मुझे ए.सी. सी.
लाखेरी से रिटायर हुए अब १८ वर्ष से अधिक समय हो चुका है, लेकिन कुछ आत्मीय
सदाबहार लोग ऐसे भी थे, जिन्हें भुलाया नहीं जा सका है; उनमें से एक थे, स्व. जानकी
प्रसाद झा.
जानकी बाबू कंपनी
के जनरल स्टोर्स में क्लर्क हुआ करते थे. इकहरे बदन के ६ फीट से भी लम्बे कद के झा
एक खुशदिल व सामाजिक चरित्र वाले व्यक्ति थे. उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ से यह झा
परिवार आजीविका के लिए किन सूत्रों द्वारा लाखेरी पहुंचे थे, यह तो मुझे मालूम नहीं
है, पर लाखेरी के मैट्रोपोलिटन कॉलोनी में अपना विशिष्ठ स्थान बनाए हुए थे. इनके
परिवार के स्नेहभाव व अपनेपन की वजह से मेरा परिवार इनके निकट रहा था.
जानकी बाबू बन्दा मंदिर की
व्यवस्था सयोजकों में प्रमुख हुआ करते थे. भजन-कीर्तन व जागरण के अलावा अवसरों पर
शरद पूर्णिमा, अन्नकूट व भंडारों के लिए आमंत्रित करना नहीं भूलते थे. वे ‘ठंडाई’
पीने-पिलाने के बड़े शौक़ीन थे. उनके दायरे में बहुत से मित्र लोग हुआ करते थे. जब ‘जिग-जैग डैम’ में नाव चला करती थी, तब उसकी चाबी जानकी बाबू के पास ही हुआ करती थी. वे
जिमखाना के भी हमेशा सक्रिय सदस्य रहे; कार्यकारिणी में भी रहे. वॉलीबॉल के गजब के
खिलाड़ी भी थे.
जानकी बाबू के छोटे
भाई स्व. भूदेव प्रसाद भी माईन्स में फोरमैन थे. एक सेशन
में वे कोआपरेटिव सोसाईटी में मेरे साथ चेयरमैन मी रहे थे. मैं तब जनरल सेक्रेटरी
था.
मैंने जानकी प्रसाद
जी की माताश्री को भी देखा था. उनकी अर्धांगिनी स्व. चन्द्रकान्ता देवी से
मुलाक़ात होने पर ऐसा लगता था की अपने ही परिवार के सयानों से मिल रहे हैं. वे एक
खुश मिजाज महिला थी. उनके घर में एक दुधारू गाय भी बंधी रहती थी. उन दिनों (१९७०
के दशक में) ए.सी.सी. में कुछ कर्मचारियों का १५०-२०० रुपयों से ज्यादा
वेतन नहीं हुआ करता था, अत: सीमित साधनों से परिवार का पोषण करना पड़ता था, फिर भी
लोग खुशहाली में थे. जानकी बाबू के तीन कुमार महेंद्र, देवेन्द्र, और राजेन्द्र के
अलावा एक लाली बिटिया भी है. महेंद्र मैकेनिकल इंजीनियर कोटा जे.के. लोन में सर्विस
में लग गए थे, और बाद में रिलाइंस में चले गए थे और वहां बहुत बड़े ओहदे से रिटायर होकर नई मुम्बई
के वासी हो गए. श्रीमती जानकी प्रसाद कई बार वहां से लौटकर बेटे के वैभव की चर्चा किया
करती थी.
देवेन्द्र को सन ६३-६४
में मेरे कार्यकाल में सोसाईटी में बतौर सेल्सक्लार्क भरती किया गया था, पर जल्दी
ही उनका चयन कैमोर इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट में हो गया था, वहाँ से मशीनिस्ट बनकर
उनको ए.सी.सी. द्वारका में नियुक्ति मिल गयी और बाद में लाखेरी स्थानांतरित होकर आ
गए थे. सीनियोरिटी के आधार पर उनको प्रमोशन देकर पैकिंग हाउस में सुपरवाईजर और बाद
में फोरमैन-ऑफिसर बने. अब रिटायर होकर
गांधीपुरा तेजा मंदिर के पास घर बनाकर रहते हैं. सोशल मीडिया और राजनीति में सक्रिय
रहते हैं. उनका पुत्र हेमेन्द्र भी कंपनी की सेल्स में कार्यरत है. छोता भाई राजेन्द्र उर्फ़ लाला पिछले २५ वर्षों से डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल का ऑफिस संभाल रहे हैं. दोनों भाईयों का परिवार साथ रहता है.
स्व. चन्द्रकान्ता
देवी बहुत जीवट वाली महिला थी. कॉलोनी के तमाम सामाजिक व धार्मिक आयोजनों में उनके मधुर गीत-लोकगीत, भजन या
सुन्दरकाण्ड का वाचन सबके लिए मोहक हुआ करता था. जब उनका आवास ‘जींद की बावड़ी’ के
पास था तो पूरे इलाके को जीवंत बना कर रखा था, और उसे देवस्थान बना दिया था.
यह उन्ही पति-पत्नी
का प्रताप है कि उनकी अगली पीढियां संपन्न और सुखी हैं. सभी को शुभ कामनायें.
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