाना बिकने के कगार पर आ गया था.

माथुर साहब उसके बाद सऊदी अरब के एक सुलतान के कारखाने जनरल मैनेजर बने थे. वहां से रिटायर होने के बाद भी सुलतान ने उनको नहीं छोड़ा, उनको अपना सलाहकार बनाए रखा था. उनके ईवेंट मैनेजरी का किस्सा ये भी है कि उन्होंने सुलतान को भारत भ्रमण का निमंत्रण दिया, और जब सुलतान  दिल्ली में उतरा तो बड़ी भीड़ फूल मालाओं से उसका स्वागत करने को तत्पर मिली. उसके बाद जब वह ताजमहल देखने आगरा गया तो वहाँ भी बहुत लोग उनकी अगवानी में मालाएं लेकर इन्तजार कर रहे थे. इसी प्रकार जब वह चारमीनार देखने हैदराबाद पहुंचा तो वहां का स्वागत देख कर गदगद हो गया. जबकि माथुर साहब का उन शहरों में कोई व्यक्तिगत आधार नहीं था फिर भी सुलतान को अहसास कराया गया कि प्रेमनारायण माथुर कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं.

मैं माथुर साहब को उनकी जवानी के दिनों से जानता हूँ, वे एक जूनियर ऑफिसर के रूप में लाखेरी माईन्स में इंजीनियर थे, पर वे लोगों के दिलों को जीतने की कला जानते हैं. भगवान उनको लम्बी उम्र दे. वे आजकल फरीदाबाद में विराजते हैं.

गत पांच महीनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां भी, जिस देश में भी, किसी भी प्रयोजन से भ्रमण कर रहे हैं, उनके मैनेजर्स/प्रायोजक आगे आगे वहाँ पहुँच कर प्रवासी भारतीय जनमानस को इस तरह से उद्वेलित करते आ रहे हैं कि मोदी जी की यात्रा एक यादगार समारोह बन जाता है. दुनिया हंसती है, हंसाने वाला चाहिए. मीडिया पूरी तरह समर्पित है और व्यवस्थापक सुनियोजित ढंग से अपना कर्तव्य निभा रहे हैं.

ये सब लिखकर मैं मोदी जी के करिश्माई चरित्र को कम नहीं करना चाहता हूँ, लेकिन घरेलू मोर्चे पर अभी तक महंगाई, बेरोजगारी, ग्रास-रूट पर भृष्टाचार तथा साम्प्रदायिक सौहार्द्य की यथास्थिति चिंतनीय है. बीच बीच में कालाधन, शौचालय, स्वच्छता अभियान जैसे मुद्दे उछालकर कुछ हो रहा है का अहसास कराया जा रहा है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोने व पेट्रोल के भावों में गिरावट को मोदी इफेक्ट नाम देकर भरमाया जा रहा है. हाँ ये जरूर है कि मनमोहन सिंह जी के समय में जो शून्य की सुनसानी थी, वह अब नहीं है. लगता है कि देश में कोई प्रधानमंत्री नाम की चीज मौजूद है जैसा कि जवाहरलाल जी के समय में होता था.
***

1 टिप्पणी:

  1. मेरा ये आर्टिकल नवम्बर २०१४ का लिखाया है,चूकि इसकी प्रासंगिकता आज भी ज्यों की त्यों है इसलिए पुन: प्रकाशित किया गया है. हाँ इस बीच गंगा-जमुना में करोड़ों टन जल प्रवाहित हो चुका है और अनेक राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय घटनाएं घट चुकी हैं जिनमें हाल में उभरी पाकिस्तानी/आतंकवादी ज्वलंत व उन्मादी घटनाक्रम उसी ईवेंट मैनेजरी के रूप में देखा जा सकता है.

    जवाब देंहटाएं