नवाँ पत्र
प्यारी बिटिया,
सानंद रहो.
तुम्हारा पत्र मिला, अति हर्ष हुआ, विशेषकर इसलिए कि तुमने अपने विद्यालय के पुस्तकालय में बहुत रूचि बताई है. वास्तव में पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र हैं. पुस्तकें अनुभव एवं ज्ञान की भण्डार होती हैं. कल्पना करो कि एक-एक ग्रन्थ को लिखने के लिए उसके लेखक ने कितनी तपस्या की होगी? ज्ञान गंगा हमेशा ही सर्वजन हिताय बहती आई है, लेकिन जो लेखन स्वांत: सुखाय भी लिखा जाता है वह सभी के हित में भी होता है. रामचरित मानस के प्रारंभिक श्लोक में तुलसीदास जी ने लिखा है कि वे रघुनाथ जी की गाथा स्वांत:सुखाय लिख रहे हैं, लेकिन तुम्हें मालूम है कि उनका यह महाकाव्य पिछले चार शताब्दियों से जन मानस पर छाया हुआ है, और हमारे समाज को दिशाबोध कराने में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
जहाँ तक ज्ञान के भण्डार का प्रश्न है, वह इतना बड़ा है कि उसके क्षितिज कहीं तक सीमित नहीं हैं. अभी पिछली सदी में राहुल सांकृत्यायन नाम के एक महान भाषाविद, इतिहासकार, और शोधकर्ता हुए हैं, जिनको हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत के साथ साथ तिब्बत व सिंहल की भाषाओं पर भी अधिकार था. उन्होंने अनेक प्राकृत भाषाओं पर तथा बौद्ध धर्म के ग्रंथों पर बहुत शोध किया. उनके सम्मान में एक आयोजन हुआ जिसमें पंडित नेहरू जो की मुख्य अतिथि थे ने कहा, “सांकृत्यायन जी किताबों के सागर में तैरते हैं.” इस पर किसी श्रोता ने यों ही फब्ती कस डाली कि “लेकिन पार नहीं पा सके.” हाजिर जवाब नेहरू जी ने कहा, “पार तो वे पा सकते हैं जो कुएँ या ताल-तलय्यों में तैरते हैं. बहुत गहरी बात नेहरू जी ने कह दी.
यदि पुस्तकें नहीं होती तो हमें हर बार अपनी मान्यताओं को कसौटी पर कसना पडता, हर बार अपने अनुभव पर विश्वास या अविश्वास से गुजरना पड़ता. सभ्यता के विकास के क्रम में सभी विषयों पर अनेक गंवेषणात्मक, आलोचनात्मक व मार्गदर्शक पुस्तकों के होने से, हम और हमारा विश्व समृद्ध है. इसका भरपूर लाभ उठाना चाहिए. इस विषय में विज्ञान ने जो देन मानव समाज को दे दी है, वह है कि अब तुम इन तमाम विषयों की अनमोल पुस्तकों को इंटरनेट के जरिये भी पढ़ सकती हो. तुम्हारे पापा, कॉलेज जाने से पहले ही तुमको ये कंप्यूटर/लैपटॉप की सुविधा उपलब्ध कराने की सोच रहे हैं.
जो लोग अपने अमूल्य समय का उपयोग अध्ययन या ज्ञान बृद्धि में नहीं करते हैं, वे कर्महीन होते हैं. मैं जब चारों ओर नजर दौड़ाती हूँ तो रोमांच हो जाता है कि अभी बहुत कुछ जानना है, बहुत कुछ पढ़ना है, इस प्रकार की भावना मुझ में जगी रहती है, और मैं भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि मेरी बेटी को भी इसी भावना में जागृत रखे.
दुनिया में अनेक लोग ऐसे भी हैं जो निठल्ले बैठना पसंद करते हैं. काम की व्यस्तता नहीं होने को ही सुख समझते हैं. इसी सन्दर्भ में बहुत समय पहले मैंने रीडर्स डाइजेस्ट में एक दृष्टान्त पढ़ा था कि एक व्यक्ति किसी कार्यालय में किसी जिम्मेदार पद पर कार्य करता था. सुबह नियत समय पर ऑफिस पहुँचता था. दिन भर पूरे समय अपनी फाइलों का निबटारा करता था. कहीं जवाब देना होता, कहीं सिफारिश करनी होती, कहीं सुझाव देने होते और किसी कागज़ को फाड़ कर फेंक देना होता था. सब काम को पूरा करने के लिए शाम को उसे एक घंटा देर तक आफिस में बैठना पडता था, फिर भी कुछ न कुछ काम बाकी रह जाता था, जिसे अगले दिन के लिए छोड़ना पड़ता था. शाम को घर लौटता तो देखता कि बंगले की आहाते में दूब बेतरतीब बढ़ी हुई है, फैंसिंग की कटिंग भी फ़ैली हुई है, मकान के रंग-रोगन फीके पड़े लगते हैं, और यह सब देख कर उसे अपनी व्यस्तता पर तरस आता था. रात को भोजन के बाद वह जल्दी सो जाता है. उसे गहरी नींद आती है क्योंकि थकान से मांसपेशियां शिथिल हो जाती हैं. एक दिन नींद में उसे एक अजीब स्वप्न आता है कि वह एक आलीशान बिल्डिंग में अपनी कुर्सी पर बैठा है. सामने सुन्दर सपाट चिकनी मेज पर दो गुलदस्ते महक रहे हैं, और टेबल पर एक भी फ़ाइल/कागज़ निबटाने को नहीं है. वह बहुत प्रसन्न हुआ कि जिंदगी में पहली बार टेबल साफ़ नजर आई. वह कुर्सी से उठा, कमरे के रंग-रोगन देखे, सुन्दर चमकदार, मन पसंद थे. फिर खिडकी पर गया, बाहर झाँका, दूब बढ़िया कटी हुई थी, फैंसिंग बारीकी से सुंदरता के साथ कटी-सजी थी. उसी सपने में आगे उसकी मुलाक़ात पोस्टमैन से हुई. उसने पोस्टमैन से पूछा, “मेरी कोई डाक है?” तो पोस्टमैन ने उत्तर दिया, “नहीं महाशय आपकी कोई डाक नहीं है.” अब तो उसे ये सुखद आश्चर्य हुआ कि जिंदगी में पहला दिन निकला है जिसमें कोई काम नहीं निकला है. अचानक उसको लगा कि वह किसी अजनबी जगह तो नहीं आ गया है? उसने रोक कर पोस्टमैन से पूछा, “क्या ये स्थान स्वर्ग में है?” तो पोस्टमैन ने सपाट शैली में प्रत्युत्तर दिया, “आपको जरूर गलत फहमी हो रही है, ये स्वर्ग नहीं नरक है.”
जो लोग व्यस्त रहते हैं, पुरुषार्थ करते हैं वही स्वर्ग में हैं, और जो परजीवी-निठल्ले रहते हैं, वे नरक भोगते हैं. समय कभी लौट कर नहीं आता है, एक एक क्षण बीतता जाता है, हम उसे खोते जाते हैं. इसलिए इसका सदुपयोग करना चाहिए.
इसी सन्दर्भ में एक बात और कि तुम्हारे ज्ञान का उद्देश्य ‘सर्वे सुखिन: सन्तु’ होना चाहिए ऐसा ज्ञान किस काम का जो किसी के काम ना आये? अत: उत्साह के साथ अध्ययन करती जाओ और अपने व्यक्तित्व को सदगुणों से विकसित करती जाओ. कबीरदास ने एक दोहे में लिखा है कि सज्जन लोग सूप की तरह होते है जो अच्छी बातों को ग्रहण करते हैं और बेकार की चीजों को फैंक देते हैं.
तुम्हारा प्रगति-पत्र हाल में हमें मिला. प्राप्त अंकों का प्रतिशत देख कर बहुत सुख मिला.
अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखना. मौसमी फलों का सेवन जरूर करना क्योंकि ये प्रकृति के अनुसार गुण लिए रहते हैं, शरीर में प्रतिरोधात्मक शक्तियां बनाए रखते हैं.
भैया तुमको बहुत याद करता है. अब खूब दौड़ने लगा है. आजकल तुम्हारे पापा, एक छोटा सा चितकबरा बिल्ली का बच्चा ले आये हैं. भैया उसी के साथ खेलता रहता है.
तुम्हारे पापा व भैया का प्यार.
तुम्हारी माँ.
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