(इस कहानी का लिंक पिछली कहानी ‘दोस्ती में दगा’ से है)
गफ्फार खान के साथ पत्नी के गायब होने पर हैरिस मैसी एकदम सकते में आ गया था क्योंकि एक साल की मासूम बेटी पूरी तरह उसकी जिम्मेदारी पर आ गयी थी और बदनामी हो रही थी सो अलग. लेकिन ऊपर वाले के निजाम को आज तक कोई नहीं समझ पाया है. एक शाम जब वह रेलवे प्लेटफार्म पर स्ट्रेला को लेकर टहल रहा था तो अचानक एक बारह--तेरह साल के सफिया नाम के लड़के से टकरा गया. बातचीत में खुलासा हुआ कि वह आगरा शहर से किन्नरों के चंगुल से छूट कर आया है. उसने धीरे से बताया कि वह खुद भी जन्मजात किन्नर है. हैरिस मैसी को जैसे मन माँगी मुराद मिल गयी, वह उसको अपने घर ले आया. उससे लाड़-प्यार से बात की. वह भूखा था सो खाना खिलाया. इस प्रकार अपनापन पाकर सफिया हमेशा के लिए परिवार का हिस्सा हो गया. दरअसल सफिया को किन्नरों की टोली ने उसके माँ-बाप से तभी छीन लिया था, जब वह केवल तीन महीने का था. किन्नरों की अपनी एक अलग जमात होती है, जहाँ सबकी एक ही जाति व धर्म होता है. वे टोह में रहते हैं कि गाँव/शहर में कोई नपुँसक (बिना जननेंद्रिय वाला) बच्चा पैदा हो और उनके काम आये. वे उस पर अपना अधिकार समझते हैं, वे बाकायदा उसका पालन-पोषण करते हैं. गाने-बजाने व नाचने की ट्रेनिंग तथा लटके-झटके सब उसे सिखाकर तैयार करते हैं ताकि उनका बंश भी चलता रहे.
किन्नरों की अपनी कोई खेती या बिजनेस तो होता नहीं है, एक समय था की किन्नरों को कई नागरिक अधिकार भी प्राप्त नहीं थे. गाँव/शहरों में लोगों के बच्चे पैदा होने पर या शादी व्याह में बधाईयां गा कर जो इनाम मिल जाता था उसी से जीवन निर्वाह करते थे. लेकिन आजकल ये लोग ट्रेड युनियन जैसी एकता बना कर रहते हैं, इलाके बंटे हुए रहते हैं. इनके अपने गुरू भी होते हैं और समय समय पर जलसे भी होते हैं. कुछ किन्नर तो आर्थिक रूप से समृद्ध भी बताए जाते हैं.
अब आजकल कहीं कहीं तो बधाई के प्रतिदान में हजारों रुपयों व कपड़ों की असीमित मांग करने लगते हैं, दादागिरी या अश्लील हरकतों से परेशान करके अपने दस्तूर को, यजमान को दु:खी करके वसूल करते हैं. इनमें आजकल राजनैतिक चेतना भी पाई गयी है और ये चुनाव के मैदान में ताल ठोकने लगे हैं. राजनैतिक नेताओं के विद्रूप चेहरों को चोट पहुचाने के लिए लोग इन्हें जिता भी देते हैं. हम सामान्य जन केवल कल्पना ही कर सकते हैं की जिन मनुष्यों के जीवन का आनंददायक प्रणय सोपान व सामाजिक सम्मान छिना हुआ हो, उसकी मानसिक स्थिति कैसी होती होगी? कितना इन्फीरियोरिटी काम्प्लेक्स रहता होगा. पौराणिक काल से ही ये विडम्बना किन्नरों के नाम लिखी गयी हैं.
सफिया तो अभी बच्चा ही था यद्यपि किन्नरों वाले लटके-झटके बात करने का लहजा देख कर उसकी पहचान अलग ही हो रही थी. हैरिस मैसी ने उसे अपने बेटे का दर्जा देकर सब तरह से खुश कर दिया. बदले में वह छोटी बच्ची स्ट्रेला की भरपूर देखरेख करने लगा. कॉलोनी के बच्चे सफिया से मसखरी व कभी कभी बदतमीजी भी करते थे पर वह सब सहता रहा. उसे अच्छा आश्रय मिल गया था. अपना ही घर परिवार समझ कर रहने लगा.
सफिया के सानिध्य में स्ट्रेला खुश थी और जल्दी जल्दी बड़ी होते जा रही थी. हैरिस मैसी ने इनको बता रखा था की स्ट्रेला की माँ मर चुकी है. स्ट्रेला को तो अपनी माँ की कोई याद भी नहीं थी. स्टेला जब सात साल की हो गयी तो उसे इंदौर के एक ईसाई मिशनरी स्कूल में डाल दिया गया. सफिया घर का केयर-टेकर के बतौर हैरिस मैसी की सेवा में अकेला रह गया.
स्ट्रेला लिखने-पढ़ने में बहुत तेज निकली. छुट्टियों में घर जरूर आती थी बाकी समय अपनी पढ़ाई के प्रति समर्पित रहती थी. समय का चक्र अपनी गति से घूमता रहा. स्कूल की पढ़ाई के बाद उसने महारानी कालेज जयपुर से ग्रेजुएशन किया और एडमिनिस्ट्रेटिव् कम्पटीशनों की परीक्षाओं में बैठी तो आई.पी.एस. में निकल गयी. ट्रेनिंग के बाद उसकी पोस्टिंग अजमेर, व्यावर और जयपुर में थोड़े थोड़े समय के लिए हुई और घूम-फिर कर टोंक शहर में नियुक्त हो गयी. नया-नया जोश था, हर मामले में वह गहराई से छानबीन करती थी. एक यौन अपराधिक मामले में जब वह सुलतान गली में गयी तो उसका सामना ढलती उम्र की मुस्लिम महिला बबीना से हुआ.
मजेदार बात यह भी है की बबीना समय समय पर अपने श्रोतों से हैरिस मैसी के बारे में जानकारी लेती रही थी. उसे ये भी मालूम था की स्ट्रेला पुलिस ऑफिसर बन गयी है. स्ट्रेला से उसने सीधे सीधे ये तो नहीं कहा की वह उसकी बेटी है पर अपने आप को उससे बातें करने से नहीं रोक पाई. जब उसने स्ट्रेला से हैरिस मैसी की सेहत के बारे में पूछा तो स्ट्रेला को बड़ा ताज्जुब हुआ और उसने बबीना से पूछा की “हैरिस मैसी को वह कैसे जानती है?” बबीना के पास खिसियाने के अलावा इसका कोई जवाब नहीं था. लेकिन एक बुद्धिमान पुलिस ऑफिसर के लिए ये बड़ा संदेहास्पद व अन्वेषण का मामला था. जिस मामले में वह तहकीकात करने गयी थी उसमे गफ्फार खान की दोनों लडकियां भी शामिल थी. बातें आगे बढ़ी तो धीरे-धीरे स्ट्रेला की समझ में सारी बात आती गयी. उसे इन लोगों द्वारा अपने पिता के साथ किये गए व्यवहार व धोखेबाजी पर बहुत आक्रोश हुआ. माँ की संज्ञा लेकर जो औरत आज हाथ जोड़े गिड़गिड़ा रही थी, उसमें उसको व्यभिचारिणी और चंडालिनी नजर आ रही थी, उसकी माँ की भूमिका तो सफिया भाई ने निभाई थी.
डी.एस.पी. स्ट्रेला पर उनकी रिरियाहट व गिड़गिड़ाहट का कोई असर नहीं हुआ और अनैतिक देह व्यापार के जुर्म की कठोर धाराएँ लगा कर पूरे परिवार का चालान कर दिया.
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Nice read .
जवाब देंहटाएंओह, संसार में क्या-क्या होता है। सोच रहा हूँ कि स्ट्रेला के मन पर क्या गुज़री होगी! लेकिन उससे पहले, उस नारकीय जीवन में बबीना पर क्या-क्या गुज़री होगी। ग़फ़्फ़ार खान जैसे अपराधी तो हद से गिरे होते ही हैं, पर उस जैसों पर यक़ीन करके अपने ही लोगों को त्यागने वाले ...
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