बहुमूत्र – ये
बहुधा बुढापे का रोग है पर किसी को किसी भी उम्र में हो सकता है. इसका मुख्य कारण
गुर्दों का अतिशय सक्रिय रहना है. मधुमेह (डाईविटीज) के रोगियों के पेशाब में
शर्करा ज्यादे मात्रा में निस्तारित होती है जिससे पेशाब का वजन (ग्रेविटी) बढ़ जाता
है जिसे मूत्राशय बर्दाश्त नहीं कर पाता है, थोड़ा सा भी जमा होने पर पेशाब की हाजत
होने लगती है. पुरुषों में इसका एक विशेष कारण प्रोस्टेट ग्रंथि के एनलार्ज होना
है पूरा पेशाब एक बार में बाहर नहीं आ पाता है इसलिए बार बार बाथरूम जाना पड़ता है.
विशेष कर रात में कई बार उठना पड़ता है.
प्रोस्टेट की तकलीफ
में योग्य चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए. दवाओं से या सर्जरी (आजकल लेजर टेक्नोलाजी
से आपरेशन किये जाते हैं, जिसमें मरीज को कष्ट बहुत कम होता है) से इलाज संभव है.
प्रोस्टेट में कभी कभी कैंसर का खतरा भी होता है इसके लिए आजकल पहले ही खून
की जांच
P.S.A. (प्रोस्टेट स्पेसल एंटीजन) किया जाता है.
पहले समय में कैंसर की जांच आप्रेसन के
बाद बायोप्सी से होती थी जो पोजीटिव होने पर बाद में लाईलाज हो जाता था. अभी दवाओं
पर जोरशोर से रिसर्च भी जारी है. घबराने जैसी कोई बात नहीं है पर दुर्भाग्य से ऐसी
शिकायत हो गयी हो तो नीम हकीमी इलाज नहीं कराना चाहिए.
आयुर्वेद में
बहुमूत्र के लिए कुछ विशिष्ट दवाएं प्रयोग में लाई जाती हैं, इस सम्बन्ध मैं हाल
में इंटरनेट पर पढ़ रहा था तो ‘बहुमूत्र’ सर्च करने पर यु ट्यूब पर आचार्य बालकृष्ण
जी की वार्ता आ रही थी जिसमें उन्होंने बहुमूत्र के लिए गोक्षुरादिगुग्गुल व
गुड+काला तिल का प्रयोग गुणकारी औषधि के रूप में बताई है. इंटरनेट पर इस बारे में
और भी बहुत सी जानकारियाँ हासिल की जा सकती हैं.
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