शनिवार, 7 जनवरी 2012

चुहुल-१४

                            
(१)
एक फिलासफी के प्रोफ़ेसर पहली बार किसी गाँव-देहात में गए. कच्चे मकानों की दीवारों पर गोबर के उपले थापे हुए थे, जिसे देख कर वे ठिठक गए और लोगों से पूछा, दीवारों पर ये क्या है?"
किसी ने जवाब दिया, जनाब ये भैंस का गोबर है.
प्रोफ़ेसर साहब बड़े आश्चर्य व असमंजस में सोचने लगे, भैस ने इतनी ऊंचाई पर डिजाइनदार तरीके से गोबर किया तो कैसे किया?

(२)
एक पैसेंजर ट्रेन अहमदाबाद से सूरत की तरफ रवाना होनी थी. रात दस बजे सभी डिब्बे खचाखच भर गए. दो मनचले छोकरे चढ़ तो गए, पर जब उन्हें बैठने तक की जगह नहीं मिली तो उन्हें एक शरारत सूझी. उन्होंने "सांप, सांप, सांप," चिल्लाना शुरू कर दिया. यात्री लोग डर के मारे सामान सहित उतर कर दूसरे डिब्बों में चले गए. वे दोनों ठाठ से ऊपर वाली सीट पर बिस्तर लगा कर लेट गए, दिन भर के थके थे सो जल्दी ही नीद भी आ गई.
सवेरा हुआ, "चाय, चाय" की आवाज पर वे उठे चाय ली और चाय वाले से पूछा कि कौन सा स्टेशन आया है? तो चाय वाले ने बताया, "अहमदाबाद है."
फिर पूछा, अहमदाबाद से तो रात को चले थे?
चाय वाला बोला, इस डिब्बे में सांप निकल आया था इसलिए इसे यहीं काट दिया था.


(३)
दो अध्यापक बिरला जी की कोठी के पास से निकल रहे थे. एक ने कहा, यार अगर मैं बिरला जी की जगह होता तो उनसे ज्यादा कमा सकता था.
दूसरे ने पूछा, वो कैसे?
उसने उत्तर दिया, जो कमाई कारखानों व व्यापार से आ रही है वो तो आती ही, इसके अलावा मैं दो ट्यूशन भी तो करता.

(४)
एक चोर के बयान अदालत में हो रहे थे. जज साहब ने कहा, जब तुम ताला तोड़ रहे थे तो गोपाल ने तुमको देखा था." इस पर चोर बोला, साहब, गोपाल झूठ बोल रहा है, जब मैं ताला तोड़ रहा था तो वहाँ पर कोई भी नहीं था.

(५)
एक खटारा बस का कंडक्टर आवाज लगा रहा था, १० रुपयों का टिकट लो, या ५ रुपयों का टिकट लो, या २ रुपयों का टिकट लो, कहीं तक जाना हो, किसी भी सीट पर बैठो सारी छूट है. कुछ लोगों ने १० रूपये का टिकट लिया और थोड़े से लोगों ने ५ का भी टिकट लिया, ज्यादातर पैसेंजरों ने २ रूपये का ही टिकट लिया और बस चल पडी. कुछ दूर जाने के बाद जब बस खराब हो गयी तो कंडक्टर ने कहा, १० रूपये टिकट वाले बस में बैठे रहो, ५ वाले बाहर बस के साथ-साथ पैदल चलो और दो रूपये वाले बस को धक्का लगाते ले चलो.
                                         *** 

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