बुधवार, 28 मार्च 2012

नाराजी इस हद तक

(देश-दुनिया के समस्त कानूनविदों, वकीलों व न्यायिक अधिकारियों को सादर नमन करते हुए मैं इस दृष्टांत को कहानी के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ. सभी लोग अच्छे या सभी लोग बुरे नहीं होते हैं, अपवाद सब तरफ हैं. वकालत के पेशे से जुड़े लोगों में भी निश्चित तौर पर अपवाद हैं, ये उसी अँधेरे पक्ष पर एक व्यंग है, उसी रूप में लिया जाये.)

बनवारीलाल गुप्ता वकील बनना चाहते थे क्योंकि उनके पिता हजारीलाल गुप्ता यही चाहते थे. वे बरसों से अदालतों के चक्कर काट रहे थे, फिर भी अपने पुश्तैनी मकान को किरायेदारों से खाली नहीं करवा पा रहे थे. सरकार ने क़ानून ही ऐसे बना रखे हैं कि मकान मालिक बेचारा बन कर रह जाता है. दो दो किरायेदार मकान में रहते आ रहे थे. आधे मकान पर उनका बरसों का कब्जा था लेकिन किराया इतना कम कि बताने में भी शर्म आती थी. नाम मात्र पन्द्रह पन्द्रह रूपये मासिक. खुद को अब कमरों की जरूरत आन पड़ी क्योंकि परिवार बड़ा हो गया था, लेकिन किरायेदार थे कि बार बार बोलने पर भी खाली करने का नाम नहीं ले रहे थे. नौबत झगड़े के बाद, अदालत तक गयी और अब तारीख, पेशी, आये दिन के चक्कर, वकीलों की फीस. हर बार नया पंगा. वकील भी केस की तारीख बदलवाने में उस्ताद. कि हर पेशी में शगुन की तरह फीस दो अन्यथा सीधे मुँह बात ही न करें. दिन भर बैठे रहो नम्बर ही ना आये. तंग आकर वकील भी बदल डाले, पर ढाक के वही तीन पात. इसलिए पिता जी का सपना था कि अगर बेटा वकील हो जाएगा तो सारी समस्या हल हो जायेगी. बनवारीलाल लॉ कॉलेज तक पहुंच गए. एल.एल.बी. उतीर्ण हो गए, लेकिन उन्होंने अपना रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया क्योंकि उनको लगने लगा था कि यह तो फरेबी का धन्धा बन गया है.

वकालत क्या है? किसी मजलूम-मजबूर व्यक्ति को कानूनी सहायता देना उसकी विधिवत पैरवी करना ताकि पीड़ित को न्याय मिल सके. लेकिन नटवरलाल को कॉलेज के दिनों में ही ऐसा लगाने लगा कि क़ानून की पढ़ाई तो एक तरफ ताक पर रहती है और व्यवहारिक तौर पर पूरी इमारत झूठ और तिकड़मी बयानों पर आधारित होती है. हर अदालत में लिखा रहता है सत्यमेव जयते पर कितनी बार सत्य की जय हो पाती है, ये भुक्त भोगी ही जान पाता है. चोरी, बलात्कार, लूट व फौजदारी मामलों में सच को कैसे पलटा जाये, टेक्निकल पॉइंट्स के आधार पर असल गवाहों को किस तरह बेवकूफ सिद्ध किया जाये और नकली पेशेवर गवाहों को गीता/कुरान पर हाथ रखवाकर झूठी कसमें दिलवा दी जाएँ. ये सारा खेल हर अदालत में होता है. वकील बड़े बड़े नुक्ते उठा कर बहस करते हैं. मजिस्ट्रेट भी सब समझ रहे होते हैं. अखबार/मीडिया वाले चटखारे लेकर तुरतदान करते हुए अपनी राय से अदालती फैसलों से पहले ही सजा की घोषणा या अपराधमुक्त करने की बातें प्रकाशित कर देते हैं

बनवारीलाल गुप्ता जब कॉलेज के पढ़ ही रहे थे तो सारे सिस्टम और वकीलों के तौर तरीकों पर सोच सोच कर बहुत उद्विग्न रहा करते थे. ये सब उनको जैसे माफिक नहीं आ रहा था.

वकालतनामा भरने के बाद सच क्या है? क्या बोलना है? इस बात को वकील ही पढ़ाते-सिखाते हैं. इसी बात पर उनका अपना मकान इतने बरसों में खाली नहीं हो पाया और ना ही किराया मिल पाया, इसके उलट उनके पिता पर गाली-गलौज व अभद्रता करने के आरोप में केस कर दिये गए. आरोपों को साथ लेकर ही हजारीलाल गुप्ता इस दुनिया से विदा हो गए. पुलिस का रोल भी बहुत संदिग्ध व भ्रष्टाचारी रहा. इसलिए बनवारीलाल गुप्ता का अच्छे नम्बरों से एल.एल.बी. उतीर्ण करने के बाद भी इस पेशे के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराने का मन नहीं हुआ. नहीं करवाया. अन्यत्र नौकरी तलाशते हुए स्थानीय म्यूनिसिपैलिटी में क्लर्की करना बेहतर समझा. यों सारी जिंदगी नकारात्मक सोच के साथ गुजार दी. लोगों का क्या? लोगों का काम है कहना, जो यही कहते रहे कि वकालत इनके बस में नहीं थी इसलिए क्लर्की करते रहे.

बनवारीलाल बड़े तीखे स्वरों में वकीलों के प्रति नफरत व्यक्त करते आये हैं. जहाँ कहीं भी वकीलों का जिक्र होता था, वे कडुवाहट के साथ अपशब्द निकालते थे कहते थे, ये लॉयर नहीं लायर हैं. कई बार लोगों ने उनसे कहा कि सारे वकील ऐसे नहीं है, पर वे मानते थे कि सच को झूठ साबित करने का नाम ही वकालत है.

बयासी साल की उम्र में जब बनवारीलाल गुप्ता बहुत बीमार हो गए, तो उन्होंने शहर के एक सीनियर वकील एस.पी. श्रीवास्तव को तलब किया और कहा कि उनका एल.एल.बी. का प्रमाणपत्र बहुत पुराना है पर वकील के रूप में वे मरने से पहले अपना रजिस्ट्रेशन अवश्य करवाना चाहते हैं. सभी लोगों को इस बारे में बहुत ताज्जुब हुआ कि जो आदमी जिंदगीभर वकीलों के खिलाफ उलटा-सीधा बोलता रहा है, अपने अन्तिम समय पर खुद को वकील के रूप में रजिस्टर करवाना चाहता है. खैर, एस.पी. श्रीवास्तव ने प्रमाणपत्र के आधार पर उनका रजिस्ट्रेशन करवा दिया. ये उनके लिए सामान्य काम था.

जब रजिस्ट्रेशन का प्रमाणपत्र लेकर एस.पी. श्रीवास्तव बनवारीलाल गुप्ता के पास आये तो उन्होंने बड़ी संजीदगी से उनसे पूछ डाला, ताऊ, ये बात समझ में नहीं आई कि जिंदगी भर आपने रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया और अब इस उम्र में इच्छा जताई है. इसके पीछे आपका मकसद क्या है?

बनवारीलाल बोले, मैंने रजिस्ट्रेशन इसलिए करवाया कि जब मैं मरूंगा तो वकीलों की टोटल संख्या में कम से एक की कमी तो आयेगी.
                                           ***

4 टिप्‍पणियां:

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  2. इस कहानी में वकीलों के बारे में व्यंगात्मक रूप से जो बातें लिखी गयी हैं वे एक कडुवा सच है. अदालत गवाहों पर चलती है और गवाहों को वकील साहब अपने ढंग से सिखा पढ़ा कर बयान करते हैं. कहानी का नायक इसीलिये फ्रस्ट्रेटेड लगता है.

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  3. आपके ब्लॉग पर जा कर बहुत ख़ुशी हुई .अपना बचपन और लाखेरी में बिताये गए दिन फिर से याद आ गए

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