शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

लाखेरी नगरपालिका

अरावली पर्वतमाला की गोद में बसा हुआ लाखेरी नगर, बूंदी जिले का दूसरा बड़ा नगर है. 2011 की जनगणना के अनुसार इसकी कुल आबादी 29572 थी. पर्वतीय उपत्यकाओं के बीच हरा भरा नखलिस्तान सा लगने वाला ये नगर कैनवस पर उकेरा गया प्राकृतिक सौन्दर्य का एक विहंगम चित्र सा नजर आता है, जिसमें नीम, शीशम, आम, जामुन, पीपल, तथा बबूल के वृक्षों की भरमार है. जंगली प्लान्टेशन के फलस्वरूप सर्वत्र कांटेदार कीकर (अंगरेजी बबूल) की झाडियां फ़ैली हुई हैं.

निकाय क्षेत्र में बड़े बरसाती सरोवर व मीठे पानी के कुंवे-बावडियों की भरमार है. हर रविवार को मुख्य बाजार के आगे हाट लगता है, जो आसपास ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की आवश्यकताओं की भी पूर्ति करता है. क्षेत्र में अब अनेक स्कूल, कॉलेज, अस्पताल हैं, और सीमेंट का एक कारखाना है, जो गत एक सौ वर्षों से राष्ट्र निर्माण में सहभागी है तथा इस क्षेत्र की आर्थिक समृद्धि का जीवंत प्रमाण है.

सन 1976 तक गरमपुरा पंचायत क्षेत्र नगरपालिका सीमा के बाहर था. विस्तार होने पर ए.सी.सी. के लीज एरिया सहित उसका विलय नगरपालिका में कर दिया गया. विस्तार होने पर लाखेरी रेलवे स्टेशन से इंदरगढ़ रोड पर भावपुरा तक, बूंदी रोड पर शंकरपुरा+सुभाष नगर  से लेकर प्राचीन बसावट ब्रह्मपुरी व तमोलखाना तक सीमाएं फ़ैल गयी हैं. परिसीमन करके कुल 25 वार्ड्स बनाए गए हैं.

किसी स्वनामधन्य ‘लाखा गूजर के नाम पर इस गाँव का नाम लाखेरी पड़ा, ऐसा कहा जाता है. ये गाँव कब बसा, और इसमें लाल पत्थरों से बने सुन्दर मंदिर और बावडियां बूंदी के राजाओं ने या किसी और ने बनाए, इस बारे में मुझे कहीं से प्रामाणिक तथ्य नहीं मिल पाये. यों तो लाखेरी नगर निकाय का अभ्युदय सन 1937-38 से बताया जाता है. नागरिक सुविधाओं की देखरेख के लिए किन किन लोगों ने इसकी शुरुआत की इसका भी कोई विवरण नहीं मिल सका है. राजस्थान राज्य के पुनर्गठन के बाद दिनांक 5-12-1951 के सरकारी नोटिफिकेशन द्वारा लाखेरी नगरपालिका को लोकल सेल्फ गवर्नमेंट की मान्यता मिली, ऐसा विकीपीडिया के इतिहास में दर्ज है.

पिछली सदी के पांचवे दशक में ए.सी.सी. ने जब गाँव के बीच से चमावली की तरफ अपनी रेल लाइन डालनी चाही तो उसके विरुद्ध एक जन आन्दोलन उठ खड़ा हुआ था, जिसका समाधान एक समझौते के तहत हुआ कि कंपनी ने गाँव में ब्रह्मपुरी के आख़िरी छोर तक पक्की सीमेंट की सड़कें बनवाई, अस्पताल की सुविधा दी, सार्वजनिक स्थलों पर निशुल्क बिजली की व्यवस्था दी. अनेक सार्वजनिक हितों में आर्थिक योगदान दिया और स्थाई रूप से हर महीने कुछ निश्चित राशि अनुदान के रूप में देना स्वीकार किया. इस आन्दोलन का नेतृत्व स्व. गजानंद जी पुरोहित और भू. पू. विधायक स्व. भंवरलाल शर्मा द्वारा किया गया था, जिनको बूंदी के वकील (बाद में अनेक विभागों के मंत्री रहे), पंडित बृजसुन्दर शर्मा का वरदहस्त प्राप्त था. विजयद्वार उसी जीत का प्रतीक माना जाता है. इस द्वार के ऊपर से रेल लाइन आज भी गुजरती है. उस आन्दोलन में स्व. हरिप्रसाद शर्मा (भू.पू.विधायक), नंदकिशोर दीक्षित (डब्लू) आदि अनेक नौजवानों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. इस आन्दोलन को लाखेरी में एक बड़ी राजनैतिक चेतना के रूप में देखा गया क्योंकि इसके बाद अनेक समर्पित कार्यकर्ताओं की टीम उभर कर सामने आई थी, जिनमें प्रमुख नाम जो लेखक की जानकारी में हैं, वे हैं, सर्वश्री जडावचंद शर्मा, मानकचंद जैन, दुर्गालाल शर्मा, मदनलाल शर्मा (खेवरिया) नेमीचंद जैन, दीनानाथ शर्मा, छीतरलाल जैन, किशनचंद शर्मा, श्रीकृष्ण शर्मा, गोबरीलाल राठोर, दौलतराम शर्मा, बाबूलाल शर्मा, नरसिंहलाल शर्मा आदि. (जिन नामों को मैं स्मरण नहीं कर पाया हूँ, सुधी पाठक कृपया टिप्पणी द्वारा जोड़ने का कष्ट करें.)

प्रारम्भिक वर्षों में स्व. गजानंद जी पुरोहित इसके संरक्षक/ चेयरमैन, सब कुछ थे. उनकी टीम में कौन कौन सक्रिय थे, ये भी पुरानी बात है. हाँ, ये भी सुना था कि कारखाने में बतौर कैशियर कार्यरत स्व. केशवलाल दीक्षित भी म्युनिसपैलिटी का कार्य देखते थे. 1951 के बाद विधिवत चुने हुए चेयरमैनों की क्रमबद्ध सूची इस प्रकार है: सर्वश्री मानकचंद जैन, हरिप्रसाद शर्मा, नंदकिशोर दीक्षित, मदनलाल शर्मा, रामनारायण शर्मा, दौलतराम शर्मा, राधेश्याम शर्मा, इब्राहीम गांघी, मोडूलाल महावर, महावीर गोयल, चौथमल नागर, और राकेश सेनी.

राजनैतिक उठापटक के दौरान बीच बीच में सरकारों द्वारा बोर्ड भंग करके प्रशासक भी नियुक्त किये जाते रहे हैं. ताजा सामाचार यह है इस बार हुए चुनावों के फलस्वरूप जो नया बोर्ड आया है वह अभी अच्छा काम कर रहा है.
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