गुरुवार, 1 मार्च 2012

हरि-कथा

भगवत गीता के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी ने १८ पुराणों की भी रचना की, इनमें से एक है, श्रीमद्भागवत पुराण संस्कृत भाषा में भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन १८,००० श्लोकों में विस्तार के साथ किया गया है. इसमें अनेक कथाएं व उपदेश हैं, जो सनातन धर्म की आस्थाओं पर आधारित हैं, या यों कहा जा सकता है कि धर्म की आस्थाओं का आधार ये पौराणिक कथाएं हैं.  तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में लिखा है: "हरि अनंत, हरि कथा अनंता."

श्रीमद्भागवत की कथा की शुरुआत ऐसे होती है कि राजा परीक्षित ने जंगल में अहंकारवश एक मरा हुआ सर्प तपस्या में लीन शमीक ऋषि के गले में डाल दिया. ऋषि के पुत्र श्रंगी ऋषि ने राजा को गुस्से से श्राप दे दिया कि सात दिन में सर्पराज तक्षक के डसने से वह म्रत्यु को प्राप्त हो जाएगा. इस श्राप से भयभीत राजा परीक्षित सन्तों के शरण में जाता है और सात दिनों तक व्यास पुत्र शुकदेव से, मृत्यु से पूर्व कृष्ण चरित्र सुनता है. ये एक अद्वितीय ज्ञानवर्धक कथा है, इसमें पौराणिक गल्प भी बहुत हैं, लेकिन सामाजिक मर्यादा और चरित्र निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है.

उत्तर भारत में शहरों तथा गाँवों में आस्थावान लोग भगवत कथा का आयोजन करते रहते हैं, जो सात दिनों तक चलती है. अनेक विद्वान कथावाचक सुरुचिपूर्ण ढंग से कथा के सन्दर्भों का विधिपूर्वक पूजन व वर्णन करते हैं. इस कथा के श्रवण से अनेक पापों का और दुखों का अंत होता है, ऐसा कहा जाता है.

अल्मोड़े जिले में द्वाराहाट तब एक छोटी जगह हुआ करती थी. आज की तरह कस्वे के रूप में विकसित नहीं हुआ था. आज तो वहाँ बड़े बड़े कॉलेज-विद्यालय भी हो गए हैं, तब केवल एक मिडिल स्कूल था, जहां आस पास गाँवों के लड़के पढ़ने आया करते थे. स्कूल के पास के गाँव दुगारी में सूबेदार हरिसिंह ने अपने घर-आँगन में भागवत कथा का आयोजन किया ताकि गाँव के लोग कथा का श्रवण सुख ले सकें. सूबेदार जी ने इस अवसर पर रानीखेत से दस फोल्डिंग कुर्सियां भी मंगवाई थी ताकि जो लोग फर्श पर नहीं बैठ पायें वे आराम से बैठ सकें. कथा के दूसरे ही दिन दो कुर्सियां कम हो गयी. तमाम खोजबीन की गयी पर पता नहीं चला कि कुर्सियों को कौन ले गया? और इसी प्रकार अगले दिन फिर दो कुर्सियां गायब हो गयी. पूछताछ पर एक महिला, जो जंगल में अपने जानवरों का चारा लेने गयी थी, ने बताया कि उसने दो स्कूली लड़के पश्चिम की तरफ जाने वाली पगडंडी पर कुर्सी ले जाते हुए देखे थे. उस पगडंडी वाले रास्ते पर दो गाँव पड़ते थे, सो वहाँ से पढ़ने को आने वाले बच्चों से पूछताछ की गयी लेकिन कोई सच बताने को तैयार नहीं हुआ. सूबेदार जी ने स्कूल के हेडमास्टर जी से इस बात की शिकायत की, लेकिन लड़कों ने वहाँ भी पूरी तरह अनभिज्ञता जाहिर की.

हेडमास्टर पंडित हरिनंदन जोशी अपने समय के बहुत विद्वान और चतुर व्यक्ति माने जाते थे. वे समझ गए कि अवश्य ही पश्चिम दिशा वाले गाँवों से आने वाले लड़कों में से किसी की कारस्तानी थी. उन्होंने एक पुराने फार्मूले पर नायाब तरीके से कुर्सी चोरों को पकड़ने की ठानी. सभी पन्द्रह बच्चों को परीक्षा हाल की तरह अलग अलग बिठाया गया सभी को बिना लम्बाई बताए १४ इंच लंबा धागा दिया गया. थोड़ी देर बाद सभी को एक एक स्केल भी दे दिया गया. लड़कों को ताकीद कर दी गयी कि कोई किसी से बात नहीं करेगा. लड़कों को बताया गया कि धागा अभिमंत्रित हैं. और जिसने कुर्सियां ली हैं उनके घागे दो इंच लंबे हो जायेंगे.

दस मिनट के बाद सबके धागे चेक किये गए तो दो लड़ाकों के धागे दो-दो इंच कटे हुए मिले. इस प्रकार दोनों चोरों को पकड़ा गया. तब गलती करने वाले लड़कों को कड़ी सजा मिला करती थी ताकि भविष्य में दुबारा वैसा न करें. हेडमास्टर जी ने दोनों लड़कों को दस-दस बेंत और एक सप्ताह तक स्कूल की बाउंड्री साफ़ करने की सजा दी. दोनों के माता-पिता को कुर्सियां वापस लाने के आदेश के साथ ही शेष दिनों में भागवत कथा श्रवण करने का आदेश भी सजा के रूप में दिया गया. वह समय ऐसा था कि गुरू (अध्यापक) का आदेश शिरोधार्य होता था. उनको समाज में महेश्वर का दर्जा प्राप्त था.
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3 टिप्‍पणियां:

  1. बात भीतर की हो या बाहर की,केवल गुरुकृपा से परिष्कार संभव है. उचित ही,वे ब्रह्मा,विष्णु और महेश माने गए हैं.

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  2. These real life incidents are more awe inspiring than the epics themselves. will guru's ever be held again in such high esteem by the students's now?

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