सरकारी नौकरी छोड़कर
ए.सी.सी. में आने का तब बड़ा लालच यों हुआ करता था कि वेतन+बोनस+ रिहायसी सुविधाएं
यहाँ बेहतर हुआ करती थी. ए.सी.सी. में प्रॉवीडेंट फंड और ग्रेच्युटी देने का
प्रावधान सरकारी नियम लागू होने से पहले से ही था.
स्व. सोहनलाल शर्मा
B.Sc. B.T. थे. उनके निकट संबंधी (स्व. केशवदेव शर्मा CTK) का परिवार पहले से ही लाखेरी कारखाने में
नियोजित था. उसी सूत्र से वे भी यहाँ आये और यहीं के होकर रह गए. वे सहायक अध्यापक
के बतौर सन १९५४ में भरती हुए और सीनिओरिटी के आधार पर हरिसिंह जी के बाद
प्रधानाध्यापक बनाए गए थे. सन १९९० में इस पद से रिटायर हुए.
उनके पूर्वज आगरा
के रहने वाले थे. उनके पिता स्व. ईश्वरीप्रसाद शर्मा एक सिविल इंजीनियर थे. मैं
अपने शुरुआती दस वर्षों तक सोहनलाल जी के पड़ोस में L-16 क्वार्टर में रहा था. मैंने उनके वृद्ध पिताश्री को देखा था तथा उनके निकट
बैठकर कई आशीर्वचन भी लिए थे. वे ज्ञान के
भण्डार थे. सोहनलाल जी का छोटा भाई श्री हरिश्चंद्र शर्मा (रि. प्राध्यापक) अजमेर
में व्यवस्थित हैं. उन्ही के पास रहते हुए बाबूजी का देहावसान हुआ.
सोहनलाल जी को मैं
अपने बड़े भाई के रूप में मानता था. उनकी
अर्धांगिनी श्रीमती हरदेई भाभीमाँ स्वरुप मेरे परिवार पर अपना छत्र बनाए रखी थी.
चूंकि हम पति-पत्नी तब बच्चों के पालन-पोषण में ज्यादा तमीज नहीं रखते थे इसलिए
उनका सानिध्य हमारे लिए वरदान स्वरुप रहा.
स्कूल में उनका
एडमिनिस्ट्रेशन कैसा था, यह तो उनके सहयोगी अध्यापक या पढ़ाये हुए हजारों
विद्यार्थी बता पायेंगे, पर गृहस्थी में वे बहुत आरामपसंद प्रवृत्ति के थे. वे सर्विस
के दौरान या बाद में अपने लिए खुद का कोई आशियाना नहीं बना सके, जिसका उनको बड़ा
अफसोस भी रहा करता था. तीन बेटियाँ सुधा, कमलेश और रमा को एक ही घर में तीन दामाद
यानि तीन भाइयों से ब्याहा गया. यह सौभाग्य था कि तीनों भाई पोस्ट ग्रेजुएट
हुनरमंद अध्यापक थे/हैं. बड़े श्री चन्द्रमोहन शर्मा (रि. फिजिक्स लेकचरर), मझले
स्व. हरिमोहन शर्मा (लेकचरर गणित) तथा छोटे श्री दिनेश मोहन (M.A ) आगरा में एक स्कूल का संचालन करते हैं. दुर्भाग्य ये रहा कि दस साल पहले
मझले दामाद जी का ह्रदयघात से देहावसान हो गया. उनका परिवार लाखेरी के शिव नगर में
अपने घर में रहता है. पिता की मृत्यु के बाद सरकारी नियमों/प्रावधान के अनुसार पुत्र
कपिल को नौकरी मिल गयी थी, और परिवार फिर पटरी पर चल पड़ा है.
श्रीमती सोहनलाल जब
अकेली रह गयी थी तो नाती कपिल ने उनको सहारा दिया है अपने परिवार के रखकर पूरी
देखभाल कर रहा है. उनके दोनों घुटनों पर आर्थराईटिस का कहर होने से चलने फिरने
में असमर्थ हैं.
सोहनलाल जी ने अपने
एक भतीजे श्री दीपक शर्मा को अपनी गार्जियनशिप में कैमोर इंजीनियरिंग इंस्टीच्यूट
में भेजा, जो वेल्डिंग का कोर्स करके आये और वर्तमान में लाखेरी में सुपरवाईजर की पोस्ट पर कार्यरत है.
सोहनलाल जी बहुत संवेदनशील
व्यक्ति थे. अपने सुख दुःख मुझसे बांटा करते थे. वे चाहते थे कि रिटायरमेंट के बाद अजमेर
में अपने भाई और रिश्तेदारों के मोहल्ले में जाकर बसें, पर लाखेरी ए.सी.सी. अस्पताल
प्रदत्त मेडीकल सुविधाओं ने उनको यहीं रुके रहने के लिए मजबूर किया था.
मेरे लाखेरी छोड़ने
के बाद जब तक पोस्ट आफिस में चिट्ठियों का चलन होता था, वे मुझे नियमित पत्र लिखा
करते थे. फोन की सुविधा होने पर यदाकदा फोन भी कर लिया करते थे. मेरे बच्चे आज भी
उनके लिए ताऊजी व ताईजी का संबोधन किया करते हैं. ऐसा रिश्ता जो भुलाए नहीं भूला
जा सकता है.
सन २०११ में
सोहनलाल जी इस संसार से अलविदा होकर उस देश चले गए जहां से कोई चिट्ठी पत्री या
सन्देश नहीं आते हैं.
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