सोमवार, 19 मार्च 2018

यादों का झरोखा - ८ - स्व. जगदीश शंकर कुलश्रेष्ठ

मैं जब १९६० में लाखेरी आया तब ए.सी.सी. मिडिल स्कूल अपने पूरे यौवन में था. उसमें ३० से अधिक अध्यापक हुआ करते थे. यह स्कूल जिले में ही नहीं, पूरे राजस्थान का एक आदर्श स्कूल माना जाता था. स्व. गणेशबल भारद्वाज इसके प्रधानाध्यापक थे. उनके सहायक अध्यापकों में स्व. बंशीधर चतुर्वेदी, हरिसिंह राठौर, अविनाशचन्द्र गौड़ उर्फ़ मामाजी, मदनलाल वर्मा, बृजमोहन शर्मा (बाद में अकाउन्टस ऑफिसर बने), जगदीश शंकर कुलश्रेष्ठ, सोहनलाल शर्मा, ओंकारलाल शर्मा, कंवरलाल जोशी, कल्याणमल, श्रीमती आर्थर, श्रीमती विमला भोंसले, श्रीमती फ्रैंकलिन आदि सीनियर लोग थे. नई पीढ़ी की खेप में मेरे समकालीन श्री फेरुसिंह रूहेला, रतनलाल शर्मा, शम्भूलाल वर्मा, उदयसिंह जग्गी, बजरंगलाल वर्मा, कांतिप्रसाद कौशिक, बजरंगलाल पाराशर, शमशुद्दीन आदि थे. इन सभी गुरुजनों की अपनी अपनी विशिष्टता थी. चूंकि मैं भी एक अध्यापक-पुत्र हूँ इसलिए स्वाभाविक रूप से इस पूरी टीम से आत्मीयता के साथ जुड़ता चला गया और सभी का चहेता भी बन गया.

स्व. जगदीश शंकर कुलश्रेष्ठ एक आकर्षक व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे, और अपनी बात मनवाने की एक अदभुत कला उनके पास थी. मैंने उनके कौशल को कई बार तब सुना था जब वे सहकारी समिति की जनरल बॉडी में अपने रचनात्मक सुझाव दिया करते थे. वैसे तो उन वर्षों में स्कूल के कई प्रबुद्ध अध्यापक हमारी ट्रेड यूनियन ‘कामगार संघ’ की पॉलीटिक्स में भरपूर हिस्सा लिया करते थे, पर भारद्वाज जी, हरिसिंह राठौर, बृजमोहन शर्मा, जगदीश शंकर कुलश्रेष्ठ, व कांतिप्रसाद पदाधिकारी भी रहे थे. मुझे याद है, कुलश्रेष्ठ जी एक सेशन में हमारे ट्रेजरर थे.

वे बहुत अच्छे मार्गदर्शक थे. जब मैं पहली बार सोसाइटी का जनरल सेक्रेटरी चुना गया तो उन्होंने कई बार कार्य योजना के लिए मुझे नेक सलाह दी थी. मुझे उनके गुरु होने का अहसास होता था. उनके परिवार जनों से कोई घनिष्टता तब नहीं रही थी, पर तब पूरी कॉलोनी में एक कुटुंब का सा वातावरण था. मैंने श्रीमती कुलश्रेष्ठ को उनकी युवावस्था में तथा दो बेटे व दो बेटियों को किशोर-बाल अवस्था में देखा था, उनका वह स्वरुप मुझे आज भी याद है.

कुलश्रेष्ठ जी १९७९ में ए.सी.सी. से रिटायर होकर अपने बच्चों के साथ कोटा में स्थानांतरित हो गये थे. उसके बाद दुनियादारी की आपाधापी में इस परिवार से मेरा कोई संपर्क नहीं रहा. गत वर्षों में फेसबुक के माध्यम से उनके बड़े सुपुत्र अनिलजी से संपर्क हुआ तो अनेक जानकारियाँ मिली व यादें ताजा हो गयी. श्री अनिल (Engr. RVPNL Kota) व उनके अनुज श्री अवशेष (Chief Manager HR Escorts) दोनों ही अपनी अपनी सर्विसेस से रिटायर हो चुके हैं. अनिल कोटा में तथा अवशेष फरीदाबाद में सैटिल्ड हैं. अनिल बताते हैं कि उनके पिताश्री का १९९७ में तथा माताश्री का २००८ में स्वर्गवास हो गया था.

मुझे बताया गया कि इनके पूर्वज मूल रूप से उत्तरप्रदेश मैनपुरी के रहनेवाले थे. गुरूजी बचपन में ही अपने माता-पिता को खो चुके थे. हाईस्कूल पास करने के बाद अपनी बहन के पास कोटा आ गए थे, जहां कुछ समय तक पटवारी का काम करते रहे. फिर १९४४ में ए.सी.सी. स्कूल में अध्यापक का कार्य मिला तो लाखेरी के होकर रह गए. अध्यापन के दौरान ही उन्होंने ग्रेजुएशन तक अपनी पढाई पूरी की तथा टीचर्स ट्रेनिंग भी ली. उन्होंने अपने बच्चों को यथासंभव उच्च शिक्षा दिलवाई. उन्ही के प्रभाव-प्रताप से आज उनकी तीसरी पीढ़ी के बच्चे नीरद व नीरव राष्ट्रीय / अन्तराष्ट्रीय कंपनियों में सीनियर मैनेजीरियल पदों पर कार्य कर रहे हैं.

अनिल जी ने बताया कि उनकी बहनें अंजू और अंजुला अपने अपने संसार में व्यस्त और स्वस्थ हैं. हाँ, अंजुला के परिवार पर कुछ बर्ष पूर्व एक सड़क दुर्घटना का कहर हुआ जिसमें उसके पति और एक पुत्र स्वर्गवासी हो गए थे. इस नश्वर संसार में सुख भी है और दुःख भी है, पर स्मृतियों में वे लोग हमेशा ज़िंदा रहते हैं जो अच्छे काम करके और मीठे बोल बोलकर जाते हैं.

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1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-03-2017) को "ख़ार से दामन बचाना चाहिए" (चर्चा अंक-2915) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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