खांसी – मुझे आज से
लगभग ५५ साल पहले लाखेरी सीमेंट कारखाने में कार्यरत स्व. पंo रामकिशोर शर्मा द्वारा एक लम्बी रचना ‘राजा और रानी’ शीर्षक से लिखकर
हमारी गृह पत्रिका ;लाखेरी सन्देश’ में छपने को दी थी, जो छपी भी थी. मेरे पास अब
वह रचना तो मौजूद नहीं है पर उसकी एक पंक्ति मुझे याद है :
हांसी सब झगड़ों की
रानी, खांसी सब रोगों की रानी.
अर्थात खांसी
मामूली बीमारी नहीं होती है. वैसे खांसना व छींकना हमारे शरीर की डीफेंस सिस्टम के
पर्याय होते हैं; पर यहाँ जिस खांसी की चर्चा की जा रही है उसका आशय ‘क्रोनिक
खांसी’ से है. यों सर्दी-जुकाम के बाद, मौसम परिवर्तन के समय गले में एलर्जी होने
पर खांसी की शिकायत आम होती है पर यदि खांसी लम्बे समय से परेशान कर रही हो तो
चिंता की बात होती है.
हमारी श्वास नली
(ब्रोंकल पाइप) में बलगम / कफ चिपकने से खांसी होने लगती है खतरनाक तब हो जाती है
जब उसमें कोई बैक्टीरियल संक्रमण हो जाए और अन्दर फेफड़ों यक पंहुच जाए. इस हालत
में उसे हल्के नहीं लेना चाहिए.
डस्ट में काम करने
वाले लोगों के श्वसन में डस्ट सीधे फेफड़ों तक जा सकता है इसलिय अच्छे किस्म के
मास्क पहनने चाहिए.
खांसी में बलगम की
बहुतायत होने पर तथा साथ में बुखार की शिकायत होने पर (विशेषकर दोपहर बाद बुखार
चढ़ता हो) तो खून की जांच व एक्स रे करवाकर मालूम किया जाना चाहिए कि कहीं टी.बी.
प्लूरासी या ट्यूमर तो उसका कारण नहीं है? आजकल इन बीमारियों का ईलाज बिलकुल संभव
हो गया है बशर्ते की सही डाईग्नोसिस हो गया हो और दवाओं की पूरी डोज ली जाए.
छोटे बच्चों में
हूफिग कफ (कूकर खांसी) एक वायरस द्वारा फैलता है, आवश्यक परहेज तथा दवा से कंट्रोल
में आ जाता है.
एक जरूरी बात मैं
खांसी के रोगियों को कहना चाहता हूँ कि खांसते वक्त रूमाल अवश्य इस्तेमाल करें तथा
अपने बलगम को जहां तहां ना थूकें . राख या मिटटी के डिब्बे में थूकें जिसे बाद मिट्टी में दबा दें.
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